स्मृति इरानी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज एक समावेशी राष्ट्र का निर्माण हो रहा है, जिसमें लैंगिक समानता को महत्व दिया जा रहा है। महिलाओं की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रभावी नीतियां अपनाकर भारत की विकास गाथा में एक नया आयाम जोड़ा जा रहा है। पूर्व में लैंगिक समानता के मोर्चे पर निराशा की स्थिति थी, लेकिन आज उसकी जगह लोकतांत्रिक नीतियों और उनके सफल कार्यान्वयन ने ले ली है।

आज शासन-प्रशासन के ढांचे में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और उनका कार्यालय कठिनाई से अर्जित इस संप्रभुता का प्रतीक है। उनकी आदिवासी पहचान राष्ट्रपति के पद को और भी गौरवशाली बनाती है। अंतरिम बजट में उनकी अध्यक्षता एक अत्यंत गौरवपूर्ण क्षण रहा। यह ऐतिहासिक क्षण 75वें गणतंत्र दिवस के साथ मेल खाता है, जो समानता और न्याय के सिद्धांतों को मूर्त रूप देता है। 75 वर्षों के बाद भाजपा सरकार में महिलाओं को जल, थल, नभ और अंतरिक्ष सहित सभी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होते देखा जा रहा है। इक्कीसवीं सदी महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए किए गए विचारशील सुधारों का पड़ाव है।

महिलाओं के जीवन में भाजपा सरकार में अभूतपूर्व सुधार हुए हैं। जैसे 11 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण, 30.64 करोड़ मुद्रा लोन के वितरण और उज्ज्वला योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे वाली 10.1 करोड़ महिलाओं को गैस कनेक्शन उपलब्ध होना है। प्रजनन अधिकारों पर भी अब खुलकर चर्चा हो रही है। हालिया बजट घोषणाओं के अनुसार 36 लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं और आशा कार्यकर्ताओं को आयुष्मान भारत योजना के दायरे में लाया गया है। यह सभी सामाजिक वर्गों की महिलाओं के प्रति मोदी जी की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

यह दृष्टिकोण भारतीय महिलाओं की व्यावसायिक क्षमता का उपयोग करके तीन करोड़ महिलाओं को उद्यमी बनाने पर केंद्रित है। इन उद्यमियों को ‘लखपति दीदी’ के रूप में जाना जाएगा। इन महिलाओं के प्रति वर्ष एक लाख रुपये या उससे अधिक की आय अर्जित करने की उम्मीद है। कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को बदलने के लिए, “ड्रोन दीदी” योजना से कृषि के तौर-तरीके आधुनिक होंगे और पैदावार भी बढ़ेगी। महिलाओं के लिए ऐसी पहल 2014 में मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने और प्रधान सेवक के तौर पर देश की सेवा पर जोर देने से हुई। महिलाओं के लिए विधायिका में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना और अनुच्छेद 370 को समाप्त करना क्रमशः महिलाओं की समान भागीदारी को बढ़ावा देने और संपूर्ण राष्ट्र को एकजुट करने की ओर प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में लिंग-समावेशी निधि को शामिल करना प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता को दर्शाता है। यह निधि बालिकाओं की शिक्षा और कल्याण के लिए निरंतर हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है। 15वें वित्त आयोग ने भी अंतर-सरकारी राजकोषीय हस्तांतरण फार्मूले में लैंगिक पहलू को शामिल किया है, जिससे भारत में लैंगिक न्याय के लिए एक मजबूत आधार बना है।

इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र भी लैंगिक समानता के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जहां बड़ी संख्या में महिलाएं कार्यरत हैं। अनुसंधान एवं नवाचार में एक लाख करोड़ का निवेश दिखाता है कि आज का भारत तेजी से विकास की नई बुलंदियों पर स्वयं को स्थापित कर रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि सभी एसटीईएम (साइंस, टेक, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स) स्नातकों में 43 प्रतिशत महिलाएं हैं, जो कई विकसित देशों से कहीं आगे हैं।

भारत सरकार ने 2024-25 के बजट में महिलाओं के विकास और कल्याण पर खर्च को पिछले साल के मुकाबले 38.7 प्रतिशत बढ़ा दिया है। जेंडर बजट स्टेटमेंट के अनुसार 2024-25 में 43 मंत्रालयों/विभागों/केंद्र शासित प्रदेशों को 2023-24 की तुलना में आवंटन 38.6 प्रतिशत अधिक बढ़ा है। यह मजबूत प्रतिबद्धता लैंगिक कार्यक्रमों के प्रति एक रणनीतिक और समावेशी दृष्टिकोण को रेखांकित करती है। इसके परिणामस्वरूप कुल केंद्रीय बजट में लैंगिक बजट का हिस्सा पांच प्रतिशत से बढ़कर 6.5 प्रतिशत हो गया है।

यह प्रतिबद्धता केवल घरेलू क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे जी-20 अध्यक्षता के दौरान नई दिल्ली घोषणा जैसी नीतियों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आगे बढ़ाया गया है। कोविड काल की विषम परिस्थितियों के दौरान जिस समय शीर्ष पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएं चरमरा गई थीं, तब भी भारतीयअर्थव्यवस्था मजबूत बनी रही। जी-20 का नई दिल्ली घोषणापत्र आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण, लैंगिक डिजिटल विभाजन को पाटने, लैंगिक-समावेशी जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने और महिलाओं की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। यह वैश्विक लैंगिक समानता के लिए भारत के समर्पण का प्रमाण है। विश्व आर्थिक मंच पर भारत की प्रभावशाली उपस्थिति इसे लैंगिक सशक्तीकरण के एक मजबूत समर्थक के रूप में प्रतिबिंबित करती है।

नीति-निर्माण में महिलाओं को परंपरागत रूप से सूक्ष्म आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाता था, लेकिन प्रधानमंत्री के दूरदर्शी दृष्टिकोण ने इस दिशा में व्यापक आर्थिक प्रभाव डाला है। स्वास्थ्य, शिक्षा और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में लैंगिक समानता को न केवल स्वीकार किया गया है, बल्कि इसे शासन ढांचे में भी संबोधित किया गया है। मोदी जी ने महिलाओं को जिम्मेदारियां सौंपकर इस दृष्टिकोण पर काम किया है और विभिन्न क्षेत्रों में सार्थक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और सामाजिक स्तर के निचले पायदान पर महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं। आज महिला-प्रधान विकास केवल कुछ कार्यक्रमों तक सीमित नहीं, बल्कि राष्ट्र की विकास गाथा के केंद्र में खड़ा है।

महिलाओं के नेतृत्व में विकास केवल जटिल योजनाओं तक सीमित न होकर राष्ट्र की प्रगति गाथा की नींव रखने वाला है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ पहल को सफल बनाना और महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित किया जाना दर्शाता है कि प्रधानमंत्री के न्यू इंडिया विजन में नारी शक्ति की उपस्थिति को अभूतपूर्व महत्व दिया जा रहा है। मोदी जी के नेतृत्व में लैंगिक न्याय की ओर उठाए जा रहे कदम राष्ट्र को ऐसे युग की ओर ले जा रहे हैं, जहां मात्र खोखले राजनीतिक प्रलोभन नहीं, बल्कि प्रभावी कार्रवाई के लिए कदम उठाए जाते हैं। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में देश समावेशी विकास के साथ प्रगति के नए आयाम गढ़ रहा है।

(लेखिका केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री और अल्पसंख्यक कार्य मंत्री हैं)