श्रीराम चौलिया : आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका में खालिस्तानी चरमपंथियों द्वारा भारतीय दूतावासों, प्रवासियों और मंदिरों पर घृणा से प्रेरित हमलों और अपराधों का सिलसिला साफ दर्शाता है कि एक सुनियोजित अंतरराष्ट्रीय अभियान चलाया जा रहा है। इस मुहिम का लक्ष्य पंजाब में अलगाववादी ताकतों को पुनर्जीवित करना है। पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों को अड्डा बनाकर उग्रवादी प्रचार, वित्तीय अनुदान और हिंसक गतिविधियों को तेज करके पंजाब में दोबारा नफरत की आग लगाने की चेष्टा हो रही है।

समस्या केवल यह नहीं है कि खालिस्तानी अतिवादियों को उदार पश्चिमी देशों में शरण मिल रही है, बल्कि यह भी है कि वहां की सरकारें इस खतरे की अनदेखी करने में लगी हैं। इस पूरे फसाद की जड़ वही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ है, जो दशकों से विदेशी धरती पर खालिस्तान समर्थकों को तैयार करने में सक्रिय रही है। यह मामला गिने-चुने सिरफिरे खालिस्तानी कट्टरपंथियों का नहीं, बल्कि भारत के विरुद्ध एक बड़े विदेशी षड्यंत्र का है। समय की मांग यही है कि पंजाब में कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने के साथ ही आपसी भाईचारे को कायम रखते हुए पश्चिमी देशों में रचे जा रहे इस भारत विरोधी प्रपंच से सख्ती से निपटा जाए।

खालिस्तान समर्थकों को लेकर भारतीय एजेंसियां पश्चिमी देशों पर पैनी नजर रखती आई हैं। ऐसे तत्वों के नापाक मंसूबों की जानकारी भी समय-समय पर संबंधित देशों से साझा की गई है। इसी माह की शुरुआत में ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआइ-5 को विरोध-प्रदर्शन योजनाओं के बारे मे पहले ही सचेत कर उन्हें रोकने का आग्रह किया गया था। कुछ ब्रिटिश गुरुद्वारों में खालिस्तान समर्थकों की ओर से भारत मे हिंसक कार्रवाइयों हेतु चंदा इकठ्ठा करने संबंधी गतिविधियों से भारतीय एजेंसियों को इनकी खबर मिलती रही है। कथित खालिस्तान को लेकर जनमत संग्रह के बारे में भी भारतीय एजेंसियों ने विदेशी एजेंसियों को आगाह किया है कि ऐसे जनमत संग्रह पंजाब को ‘भारतीय कब्जे से मुक्त करने’ के नाम पर आयोजित किए जाते हैं और यह भारत की संप्रभुता एवं राष्ट्रीय सुरक्षा पर आघात का खतरनाक षड्यंत्र है।

भारतीय एजेंसियों की सक्रियता के बावजूद कई षड्यंत्रों का भंडाफोड़ इसलिए नहीं हो पाता, क्योंकि जिन देशों में ऐसी गतिविधियां संचालित होती हैं, वे खालिस्तान समर्थकों को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा नहीं मानते। इन देशों में अधिकाधिक ध्यान इस्लामिक जिहादी आतंक पर दिया जाता है और रत्ती भर भी खालिस्तान से जुड़ी गतिविधियों पर नहीं रहता। खालिस्तान समर्थकों को खुली छूट है, क्योंकि वे इन देशों के नागरिकों और अधिष्ठानों पर हमले नहीं करते। चूंकि वे पश्चिमी देशों का सिरदर्द नहीं, तो वे भी अपनी पुलिस और तंत्र को उनके पीछे लगाने को प्राथमिकता नहीं देते। ऐसे में भारत इन देशों में और क्या करे जिससे हमारे सरोकारों को लेकर जागरूकता और समानुभूति बढ़े? वास्तव में, हमें इस मुद्दे को पश्चिमी देशों के साथ ‘सामरिक साझेदारी’ और सहयोग का अहम विषय बनाना होगा। जिन देशों ने भारत के साथ ‘खुफिया साझेदारी’ पर सहमति जताई है, उन्हें खालिस्तानी-पाकिस्तानी मिलीभगत पर केंद्रित संयुक्त कार्रवाई को प्राथमिकता देने के लिए तैयार करना होगा।

मित्र राष्ट्रों के साथ ‘सुरक्षा सहयोग’ का अर्थ अक्सर चीन के विरुद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र में तालमेल या जिहादी संगठनों के विरुद्ध एकजुट होकर लड़ने से लगाया जाता है, किंतु चुनौतियां उससे भी परे हैं। जैसे अब पाकिस्तान प्रायोजित खालिस्तानी षड्यंत्रों में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में हमें मित्र राष्ट्रों के साथ विशेष बातचीत के जरिये सहमति बनानी होगी ताकि भारतीय सुरक्षा कर्मी और जासूसों को इन देशों में अधिक सहजता से कार्य करने की सहूलियत मिले। इंटरनेट पर फैले खालिस्तान समर्थकों के बीच संपर्क, समन्वय और वित्तीय प्रवाह की रोकथाम को प्राथमिकता देकर संबंधित देश को भारत के साथ मिलकर उग्रवाद से लड़ने के लिए तैयार करना होगा।

कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और आस्ट्रेलिया पहले ही ‘फाइव आईज’ नामक खुफिया सहयोग गठबंधन के सदस्य हैं और यदि हम खालिस्तान समर्थकों पर केंद्रित इसी प्रकार की नई बहुपक्षीय पहल का प्रस्ताव रखें तो वह प्रभावी होगी। एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक शक्ति होते हुए भारत पश्चिमी देशों के भीतर उनकी संप्रभुता का उल्लंघन नहीं कर सकता। खुद अपने हाथों मित्र राष्ट्रों की धरती पर दुश्मनों का खात्मा न ही करें तो बेहतर, क्योंकि संप्रभुता संवेदनशील मुद्दा है और हमें इन देशों से घनिष्ठ संबंध बनाए रखने होंगे ताकि चीनी प्रतिरोध के लिए भूराजनीतिक गठजोड़ मजबूत रहे। हमारी कूटनीतिक उपलब्धि यही होगी कि हम पश्चिमी राष्ट्रों को विश्वास में लेकर उनकी सहमति से खालिस्तान समर्थकों पर प्रहार करें।

लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग पर बीते दिनों खालिस्तान समर्थक तत्वों के हमले के बाद भारत ने नई दिल्ली में ब्रिटिश उच्चायोग पर सुरक्षा घेरा घटाकर ‘जैसे को तैसा’ वाला संदेश जरूर दिया, लेकिन इससे कड़ी कार्रवाई अपरिपक्व होगी, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय राजनय में बड़ी शक्तियां सिर्फ एक बिंदु को लेकर ही व्यापक रणनीतिक संबंध खराब नहीं करतीं। अगर पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों के साथ भारत के रिश्ते बिगड़ते हैं तो यह खालिस्तानियों और उनके पाकिस्तानी सूत्रधारों की विजय मानी जाएगी, जिससे चीन भी संतुष्ट होगा। ऐसे में हमें पश्चिमी देशों को साक्ष्य देकर समझाना होगा कि खालिस्तानी पृथक नहीं, बल्कि पाकिस्तानी कठपुतली हैं और उनके संबंध प्रतिबंधित अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों के साथ हैं। बब्बर खालसा इंटरनेशनल और खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स जैसे संगठनों की लश्कर-ए-तोइबा जैसे खूंखार और प्रतिबंधित जिहादी संगठनों से निकटता की पुष्टि हो चुकी हैं। हमें पश्चिमी देशों को समझाना होगा कि रावण के दस सिर होते हैं और वे इक्का-दुक्का तीर चलाएंगे तो उससे काम नहीं बनेगा। आतंकवाद को समग्र रूप से दिखाना और उसकी हर अभिव्यक्ति के विरुद्ध ठोस कार्रवाई कराना हमारी कूटनीति की अग्निपरीक्षा होगी।

(लेखक जिंदल स्कूल आफ इंटरनेशनल अफेयर्स में प्रोफेसर और डीन हैं)