ए. सूर्यप्रकाश। कनाडा सरकार के अनर्गल आरोपों और वहां पनप रही भारत विरोधी ताकतों के प्रति जस्टिन ट्रूडो के ढुलमुल रवैये पर भारत सरकार की कठोर प्रतिक्रिया बहुत कुछ कहती है। असल में यह ‘नया भारत’ है जो अपने समक्ष चुनौतियों का जवाब देने में कोई संकोच नहीं करता। स्वतंत्रता के बाद कई दशकों तक भारत पश्चिमी देशों से लेकर चीन और पाकिस्तान द्वारा निशाना बनाया जाता रहा, क्योंकि हमारे नेताओं का रवैया शिथिल था। यहां तक कि जब आक्रामक रुख की आवश्यकता होती, तब भी भारत नरमी दिखाता रहा।

दुनिया भारत के नरम रवैये की अभ्यस्त हो गई थी। यही देखकर कनाडा ने सोचा होगा कि वह भारत को दबाव में लेकर स्थिति का लाभ उठा लेगा। ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि राष्ट्रीय पटल पर नरेन्द्र मोदी के उभार के बाद से स्थितियां बदल गई हैं। भारत के पड़ोस में भी पाकिस्तान और चीन भी इससे अवगत हैं कि उन्हें नए भारत के साथ जूझना है। यहां तक कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ भी बदले हुए भारत के भाव को महसूस कर चुके हैं और उसी अनुरूप उसके साथ संबंधों की दिशा नए सिरे से निर्धारित करने में लगे हुए हैं।

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत को हल्के में लेते हुए उस पर अनर्गल आरोप मढ़ दिए, जबकि भारत लंबे समय से कनाडा को आगाह करता रहा है कि वह अपने यहां पनप रहे खालिस्तानी तत्वों के साथ सख्ती से निपटे, पर ऐसा हुआ नहीं। वहां भारतीय नेताओं एवं राजनयिकों की हत्या का आह्वान होने लगा। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का महिमामंडन होने लगा। कनाडा में अलगाववादियों के बुलंद हौसले का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि ओटावा में भारतीय उच्चायोग और टोरंटो में काउंसल-जनरल की हत्या के आह्वान से जुड़े पोस्टर तक लगाए गए। हैरानी की बात यह रही कि ट्रूडो और उनकी सरकार ने इसे अपने नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताते हुए कोई हस्तक्षेप करना आवश्यक नहीं समझा।

दोनों देशों के बीच टकराव हरदीप सिंह निज्जर नाम के अलगाववादी की हत्या के बाद शुरू हुआ। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में 18 जून को नकाबपोश लोगों ने निज्जर की गोली मार कर हत्या कर दी थी। निज्जर की हत्या के बाद कनाडा ने एक भारतीय राजनयिक को निष्कासित कर दिया। उन पर अपराध में मिलीभगत का आरोप लगाया। भारत ने भी जवाब में कनाडा के राजनयिक को निष्कासित कर दिया। उसके बाद से दोनों देशों के रिश्ते रसातल में जाते दिखे और रही-सही कसर कनाडाई संसद में ट्रूडो के इस बयान ने पूरी कर दी कि कनाडा की धरती पर उनके एक नागरिक की हत्या में भारत सरकार की संलिप्तता के कुछ पुख्ता आरोप मिले हैं।

भारत ने उनके आरोपों को बेतुका और राजनीति से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया। भारत ने कनाडा पर यह आरोप भी लगाया कि अपने यहां भारत-विरोधी अलगाववादी गतिविधियों पर वह कोई विराम नहीं लगा पा रहा। पहले तो भारत ने कनाडा के नागरिकों के लिए वीजा जारी करने पर रोक लगा दी और फिर भारत से 41 राजनयिकों को हटाने का निर्देश दिया। राजनयिकों को हटाने के मामले में भारत ने कूटनीतिक संबंधों में ‘समता’ के सिद्धांत का हवाला दिया, लेकिन असल में यह भारत का ऐसा सख्त रवैया था, जो कनाडा या पश्चिम के किसी देश ने पहले नहीं देखा था। यह उल्लेखनीय है कि भारत ने इसकी परवाह नहीं की कि अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड आदि कनाडा के सुर में सुर मिला रहे हैं।

कनाडा को जल्द ही अहसास हो गया कि अगर वह भी जवाब में भारतीयों को वीजा देना बंद कर देगा तो अपना ही नुकसान करेगा, क्योंकि लाखों की तादाद में भारतीय छात्र कनाडा में पढ़ते हैं। वीजा पर कोई रोक या प्रतिबंध कनाडाई शिक्षण संस्थानों की आर्थिकी बिगाड़ देता। साथ ही कनाडा में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी आबादी है। उनमें से अधिकांश ने कनाडा की नागरिकता ले ली है। यदि कनाडा भारतीयों के लिए वीजा पर रोक लगाता है तो ये नागरिक ही बुरी तरह प्रभावित होंगे, जिनमें से अधिकांश की जड़ें पंजाब में हैं, जहां आज भी उनके रिश्तेदार रहते हैं। दूसरी ओर कनाडा के कुछ ही लोग ऐसे होंगे, जो भारत में बसे हैं या उन्होंने भारतीय नागरिकता ली है। वीजा पर प्रतिबंध से केवल पर्यटकों की आवाजाही ही प्रभावित होती। ऐसे में कनाडा ने ‘जैसे को तैसा’ वाली नीति नहीं अपनाई। वहीं, कनाडा द्वारा भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा का आश्वासन देने के बाद भारत ने वीजा सेवाएं बहाल कर दी हैं। इससे कनाडा में बसे भारतीय मूल के लोगों को राहत मिलेगी।

जहां तक निज्जर हत्याकांड का सवाल है तो उसकी जांच प्रक्रिया ही संदेह के घेरे में है। सब कुछ सीसीटीवी में कैद होने के बावजूद जांच एजेंसियों के स्तर पर हीलाहवाली जारी है। अभी तक कोई ठोस साक्ष्य नहीं रखे गए हैं। जबकि दावा किया जा रहा है कि जांच में कोई कोताही नहीं की जा रही। इस मामले पर टकराव बढ़ने के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने वैश्विक फलक पर प्रधानमंत्री मोदी के स्पष्ट एवं दृढ़ रवैये को ही प्रदर्शित किया। वाशिंगटन में उन्होंने यह कहने में कोई संकोच नहीं किया कि कनाडा में कार्यरत भारतीय राजनयिकों के लिए माहौल बहुत हिंसक और उकसावे वाला है, जिस पर विराम लगना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री ट्रूडो के आरोप भारतीय नीति से मेल नहीं खाते और यदि कनाडा की ओर से कुछ प्रासंगिक एवं ठोस मिलता है तो भारत उसकी परख करेगा। जयशंकर ने कहा कि खालिस्तानी अलगाववाद का मुद्दा भारत और कनाडा के बीच पिछले काफी समय से चिंता का विषय बना हुआ है। इसकी जड़ें पिछली सदी के नौवें दशक से जुड़ी हुई हैं, लेकिन तब वह उतना सक्रिय नहीं था, जितना आज कनाडा के शिथिल रवैये के चलते हो गया है।

भारत के कड़े रुख को देखते हुए कनाडा को कदम पीछे खींचने पर विवश होना पड़ा है। खुद ट्रूडो ने कहा कि वह मामले को और लंबा नहीं खींचना चाहते। प्रधानमंत्री मोदी का दृढ़ता से भरा रुख कम से कम अभी तो फायदेमंद दिख रहा है। अंतत: इसका चाहे जो परिणाम आए, लेकिन यह तय है कि पूरे विश्व को यह संदेश अवश्य गया है कि अब भारत को निशाना नहीं बनाया जा सकता।

(लेखक लोकतांत्रिक मामलों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)