आत्मविश्वास से भरी मोदी सरकार, तीसरी बार सत्ता हासिल करने के मिल रहे संकेत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अंतरिम बजट के पहले यह कह दिया था कि जब चुनाव का समय निकट होता है तब आमतौर पर पूर्ण बजट नहीं रखा जाता। हम भी उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए पूर्ण बजट नई सरकार बनने के बाद आपके समक्ष लेकर आएंगे। यह कथन उनके इस आत्मविश्वास का ही परिचायक है कि वह सत्ता में लौट रहे हैं।
संजय गुप्त। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के आखिरी वर्ष में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश अंतरिम बजट से न केवल सरकार का यह आत्मविश्वास झलकता है कि वह अपने कार्यों के बल पर ही तीसरी बार सत्ता में वापसी करेगी, बल्कि देश को विकसित राष्ट्र बनाने के उसके संकल्प का परिचय भी मिलता है। यह एक ऐसा अंतरिम बजट है, जिसमें सरकार ने चुनाव जीतने के लिए मतदाताओं को रिझाने के लिए कोई लोकलुभावन घोषणा नहीं की।
ध्यान रहे कि 2019 के अंतरिम बजट में कई लोकलुभावन घोषणाएं की गई थीं। इस बार ऐसा कुछ नहीं किया गया। इसका मतलब है कि सरकार यह मानकर चल रही है कि जनता को उस पर यह भरोसा है कि वह देशहित में सही दिशा में काम कर रही है। शायद जनता के इसी भरोसे के चलते अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने साफ तौर पर यह कहा कि पूर्ण बजट में बड़ी घोषणाएं की जाएंगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अंतरिम बजट के पहले यह कह दिया था कि जब चुनाव का समय निकट होता है, तब आमतौर पर पूर्ण बजट नहीं रखा जाता। हम भी उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए पूर्ण बजट नई सरकार बनने के बाद आपके समक्ष लेकर आएंगे। यह कथन उनके इस आत्मविश्वास का ही परिचायक है कि वह सत्ता में लौट रहे हैं। यह आत्मविश्वास बीते दस साल में अर्जित की गई सफलताओं से उपजा है। इन सफलताओं का महत्व इसलिए है, क्योंकि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के लगभग दो वर्ष कोविड महामारी की भेंट चढ़ गए।
कोविड महामारी के चलते जहां कई प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाएं संकट में फंस गईं और अभी तक उबर नहीं सकी हैं, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड संकट से उबरकर सबसे तेज गति से बढ़ रही है। भारत जैसे विशाल आबादी और अपेक्षाकृत कमजोर स्वास्थ्य ढांचे वाले देश का कोविड संकट से पार पाना एक कठिन चुनौती थी, लेकिन मोदी सरकार ने इस चुनौती का सामना कहीं अधिक कुशलता से किया। इसी कारण इस समय देश का माहौल यह रेखांकित कर रहा है कि मोदी सरकार तीसरी बार सत्ता में आने जा रही है। इस माहौल का एक कारण यह भी है कि विपक्ष बिखरा हुआ है और वह जनता को आकर्षित करने वाला न तो कोई विमर्श खड़ा पा रहा है और न ही कोई वैकल्पिक एजेंडा पेश कर पा रहा है।
सरकार ने अंतरिम बजट में ऐसी कोई घोषणा नहीं की, जिससे विपक्ष को यह कहने का अवसर मिलता कि उसने लोगों को लुभाने के लिए रेवड़ियां बांटने का काम किया। जब वित्त मंत्री संसद में अंतरिम बजट पेश कर रही थीं, तब विपक्षी सांसदों को उसकी तार्किक आलोचना का कोई अवसर नहीं दिखा। विपक्ष रस्मी तौर पर ही अंतरिम बजट की आलोचना कर सका, क्योंकि उसके पास कहने के लिए बहुत कुछ नहीं था। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम केवल यही कह सके कि सरकार ने रोजगार का ध्यान नहीं रखा। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे यह कहने तक सीमित रहे कि अंतरिम बजट कामचलाऊ है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में केवल अपनी सरकार की उपलब्धियों को विस्तार से रेखांकित ही नहीं किया, बल्कि सरकार के भावी एजेंडे की झलक भी पेश की। इसी के साथ उन्होंने विपक्ष की चुनावी रणनीति को भी कठघरे में खड़ा किया। विपक्ष एक अर्से से जाति जनगणना की मांग कर मोदी सरकार को घेर रहा था। इसका जवाब प्रधानमंत्री ने यह कहकर दिया कि उनके लिए केवल चार ही जातियां हैं- महिला, युवा, किसान और गरीब। उन्होंने इन चारों वर्गों के उत्थान के लिए विशेष उपाय करने शुरू कर दिए हैं। इसकी झलक अंतरिम बजट में भी दिखाई दी।
यह झलक दिखाकर मोदी सरकार ने विपक्ष की जात-पांत की राजनीति के साथ उसके क्षेत्रवाद, अल्पसंख्यकवाद और तुष्टीकरण के तौर-तरीकों को भी चुनौती दी। मोदी सरकार एक लंबे समय से यह भी प्रदर्शित कर रही है कि वह भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। उसने 2047 तक देश को विकसित बनाने का न केवल संकल्प लिया है, बल्कि उसे पूरा करने के लिए आवश्यक कदम भी उठाए हैं। इन कदमों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
यह विडंबना ही है कि जब मोदी सरकार देश को विकसित बनाने के लक्ष्य को पाने के लिए राज्यों का भी सहयोग लेने को तत्पर है और इसी कारण अंतरिम बजट में राज्यों के लिए 50 वर्ष तक बिना ब्याज के 75 हजार करोड़ रुपये के कर्ज का प्रविधान किया, तब कुछ विपक्षी दल क्षेत्रवाद की राजनीति को हवा देने में लगे हुए हैं। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के भाई और कांग्रेस सांसद डीके सुरेश ने अंतरिम बजट पर यह बेतुका बयान दिया कि यदि दक्षिणी राज्यों के हिस्से का पैसा इसी तरह उत्तर भारत में बांटा जाएगा तो वे अलग देश की मांग करने के लिए विवश होंगे।
यह हर लिहाज से एक खतरनाक बयान है। इसी कारण कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को इस बयान की आलोचना करनी पड़ी। चिंताजनक यह है कि डीके सुरेश जैसा बयान तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी दिया। उन्होंने यह कहा कि अंतरिम बजट में तमिलनाडु की अनदेखी की गई है। साफ है कि वह क्षेत्रवाद की अपनी संकीर्ण राजनीति के चलते इससे अनभिज्ञ ही रहना चाहते हैं कि अंतरिम बजट किसी राज्य विशेष को ध्यान में रखकर नहीं बनाया जाता। यह पहली बार नहीं, जब कांग्रेस या उसके सहयोग दलों के नेताओं ने क्षेत्रवाद की राजनीति को हवा दी हो। वे अतीत में भी ऐसा करते रहे हैं।
अंतरिम बजट के बाद देश को प्रतीक्षा है पूर्ण बजट की, क्योंकि उसमें बड़ी घोषणाएं करने की बात कही गई है। देश की जनता को मोदी सरकार से अन्य अनेक अपेक्षाओं के साथ यह उम्मीद भी है कि वह अपने सुधार कार्यक्रम को और अधिक तेजी दे, क्योंकि कई सुधारों की प्रतीक्षा है। भले ही केंद्र में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार का कोई बड़ा मामला देखने को न मिला हो, लेकिन नौकरशाही के मध्य और निम्न स्तर पर भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग सकी है। मोदी सरकार को इस पर ध्यान देना होगा, क्योंकि आम आदमी इसी भ्रष्टाचार से त्रस्त है।
[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]