युद्ध रोकने की पहल करे भारत, जी-20 का अध्यक्ष होने के नाते करना चाहिए कोई सार्थक प्रयास
पश्चिमी यूरोप के लगभग सभी देश ऊर्जा के मामले में रूस पर निर्भर हैं। रूस पर प्रतिबंध लगाने के साथ पश्चिमी देशों ने विश्व को यह हिदायत दी कि वे उससे पेट्रोलियम पदार्थ न खरीदें लेकिन भारत ने उससे पेट्रोलियम पदार्थ खरीदना जारी रखा।
[संजय गुप्त]। करीब एक वर्ष पूर्व रूस ने जब यूक्रेन पर हमला कर दुनिया को चौंकाया था, तब यह माना गया था कि वह बहुत शीघ्र अपने इस पड़ोसी देश पर जीत हासिल कर लेगा। इसका कारण यह था कि रूस की सैन्य शक्ति के आगे यूक्रेन की सैन्य क्षमता बहुत कम थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यूक्रेनी सेना जिस दृढ़ता से रूस का मुकाबला कर रही है, उससे युद्ध लंबा खिंचने के आसार हैं। इस युद्ध के कारण हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई है और लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। यूक्रेन को जन हानि के साथ धन हानि भी उठानी पड़ रही है। इस युद्ध ने कोविड महामारी से बाहर निकलती वैश्विक अर्थव्यवस्था को गहरे संकट में फंसा दिया है। इसके चलते दुनिया के सामने चुनौतियों का नया दौर जारी है।
आज के युग में युद्ध राजनीतिक कारणों से ही लड़े जाते हैं, न कि किसी शासक की इस सोच से कि उसे आसपास के देशों पर जीत हासिल करके उस पर कब्जा जमाना है। सोवियत संघ के विघटन के बाद से ही रूस और यूक्रेन के संबंध सामान्य नहीं रहे। रूस ने यूक्रेन के एक प्रमुख हिस्से क्रीमिया पर 2014 में ही कब्जा कर लिया था। इसके बाद से यूक्रेन अपनी सुरक्षा को मजबूत बनाने में जुट गया। उसने अमेरिकी नेतृत्व वाले सैन्य संगठन नाटो में शामिल होने की तैयारी शुरू कर दी। रूस की आपत्ति के बाद भी अमेरिका और यूरोपीय देश यूक्रेन को नाटो का हिस्सा बनाने के लिए सक्रिय रहे। इससे रूस चिंतित हुआ और उसने यूक्रेन के प्रति अपनी आक्रमकता बढ़ा दी।
जब किसी देश को यह लगने लगता है कि वह कूटनीतिक मोर्चे पर कमजोर हो रहा है तो वह उसी राह पर चल निकलता है, जिस पर रूस चला। रूस यह जानता था कि वह यूक्रेन पर हमला करके पश्चिमी देशों को नाराज करेगा और उसके नतीजे में उस पर तमाम प्रतिबंध लग सकते हैं, लेकिन उसने इसकी परवाह नहीं की। अमेरिका सहित कई देशों ने उस पर प्रतिबंध लगाए और पश्चिम की कई कंपनियों ने अपना कारोबार वहां से समेट लिया, लेकिन उस पर ज्यादा असर इसलिए नहीं पड़ा, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भर है।
पश्चिमी यूरोप के लगभग सभी देश ऊर्जा के मामले में रूस पर निर्भर हैं। रूस पर प्रतिबंध लगाने के साथ पश्चिमी देशों ने विश्व को यह हिदायत दी कि वे उससे पेट्रोलियम पदार्थ न खरीदें, लेकिन भारत ने उससे पेट्रोलियम पदार्थ खरीदना जारी रखा। शुरु में तो इसकी आलोचना हुई, पर बाद में हर देश यह समझने को तैयार हुआ कि भारत को अपने ऊर्जा हितों की पूर्ति करने का अधिकार है। भारत जिस तरह पश्चिमी देशों को यह समझाने में सफल हुआ कि वह रूस से तेल खरीदना क्यों नहीं बंद कर सकता, वह उसकी कूटनीतिक सफलता ही है।
रूस लगातार इसकी धमकी देता आ रहा है कि अगर पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को हथियारों के जरिये सहयोग करना बंद नहीं किया तो यह लड़ाई परमाणु युद्ध में भी बदल सकती है। उसने हाल में अमेरिका से परमाणु हथियारों के बारे में सूचना देने संबंधी संधि से अपने हाथ पीछ खींच लिए। ऐसा करके उसने विश्व को एक बार फिर उस शीत युद्ध की होड़ में उलझा दिया, जिसमें अमेरिका और सोवियत संघ लगातार परमाणु हथियारों का निर्माण कर रहे थे। आज परमाणु हथियारों की यह होड़ अन्य देशों के बीच भी फैल रही है। अगर इस युद्ध से किसी को लाभ पहुंचा है तो हथियार निर्माताओं को, जो अधिकतर पश्चिमी देशों के हैं।
विश्व में गरीबी, अशिक्षा से लड़ने और निर्धन देशों के उत्थान को लेकर चर्चा तो बहुत होती है, पर प्रमुख देश सबसे पहले अपना ही हित देखते हैं। कई बार तो उन्हें हथियारों की होड़ में ही अपना हित दिखाई देता है। हथियारों की होड़ के आगे उन्हें अफ्रीका और एशिया के गरीब देशों की याद नहीं आती। रुस- यूक्रेन युद्ध का सबसे अधिक नुकसान गरीब देशों को उठाना पड़ रहा है। इसका एक उदाहरण पाकिस्तान की दयनीय दशा है। वैसे तो उसकी खस्ता हालत के लिए अन्य कारण भी जिम्मेदार हैं, लेकिन एक प्रमुख कारण यूक्रेन युद्ध भी है।
पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अचानक यूक्रेन पहुंचे और उन्होंने राष्ट्रपति जेलेंस्की को आश्वस्त किया कि वह इस लड़ाई में उनके साथ हैं। उन्होंने यूक्रेन को और हथियार देने का भी वचन दिया। उनकी रणनीति युद्ध को और भड़काने का काम कर सकती है, क्योंकि उनके बयान से रूसी राष्ट्रपति पुतिन चिढ़ गए हैं। हालांकि पुतिन इसकी अनदेखी भी कर रहे हैं कि रूस इस लड़ाई में लगातार कमजोर पड़ रहा है। रूस जिन पेट्रोलियम पदार्थों की कमाई खाता है, तमाम देश उनका विकल्प अपना रहे हैं। अब पश्चिमी देश अपनी ऊर्जा जरुरत के लिए रूस पर नहीं निर्भर रहना चाहते। यदि वे वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत अपना लेते हैं तो रूस की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
यूक्रेन युद्ध किस तरह तनाव बढ़ा रहा है, इसका प्रमाण यह है कि चीन रूस की मदद के लिए आगे आता दिख रहा है। माना जा रहा है कि वह रूस को हथियार दे सकता है। वह अमेरिकी चेतावनी की परवाह नहीं कर रहा है। इसके चलते विश्व एक ऐसे ध्रुवीकरण की तरफ बढ़ रहा है, जहां रूस-चीन और कुछ अन्य देश एक तरफ होंगे और दूसरी तरफ अमेरिका एवं यूरोपीय देश। इस ध्रुवीकरण के बीच भारत ने तटस्थ रहना पसंद किया है। अब जैसे हालात उभर रहे हैं, उन्हें देखते हुए भारत को जी- 20 का अध्यक्ष होने के नाते रुस-यूक्रेन की लड़ाई थामने के लिए कोई सार्थक पहल करनी चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि यूक्रेन समेत पश्चिमी देश और यहां तक कि अमेरिका भी यह मान रहा है कि यदि भारत मध्यस्थता करे तो इस युद्ध को रोका जा सकता है।
इसी सिलसिले में हाल में यूक्रेन के प्रतिनिधि ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से बात भी की। अभी पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन में शांति स्थापना को लेकर आए एक प्रस्ताव से भारत ने दूरी बनाते हुए जिस तरह यह सवाल उठाया कि क्या हम किसी ऐसे समाधान के करीब पहुंच सके हैं, जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो, उस पर विश्व के प्रमुख देशों को मंथन करना चाहिए। इस प्रश्न पर गंभीरता से मंथन हो, इसके लिए भारत को और सक्रियता दिखानी चाहिए। इसके बेहतर परिणाम निकल सकते हैं।
[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]