खुला है कानूनों के दुरुपयोग का रास्ता, भारतीय न्याय संहिता पर विचार करते समय गंवा दिया गया एक बड़ा अवसर
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2015 में दुष्कर्म के मामलों में शादी का झांसा देकर दुष्कर्म के केस 21 प्रतिशत थे। वहीं 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 51 प्रतिशत तक जा पहुंचा। इसी कारण दिसंबर 2022 में उड़ीसा उच्च न्यायालय ने शादी के झूठे वादे पर शारीरिक संबंध के लिए सहमति के कानून की वैधता निर्धारित करने पर गंभीरता से विचार करने के लिए कहा था।
दीपिका नारायण भारद्वाज। वर्ष 2005 में सुशील कुमार बनाम यूनियन आफ इंडिया केस में सुप्रीम कोर्ट ने जब धारा 498-ए के दुरुपयोग को कानूनी आतंकवाद की संज्ञा दी, तब इस कानून को लागू हुए दो दशक से अधिक का समय बीत चुका था। लाखों बेगुनाह पुरुष और महिलाएं इस कानून की वजह से बिना किसी गलती के जेल जा चुके थे और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चिंता व्यक्त की थी। उस फैसले के बाद भी 498-ए के झूठे मुकदमे और बेगुनाहों को पुलिस द्वारा जेल में डालना बंद नहीं हुआ। अंततः कोर्ट ने कहा कि अब इस धारा के अंतर्गत किसी भी पुरुष या उसके परिवार को बिना गंभीर जांच के गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा।
यह कानून आया तो शादीशुदा महिलाओं को दहेज प्रताड़ना से रोकने के लिए था, लेकिन उसका बेजा इस्तेमाल हर उस महिला द्वारा किया गया, जिसने कतिपय कारणों के चलते अपने पति और उसके रिश्तेदारों से बदला लेना चाहा।
नए आपराधिक कानूनों में भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत 498-ए से भी खतरनाक, एकतरफा और बेहद आसानी से दुरुपयोग होने वाला एक नया प्रविधान लाया जा रहा है, जो तमाम जिंदगियां बर्बाद करेगा। इस प्रविधान का नाम है धारा-69, जिसके अनुसार यदि कोई पुरुष किसी महिला को शादी या नौकरी या पदोन्नति का झूठा झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे दस साल तक की सजा हो सकती है। इसमें अपनी पहचान छिपाकर शादी करने को भी अपराध माना गया है। किसी भी आम इंसान को इस कानून को पढ़कर शायद पहली बार में कुछ अजीब न लगे।
नि:संदेह झूठ बोलकर शारीरिक संबंध बनाना गलत है, लेकिन सहमति से बनाए गए संबंध में किसी भी तरह का झांसा दिया गया था या नहीं, मंशा झूठी थी या नहीं, यह कानून कैसे जांचेगा? सिर्फ महिला के कहने भर से यह मान लिया जाएगा कि पुरुष ने ऐसा झांसा दिया था। उसे तो मात्र शिकायत के आधार पर ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा और सालों-साल मुकदमा चलाया जाएगा। अंत में यदि साबित हो भी गया कि ऐसा कोई झांसा नहीं दिया गया तो भी उसकी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।
क्या 21वीं सदी की महिलाएं जो सशक्त हैं, पढ़ी-लिखी हैं, सही-गलत जानती हैं, उन्हें कोई भी आदमी शादी, नौकरी, प्रमोशन का झांसा देकर संबंध बनाने को कहेगा और वे मान लेंगी? सोच-समझकर बनाए गए संबंधों को अपराध की श्रेणी में कैसे डाला जा सकता है? मान लीजिए कि कोई व्यक्ति नौकरी का लालच देकर शारीरिक संबंध बनाता है और नौकरी दे भी देता है तो क्या अब यह कोई अपराध नहीं कहा जाएगा? क्या हम यह समझ लें कि कानून अब कह रहा है कि नौकरी या पदोन्नति के लिए शारीरिक संबंध बना लेना सही है?
नए कानून के आने से पहले हजारों ऐसे मामले हमारी न्याय प्रणाली का समय बर्बाद कर चुके हैं, जिसमें सालों-साल के प्रेम संबंध या लिव-इन रिलेशनशिप के बाद महिलाओं ने पुरुष पर दुष्कर्म का मुकदमा यह कहते हुए कर दिया कि उन्हें शादी का झांसा देकर इतने लंबे समय तक संबंध बनाए गए। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिसमें 21 साल से कम उम्र के लड़कों पर उनसे कहीं अधिक उम्र की महिलाओं द्वारा शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए, भले ही वे कानूनी तौर पर शादी नहीं कर सकते। कई ऐसे मामले भी प्रकाश में आए हैं, जहां एक ही महिला ने पांच या छह अलग-अलग पुरुषों पर शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया और पुलिस ने मुकदमे दर्ज भी कर लिए।
हाल में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने ऐसे ही एक मुकदमे को रद करते हुए कहा कि महिला अलग-अलग शहरों में ऐसे तीन मुकदमे कर चुकी है, लेकिन उस महिला को दंडित नहीं किया गया। ऐसे में धारा-69 का दुरुपयोग धड़ल्ले से होगा। कोई भी रिश्ता चाहे किसी भी वजह से टूटा हो, अगर लड़की चाहेगी तो यह कहकर लड़के को जेल में डाल दिया जाएगा कि उसने शादी का झांसा दिया था। संबंध चाहे एक दिन का हो या फिर 10 साल का, अगर पुरुष शादी करने से इन्कार कर दे तो महिला उसके ऊपर यह मुकदमा कर पाएगी, क्योंकि कानून में कहीं यह नहीं बताया गया है कि शारीरिक संबंध की अवधि कितनी होनी चाहिए या कितने वर्षों तक पुरुष की मंशा चल सकती है।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2015 में दुष्कर्म के मामलों में शादी का झांसा देकर दुष्कर्म के केस 21 प्रतिशत थे। वहीं 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 51 प्रतिशत तक जा पहुंचा। इसी कारण दिसंबर 2022 में उड़ीसा उच्च न्यायालय ने शादी के झूठे वादे पर शारीरिक संबंध के लिए सहमति के कानून की वैधता निर्धारित करने पर गंभीरता से विचार करने के लिए कहा था।
न्यायाधीश संजीब कुमार पाणिग्रही ने कहा था, ‘दुष्कर्म से संबंधित कानूनों का उपयोग उन मामलों में नहीं किया जाना चाहिए, जहां महिलाएं अपनी पसंद से किसी रिश्ते में प्रवेश कर रही हैं।’ सवाल है कि जब रिश्ते टूटने की स्थिति में शादी का झूठा वादा करके दुष्कर्म के प्रविधान का दुरुपयोग पहले से ही हो रहा है तो क्या सरकार को नया कानून लाने से पहले इस पर गहन विचार-विमर्श नहीं करना चाहिए था?
धारा-69 संविधान के अनुच्छेद-14 और 15 का उल्लंघन भी करती है, क्योंकि इसके अनुसार यह माना गया है कि शादी का वादा करके सहमति से बनाया गया यौन संबंध तभी अपराध होगा जब कोई पुरुष इससे मुकर जाए, महिला नहीं। इसमें यह भी माना गया है कि कोई महिला किसी पुरुष को नौकरी या पदोन्नति का वादा करके उसका यौन शौषण कर ही नहीं सकती। यह कानून स्वाभाविक रूप से लिंग आधारित, भेदभावपूर्ण और पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। पूरे विश्व में इस तरह का कोई कानून नहीं है।
भारतीय न्याय संहिता पर विचार करते समय विधि निर्माताओं के पास अवसर था कि वे कानूनों को स्त्री या पुरुष सबके लिए समान करें। शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा के शिकार पुरुष भी हैं, किंतु उनके लिए कानून नहीं हैं। बजाय इस भेदभाव को दूर करने के सरकार पुरुषों के उत्पीड़न का एक दरवाजा और खोल रही है। इन कानूनों के दुरुपयोग की वजह से हो रही पुरुषों की आत्महत्याओं पर कब चेता जाएगा?
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार, डाक्यूमेंट्री फिल्ममेकर और इक्वल राइट्स एक्टिविस्ट हैं)