सुरक्षा के लिए खतरा बने घुसपैठिए, आखिर ये जम्मू-कश्मीर से लेकर दक्षिण भारत तक में कैसे बस जा रहे हैं?
शरणार्थियों और घुसपैठियों में अंतर किया जाना चाहिए। आम तौर पर शरणार्थियों को परिचय पत्र प्रदान किया जाता है। यह परिचय पत्र शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएचआरसी की ओर से जारी किया जाता है। जहां शरणार्थी अपनी जान बचाने के उद्देश्य से किसी देश में वैध-अवैध रूप से प्रवेश करते हैं वहीं घुसपैठिए किसी साजिश के तहत किसी देश में प्रवेश करते हैं।
राजीव सचान। भारत में बांग्लादेशियों एवं रोहिंग्याओं की घुसपैठ का सिलसिला किस तरह कायम है, इसका पता बीते दिनों राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए की ओर से 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में की गई छापेमारी एवं 40 से अधिक उन दलालों की धरपकड़ से चलता है, जो मानव तस्करी में लिप्त थे। ये दलाल बांग्लादेशियों के साथ रोहिंग्याओं को देश के विभिन्न हिस्सों में लाते थे। इन दलालों का नेटवर्क किस तरह पूरे देश में फैला है, इसका प्रमाण इससे मिला कि एनआइए ने त्रिपुरा, असम, बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर और पुदुचेरी में कुल 55 स्थानों पर छापेमारी की।
इस छापेमारी के दौरान एनआइए को घुसपैठ कराने वालों के पास से आधार एवं पैन कार्ड समेत बड़ी संख्या में पहचान-संबंधी अन्य दस्तावेज भी मिले। इन सभी के फर्जी होने का संदेह है। देश में बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की घुसपैठ कराने वालों की पहुंच का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वे उन्हें राजस्थान से लेकर जम्मू-कश्मीर और दक्षिण भारत तक भेजने और बसाने में सफल हैं। यह सामान्य बात नहीं कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या बंगाल, असम आदि से भारत में घुसते हैं और फिर जम्मू-कश्मीर एवं तमिलनाडु तक पहुंच जाते हैं। वे असली-नकली पहचान पत्र भी हासिल कर लेते हैं।
एक समय था, जब बांग्लादेशी घुसपैठिए केवल बंगाल, असम, त्रिपुरा आदि में ही ठिकाना बनाते थे, फिर वे बिहार, झारखंड में जाकर बसने लगे। अब तो समस्त भारत उनके लिए सुरक्षित ठौर बन गया है। जो स्थिति कल तक बांग्लादेशी घुसपैठियों की थी, वही अब रोहिंग्याओं की भी है। यदि बांग्लादेशी और रोहिंग्या बंगाल, असम में घुसपैठ करके जम्मू, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद तक पहुंच जा रहे हैं तो इसका अर्थ है कि उन्हें भारत लाने और यहां के नागरिकों के रूप में बसाने की कोई गहरी सुनियोजित साजिश चल रही है।
इस साजिश के कैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं, यह इससे समझा जा सकता है कि बंगाल और असम के अनेक इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठिए भारतीय नागरिक बनकर एवं मतदाता पहचान पत्र हासिल कर चुनावों में हार-जीत का निर्धारण करने लगे हैं। चूंकि वे वोट बैंक बन गए हैं इसलिए उनकी पैरवी करने वाले राजनीतिक दल भी सक्रिय हो गए हैं। बंगाल में वे तृणमूल कांग्रेस का वोट बैंक हैं तो असम में आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का। जैसे बंगाल में ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों की तरफदारी करती हैं, वैसे ही असम में बदरुद्दीन अजमल, जो आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के प्रमुख हैं। असम के मुख्यमंत्री की मानें तो रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए असम को एक गलियारे के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं।
शरणार्थियों और घुसपैठियों में अंतर किया जाना चाहिए। आम तौर पर शरणार्थियों को परिचय पत्र प्रदान किया जाता है। यह परिचय पत्र शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएचआरसी की ओर से जारी किया जाता है। जहां शरणार्थी अपनी जान बचाने के उद्देश्य से किसी देश में वैध-अवैध रूप से प्रवेश करते हैं, वहीं घुसपैठिए किसी साजिश के तहत किसी देश में प्रवेश करते हैं और वे उस देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने का काम करते हैं। कई बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए अपराध एवं आतंकी घटनाओं में लिप्त पाए गए हैं। हरियाणा के नूंह में हुई सांप्रदायिक हिंसा में रोहिंग्या घुसपैठियों का हाथ पाया गया था। ऐसी आशंका भी है कि दिल्ली में हुए दंगों में भी उनकी भूमिका थी।
जैसे इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं कि भारत में कितने बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं, वैसे ही इसकी भी नहीं कि रोहिंग्या कितने हैं? जहां बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या करोड़ों में मानी जाती है, वहीं रोहिंग्या घुसपैठियों की अनुमानित संख्या 40-50 हजार के करीब बताई जाती है। अवैध तरीके से भारत आकर विभिन्न इलाकों में बसे बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को निकालने की कोई भी पहल सही ढंग से आगे नहीं बढ़ सकी है।
म्यांमार के हालात ऐसे हैं कि वहां से सीधे या फिर बांग्लादेश के रास्ते आए रोहिंग्या घुसपैठियों को वापस भेजना कठिन है। चंद दिनों पहले ही म्यांमार से सैकड़ों चिन आदिवासी समूह के लोग वहां से जान बचाकर मिजोरम आए हैं। मणिपुर में भी म्यांमार से आए चिन और कुकी लोगों की बड़ी संख्या घुसपैठ करके आई है। मणिपुर के भीषण हिंसा की चपेट में आने का एक कारण म्यांमार से आए घुसपैठिए भी हैं।
शरणार्थी हों या घुसपैठिए, उन्हें उनके देश वापस भेजना आसान नहीं होता। भारत सरकार ने जब कभी बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को वापस भेजने की पहल की, वह आगे नहीं बढ़ सकी। इन स्थितियों में यह आवश्यक हो जाता है कि उन्हें देश में आने ही न दिया जाए। फिलहाल सीमाओं पर ऐसी व्यवस्था नहीं कि घुसपैठिए देश में घुसने ही न पाएं। बांग्लादेशी अथवा रोहिंग्या घुसपैठियों को वापस भेजने की मांग उठते ही यूरोप और अमेरिका के मानवाधिकार संगठन शोर मचाने लगते हैं।
भारत सरकार ने जब नागरिकता कानून में संशोधन कर यह तय किया था कि इस कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को शरण एवं नागरिकता प्रदान की जाएगी, तो देश के कुछ राजनीतिक दलों के साथ अमेरिका और यूरोप ने मोदी सरकार को उपदेश देना शुरू कर दिया था। आज यही यूरोपीय देश इसके लिए जतन कर रहे हैं कि शरणार्थियों का आना कैसे रोका जाए और अवांछित गतिविधियों में लिप्त इन शरणार्थियों को किस तरह वापस भेजा जाए। उनकी आंखें इसलिए खुली हैं, क्योंकि फलस्तीन की आड़ में हमास का समर्थन करने वाले शरणार्थी उनके यहां उपद्रव कर रहे हैं।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)