Lok Sabha Election 2024: जनतांत्रिक राजनीति की नई शैली, 2019 लोकसभा चुनाव में अपने विजयी उम्मीदवारों को PM Modi ने दे दिया था ये संदेश
लोकसभा चुनाव 2019 में अपने विजयी उम्मीदवारों को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा था कि विवाद से बचिए। पिछले दिनों भी उन्होंने दोहराया कि पार्टी नेता विवाद से बचें। सिर्फ विकास कार्यों की चर्चा करें। इसे हम एक प्रकार से एक ऐसे समय जनतांत्रिक राजनीति में सकारात्मक राजनीति के निर्माण की शैली के रूप में देख सकते हैं जब अनेक नेता विवाद से अपनी राजनीतिक बनाए रखना चाहते हैं।
बद्री नारायण। लोकसभा चुनाव का प्रचार जोर पकड़ रहा है। विभिन्न दलों द्वारा चुनाव क्षेत्रों के टिकट निर्धारित किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तो रैलियों के साथ रोड शो भी शुरू हो गए हैं। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि चुनाव प्रचार में भाजपा ने बढ़त ले ली है। मोदी एक लोकप्रिय नेता ही नहीं, बल्कि आज की जनतांत्रिक राजनीति के शिल्पकार के रूप में उभर रहे हैं। देश की जनतांत्रिक राजनीति में अनेक बड़े नेता हुए, किंतु उनमें से कई बनी-बनाई लीक पर ही चलते रहे।
कुछ ही हुए, जिन्होंने अपनी राजनीति के लिए नया रास्ता बनाया। यदि प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति को गहराई से विश्लेषित करें तो प्रतीत होगा कि उन्होंने अपनी राजनीति की एक नई शैली विकसित की है। वह राजनीति के ऐसे शिल्पकार के रूप में उभरे हैं, जो भारतीय परंपरा में अपनी जड़ें जमाए हुए हैं। इसका एक कारण उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में कार्य करना है।
यदि मोदी के राजनीतिक क्रियाकलापों की व्याख्या से कोई एक सूत्र तलाशें तो वह है सतत नवोन्मेष। इस नवोन्मेष की दिशा उनकी भारत के भविष्य की अवधारणा से बनती एवं आकार लेती है। उन्होंने जिस प्रकार 2047 तक विकसित भारत एवं हजार वर्ष के बाद के भारत का सपना देखा है, उसका स्वरूप भविष्य में और उभर कर आना है। इस नवोन्मेष की दूसरी दिशा थके, हारे, उदासीन जन में आशा जगाने की राजनीति विकसित करना एवं उन आशाओं को पूरा करने के लिए लोगों में सतत क्षमता निर्माण की नीति पर काम करना है।
पिछले दिनों मैं उत्तर भारत के एक गांव में एक पिछड़े सामाजिक समूह के युवाओं से बात कर रहा था। मेरी बातों में महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी का संदर्भ आ रहा था। उन युवाओं ने कहा-‘अब देश पहले जैसी दशा में नहीं है। देश आगे बढ़ रहा है। सबके आगे बढ़ने का रास्ता दिख रहा है। नौकरी मिली तो ठीक, नहीं तो कुछ धंधा, रोजगार कर लेंगे। बैंक लोन, स्टार्टअप की अनेक योजनाएं मोदी जी चला रहे हैं।’
यह सब सुनकर मुझे लगा कि आधार तल पर लोगों में एक प्रकार की आशा जगी है और जड़ता टूटी है। बनारस, अयोध्या, उज्जैन जैसे तीर्थों के आधुनिकीकरण ने बड़े पैमाने पर तीर्थयात्रियों को आकर्षित किया है। उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग के अनुसार 2023 में उत्तर प्रदेश में 48 करोड़ पर्यटक आए, जिनमें से 16 लाख बाहर के देशों के थे। पर्यटकों के आवागमन ने इन तीर्थ केंदों के आसपास के गांवों, कस्बों में मुद्रा का प्रवाह बढ़ाया है। इससे भी लोगों में जड़ता टूटी है एवं विकास की आशा जगी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक शैली का एक तत्व लोगों में भविष्य के प्रति आशा सृजित करना भी है। मोदी एक ऐसे राजनीतिज्ञ हैं, जिन्होंने अपनी राजनीति में भविष्य को विमर्श एवं नियोजन का विषय बनाया है। हमारे पहले के कई प्रधानमंत्री या तो समकालीन समस्याओं के दबाव में या अपनी दृष्टिगत सीमा के कारण छोटे कालखंडों यथा पंचवर्षीय विकास की योजनाओं में ही बंध कर रह गए।
उनके पास दीर्घकालीन भविष्य का सोच नहीं था। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के भाषणों को सुनें तो ‘भविष्य’ शब्द उनमें प्रायः आपको मिलेगा ही नहीं। राममनोहर लोहिया ने अपने एक आलेख में भारतीय राजनीति के इस संकट की तरफ इशारा किया था। उन्होंने कहा था कि भारत में राजनीतिक दलों में भविष्य के बारे में सोचने की क्षमता नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक शैली में एक अन्य तत्व सत्ता की राजनीति को सामाजिक राजनीति में रूपांतरित करना है। वह बार-बार कहते हैं कि सत्ता की राजनीति के पार जाकर हमें समाज से अपनी राजनीति को जोड़ना होगा। यहां वह हमें महात्मा गांधी की शैली में संवाद करते दिखते हैं, जहां वह विदेशी साम्राज्यवाद के विरुद्ध अपने संघर्ष को अछूतों के उद्धार, पंथक एकता और अनेक सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अपने अभियानों से बल प्रदान करते थे।
मोदी ने भी अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ को सामाजिक परिवर्तन से जोड़ने के साथ अनेक छोटे-छोटे सामाजिक मुद्दों को भी अपनी व्यापक राजनीति में जगह दी है। छात्रों से संवाद, परीक्षा पे चर्चा, युवाओं में तनाव बढ़ने की चिंता, स्क्रीन टाइम के बारे में संदेश, पंच प्रण की अवधारणा, काशी-तमिल संगमम् के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने के प्रयासों को उन्होंने अपनी राजनीति से जोड़ा है।
समाज के हाशिये पर रहने वालों को भी ‘मन की बात’ में वह जगह देते रहे हैं। ऐसे में सत्ता की राजनीति विकास, आशा एवं सामाजिक मुद्दों की राजनीति में बदल जाती है। उन्होंने अपनी राजनीति में धर्म एवं अध्यात्म की उपस्थिति को भी नए ढंग से परिभाषित किया है। साधु-संतों, मंदिरों, सूफी स्थलों से अपने प्रतीकात्मक संबंध स्थापित करते हुए उन्होंने जनता के विभिन्न वर्गों के मन में प्रवेश पाया है। यही कारण है कि उनकी छवि आज मात्र एक राजनेता की नहीं रह गई है, बल्कि उसके पार चली गई है। इस छवि ने एक सामाजिक नेता, सांस्कृतिक कार्यकर्ता तथा लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं में शामिल रहने वाले व्यक्तित्व का प्रतीक गढ़ा है। स्पष्ट है कि उनकी इस छवि ने विपक्ष की कठिनाई बढ़ा दी है।
यह उल्लेखनीय है कि भाजपा ने इस बार अपने कई विवादास्पद या विवाद पैदा करने वाले नेताओं का टिकट काट दिया है। अनंत कुमार हेगड़े, प्रज्ञा ठाकुर, रमेश बिधूड़ी जैसे नेता शायद यह मानते थे कि विवाद पैदा कर राजनीति की जा सकती है। इनका टिकट कटना भी प्रधानमंत्री मोदी की नई राजनीतिक शैली की तरफ इशारा कर रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने विजयी उम्मीदवारों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि विवाद से बचिए।
पिछले दिनों भी उन्होंने दोहराया कि पार्टी नेता विवाद से बचें और सिर्फ विकास कार्यों की चर्चा करें। इसे हम एक प्रकार से एक ऐसे समय जनतांत्रिक राजनीति में सकारात्मक राजनीति के निर्माण की शैली के रूप में देख सकते हैं, जब अनेक नेता विवाद एवं नकारात्मक चर्चा से अपनी राजनीतिक प्रसांगिकता बनाए रखना चाहते हैं। देखना होगा कि भारतीय राजनीति में आगे चल कर यह शैली कैसे फलती-फूलती एवं विकसित होती है और विपक्ष उसका सामना कैसे करता है?
(लेखक जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, प्रयागराज के निदेशक हैं)