कमल किशोर सक्सेना। यह बात अब पुरानी हो चुकी है कि हमारे देश का लोकतंत्र दुनिया में सबसे पुराना है। पुराने चावल और पुरानी शराब से भी पुराना। ब्रिटिश हुकूमत में जोर नहीं था इसलिए अंग्रेज अपने ढंग से लोकतंत्र लागू किए रहे। तब लोकतंत्र में ज्यादा संभावनाएं भी नहीं थीं, किंतु आजादी के बाद दोनों हाथों में लोकतंत्र और ठेंगे पर कानून आ गया। जी भरकर उसका इस्तेमाल किया गया। देश में मिलें-कारखाने स्थापित किए गए। भाई-भतीजावाद स्थापित किया गया। एक परिवार के शासन की कला स्थापित की गई। घोटालों और भ्रष्टाचार का रिकार्ड स्थापित हुआ।

आजादी का अमृतकाल आते-आते महसूस हुआ कि अब लोकतंत्र में वह बात नहीं रही। कुछ बासीपन आ गया है। वही घोटाले, भ्रष्टाचार, जांच, मुकदमा, सजा, जमानत, गैर जमानती दोष हो तो अस्पताल में भर्ती होकर ‘बीमारी’ सुख। फिर नए चुनाव। फिर नए कुर्ते-पैजामे में नई शपथ। नई देश सेवा। फिर वही घोटाले। इसलिए लोकतंत्र को नई ऊर्जा देने के लिए कुछ नया करना चाहिए। इस नए के चक्कर में पिछले दिनों ऐसे-ऐसे प्रयोग किए गए कि एक बार तो लोकतंत्र का ही खुद पर से विश्वास उठ गया, लेकिन उठकर जाता कहां, न्यूटन के गति के नियम उसे घसीटकर फिर जमीन पर ले आए।

बिहार लोकतंत्र का जनक कहा जाता है। इसी प्रदेश के लिच्छवी गणराज्य से लोकतंत्र ने जन्म लिया। अतः लोकतंत्र के साथ प्रयोग करने का उसका पुश्तैनी और सामंती अधिकार है। ईसा पूर्व के हर्यक राजवंश, शिशुनाग राजवंश और नंदवंश का तो पता नहीं, किंतु आधुनिक इतिहास में चारा भक्षक वंश के शासन का विस्तार से उल्लेख मिलता है। इस वंश के उत्तराधिकारी को हाल में शासक का पूर्ण दर्जा मिलने के पूर्व ही सत्ता से बेदखल कर दिया गया। इस बेदखली के साथ कई अरमानों की भ्रूण हत्या हो गई। कई माफिया का करियर चौपट हो गया और अनेक उदीयमान अपराधी बेरोजगार हो गए।

बिहार में लोकतंत्र की जड़ में मट्ठा डालने का काम आचार्य चाणक्य के जमाने से चल रहा है। हाल में मट्ठे की नई किस्त डाली गई। प्रदेश के सदाबहार मुखिया ने एक ऐसा रिकार्ड बनाया है, जिसे देखकर गिनीज बुक शायद अपने सारे रिकार्ड खुद तोड़ डाले। वह संभवतः संसार के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए, मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा इसलिए दिया, ताकि फिर से मुख्यमंत्री बन सकें। यह सारा घटनाक्रम चंद घंटों में ही संपन्न हो गया।

अब आइए बिहार के पड़ोसी झारखंड पर। यहां भी सीएम-सीएम खूब खेला जाता है। उसके साथ ही चलता है ‘समन-समन’ का भी खेला। कभी सीएम आगे, समन पीछे। कभी समन आगे, सीएम पीछे। इसी आगे-पीछे की रेस में पिछले दिनों सीएम को पहले लापता, फिर गिरफ्तार होना पड़ गया। कुछ ऐसा ही खेल दिल्ली में भी चल रहा है। अनेक घोटालों के आरोपों से ओतप्रोत वहां के मुखिया के पास भी समन को सम्मान देने का समय नहीं है। अब अदालत ने यह समय तय कर दिया है।

'लोकतंत्र के साथ प्रयोग' की गाथा में यदि कांग्रेस का नाम न लिया जाए तो अध्याय अधूरा रहता है। देश की सबसे पुरानी पार्टी जबसे सत्ता से बाहर हुई है, बर्बादी के नए कीर्तिमान स्थापित करती जा रही है। गठबंधन से कुछ आस बंधी थी, लेकिन वह भी बिखर रहा है। छोटे-बड़े दलों में गठबंधन से बाहर होने की होड़-सी लगी है। पता नहीं चुनाव तक कितना बचेगा। शायद इसी बिखराव को बचाने के लिए पूर्व से पश्चिम तक की 'न्याय यात्रा' निकाली जा रही है। न्याय कितना मिलेगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन पार्टी का वोट प्रतिशत इतनी तेजी से गिरता दिख रहा है कि पता नहीं कि वह कहां जाकर ठहरेगा। सुनने में आया है कि कुछ दुखी पार्टी जन सहालग के दौरान बारातों में बैंड बजाने लगे हैं। ऐसे ही एक बैंड वाले का कहना है कि राजा बेटा के सिर के बाल सफेद होने के पहले समय से हाथों में हल्दी लग जाती तो इस वक्त संतान कम से कम 18 साल की होती और पार्टी का एक वोट तो बढ़ ही जाता।