रमेश कुमार दुबे: हाल में विश्व बैंक की इस रिपोर्ट ने सबका ध्यान खींचा कि भारत ने जनधन बैंक खातों, आधार और मोबाइल फोन के उपयोग से वित्तीय समावेशन दर को 80 प्रतिशत तक प्राप्त करने में केवल छह साल का समय लिया, जिसके लिए इस तरह के डिजिटल पेमेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी डीपीआइ के बिना 47 साल लग सकते थे।

जिस देश में दिल्ली से एक रुपया चलता था तो गांव तक उसमें से 15 पैसे ही पहुंचते थे, उस देश में आज 100 के 100 पैसे पूरे मिल रहे हैं और वह भी सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में, तो इसका श्रेय मोदी सरकार की वित्तीय समावेशन नीति को जाता है। देश के वित्तीय समावेशन की दिशा में 16 अगस्त, 2023 की तिथि किसी मील के पत्थर से कम नहीं है। इस दिन देश में प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खुले बैंक खातों की संख्या 50 करोड़ के रिकार्ड आंकड़े को पार कर गई।

इन बैंक खातों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें से 56 प्रतिशत बैंक खाते महिलाओं के हैं और 67 प्रतिशत खाते ग्रामीण एवं कस्बाई क्षेत्रों में खुले हैं। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में वित्तीय समावेशन का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है? मोदी सरकार ने देश में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए 28 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री जनधन योजना शुरू की थी, जिसका उद्देश्य प्रत्येक ऐसे परिवार को जीरो बैंक बैलेंस खाता उपलब्ध कराना था, जो बैंकिंग सेवा से नहीं जुड़े थे। इसके तहत हर परिवार के दो सदस्य जनधन खाता खोल सकते हैं।

जनधन खाते में पैसे जमा करने एवं निकालने पर कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है। इन खातों में बिना किसी शुल्क के फंड ट्रांसफर और मोबाइल बैंकिंग सुविधा मिलती है। इन बैंक खातों में न्यूनतम राशि रखने की भी आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा मुफ्त रुपे डेबिट कार्ड के अलावा 10,000 रुपये तक का ओवरड्राफ्ट, दो लाख रुपये का दुर्घटना बीमा जैसी सुविधाएं भी मिलती हैं।

जनधन योजना के तहत खुले बैंक खातों का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि केंद्र सरकार को धन के रिसाव को रोकने में मदद मिली। इसके लिए सरकार ने जनधन-आधार-मोबाइल के गठजोड़ से देश में बिचौलिया मुक्त धन हस्तांतरण का नेटवर्क स्थापित किया। इससे हर स्तर पर मौजूद बिचौलियों द्वारा किया जाने वाला फर्जीवाड़ा रुका और सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे लक्षित वर्गों तक पहुंचने लगा।

आज जनधन बैंक खातों का इस्तेमाल सरकारी योजनाओं की सब्सिडी, छात्रवृत्ति, पेंशन, आपदा सहायता जैसी तमाम योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुंचाने में किया जा रहा है। उदाहरण के लिए सरकार ने कोविड महामारी के दौरान जनधन खातों का इस्तेमाल किया और ग्रामीण परिवारों के खातों में तत्काल प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से धन भेजा। मात्र दस दिनों के भीतर 20 करोड़ से अधिक महिलाओं के बैंक खातों में राशि भेजी गई। जिस देश में ‘आपदा में अवसर’ तलाशने वालों की कमी न हो, वहां यह एक बड़ी उपलब्धि है।

वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार ने विभिन्न योजनाओं के 7.16 लाख करोड़ रुपये लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तांतरित किए, जो वित्त वर्ष 2013-14 में हस्तांतरित राशि (7,367 करोड़ रुपये) की तुलना में 100 गुना ज्यादा है। आज 53 केंद्रीय मंत्रालयों की 320 योजनाओं के लाभ डीबीटी के तहत सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजे जा रहे हैं। विश्व बैंक अध्यक्ष अजय बंगा ने डीबीटी की प्रशंसा करते हुए कहा था कि भारत सरकार का सोशल सिक्योरिटी नेटवर्क पूरी दुनिया के लिए अनुकरणीय है। उनके अनुसार डिजिटलीकरण सोशल सिक्योरिटी नेटवर्क को मजबूत बनाता है। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी डीबीटी को गरीबी उन्मूलन का कारगर हथियार बताया है।

जनधन योजना के विरोधी पहले उस पर व्यंग्य करते हुए कहते थे कि ये खाते खाली पड़े हैं, लेकिन अब जीरो बैंक बैलेंस खातों की संख्या 58 प्रतिशत से घटकर मात्र आठ प्रतिशत रह गई। 2015 में जहां जनधन खातों में औसत जमा राशि 1,065 रुपये थी, वहीं अगस्त 2023 में यह बढ़कर 4,062 रुपये हो गई। स्पष्ट है जमीनी स्तर पर करोड़ों लोग बैंकिंग प्रणाली को अपना रहे हैं। अधिकतर खाताधारक गृहणियां, असंगठित क्षेत्र के श्रमिक और कम आय वाले दिहाड़ी मजदूर हैं। इसके बावजूद आज इन बैंक खातों में 2.03 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। जनधन खाताधारकों को 34 करोड़ रुपे कार्ड जारी किए गए हैं। जनधन योजना महिला सशक्तीकरण का भी कारगर हथियार साबित हो रही है। 2015 में मात्र 15 प्रतिशत खाते महिलाओं के थे, जो अब 56 प्रतिशत हो चुके हैं। जनधन खाते महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों को ऋण लेने और मुद्रा योजना के तहत महिला उद्यमियों को लोन लेने में सहायता प्रदान कर रहे हैं।

जनधन योजना दुनिया की सबसे बड़ी और प्रभावशाली वित्तीय समावेशन पहल में से एक है। इस योजना ने समाज के सभी वर्गों विशेषकर वंचित वर्ग के समावेशी विकास में योगदान दिया है। ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में लाखों बैंक मित्र करोड़ों लोगों को बैंकिंग प्रक्रिया से जोड़ने में सहायक बने हैं।

जिस देश में सरकारी योजनाएं भ्रष्ट तत्वों की लूट का जरिया बन गई हों, वहां देश भर में बैंकिंग प्रणाली का विकास और योजनाओं का लाभ सीधे बैंक खातों में भेजना आसान नहीं था, लेकिन मोदी सरकार ने हर स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित करके इस असंभव से दिखने वाले लक्ष्य को मात्र नौ वर्षों में हासिल कर लिया। इसी राजनीतिक प्रतिबद्धता और हर स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित करने का नतीजा है कि आज बीमा, रसोई गैस, शौचालय, बिजली, सड़क जैसी जो मूलभूत सुविधाएं पहले शहरों तक सीमित थीं, वे आज बिना किसी भेदभाव के सभी देशवासियों को उपलब्ध हैं।

(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं)