ब्रह्मा चेलानी: बीता साल शांति के नहीं, बल्कि सशस्त्र टकराव के नाम रहा। जहां रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया तो यमन और सीरिया से लेकर इथियोपिया तक युद्ध की आग भड़कती रही। इस बीच कई देशों में आंतरिक संघर्ष भी तेज होता गया। पाकिस्तान-अफगानिस्तान बेल्ट से लेकर म्यांमार और नाइजीरिया में ऐसा देखने को मिला। हालांकि दुनिया पर अगर किसी ने सबसे ज्यादा असर डाला तो यह यूक्रेन में छिड़ा वह युद्ध ही था, जिसने वैश्विक ऊर्जा और खाद्य संकट उत्पन्न कर दिया और इससे तमाम देश बुरी तरह प्रभावित हुए। ऐसे में कुछ सवाल स्वाभाविक हैं। क्या 2023 अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता के लिए बेहतर सिद्ध होगा? क्या इस साल वैश्विक ऊर्जा और खाद्य संकट से कोई राहत मिलेगी और कोविड-19 पर अंततः पूरी तरह नियंत्रण पाया जा सकेगा?

वैश्विक ऊर्जा बाजारों में उथल-पुथल से ऊर्जा संसाधनों के दाम खासे बढ़ गए हैं। इसकी एक वजह यूरोप की सस्ते रूसी ऊर्जा संसाधनों से किनारा करना रही, जिसने उसकी वृद्धि को शक्ति दी थी। वैश्विक ऊर्जा खपत में यूरोपीय संघ की 11 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इसे देखते हुए एक ऐसे समय जब अंतरराष्ट्रीय तेल और एलएनजी आपूर्ति पहले से ही तंग है, तब उसके वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों की ओर पलायन के गहन वैश्विक दुष्प्रभाव दिखे। ऊर्जा की ऊंची कीमतों ने कई देशों में महंगाई को बेलगाम कर दिया, जिसने दैनंदिन जीवन को दुश्वार बना दिया। इसी परिदृश्य में इस साल वैश्विक मंदी की आहट सुनाई पड़ रही है।

जब कोविड-19 की आशंका कमजोर पड़ती और जनजीवन सामान्य होता दिखने लगा तो चीन में कोविड की नई सुनामी ने वैश्विक स्तर पर नए संक्रमण का खतरा बढ़ा दिया है। तीन साल पहले चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के शासन ने घरेलू स्तर पर कोविड पर पर्दा डालने के फेर में एक वैश्विक महामारी को जन्म दिया। चीन ने हाल में अपनी शून्य कोविड नीति को एकाएक समाप्त कर सभी बंदिशें हटा दीं, जिसका नतीजा कोविड की जबरदस्त लहर के रूप में सामने आया और यह आशंका बढ़ गई है कि यह देश दुनिया में किसी नए वैरिएंट को भेज सकता है। इस आशंका को इसलिए भी बल मिलता है, क्योंकि कोविड की मौजूदा लहर को अपने ही देश में नियंत्रित रखने के बजाय चीन ने अंतरराष्ट्रीय आवाजाही से जुड़े सभी प्रतिबंध हटा लिए हैं।

इस महामारी को लेकर चीन का रवैया शुरू से ही संदिग्ध रहा है। जब कोविड-19 उसकी सीमाओं के भीतर पनपा तो उसने वुहान और वायरस प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को विदेश जाने की अनुमति तो जारी रखी, लेकिन उनकी घरेलू आवाजाही प्रतिबंधित कर दी, ताकि वे बीजिंग, शंघाई और अन्य चीनी शहरों में कोरोना वायरस का संक्रमण न ले जाएं। जब थाइलैंड और दक्षिण कोरिया में कोविड के मामलों की कड़ी वुहान से जुड़ी, तब जाकर उसने 21 जनवरी, 2020 को अपने यहां कोरोना की बात मानी। तभी उसने यह भी माना कि इसका मानव से मानव में संक्रमण हो रहा है। उसके बाद भी कोविड की उत्पत्ति और वुहान की प्रयोगशाला से जोड़ी जा रही कड़ियों को लेकर चीन ने दुनिया को अंधेरे में रखा और अपनी ताकत से इससे जुड़ी जांच को प्रभावित किया। अब तक करीब 67 लाख लोगों का काल बन चुकी महामारी से भी स्वास्थ्य के मोर्चे पर नया संकट आसन्न दिखता है। याद रखें कि वुहान में विज्ञान की आड़ में मानवता के प्रति ऐसा खतरा उत्पन्न हुआ है, जो परमाणु हथियारों से भी खतरनाक है।

2022 शांति के लिहाज से बढ़िया नहीं रहा और नए शीत युद्ध के चलते 2023 के भी कुछ बेहतर रहने के आसार नहीं। अंतरराष्ट्रीय कानून जहां शक्तिशालियों के विरुद्ध शक्तिहीन होते हैं वहीं निर्बलों के विरुद्ध ताकतवर। अंतरराष्ट्रीय टकराव अक्सर तभी बढ़ते हैं, जब बड़ी शक्तियां अपनी सुरक्षा दायरे को बढ़ाने का प्रयास करती हैं। इसमें प्रतिद्वंद्वी या उभरती शक्तियों की काट के लिए अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार भी शामिल है। यदि किसी महाशक्ति को लगे कि उसके पारंपरिक प्रभाव वाले दायरे का देश प्रतिद्वंद्वी शक्तियों के पाले में जा रहा है तो वह इस दिशा को पलटने के लिए हरसंभव प्रयास करेगा, जैसा यूक्रेन के मामले में रूस ने किया। यूक्रेन के करीब 20 प्रतिशत हिस्से पर अपना दबदबा कायम करने के बाद रूस ने अक्टूबर से यूक्रेन के संवेदनशील बुनियादी ढांचे विशेषकर ऊर्जा ग्रिड को क्रूज मिसाइलों और ड्रोन से निशाना बनाना शुरू किया। इसके पीछे उसकी रणनीति बेरहम सर्दी के मौसम में यूक्रेन को अंधेरे में रहने और शीत का कोप झेलने पर विवश कर उसका हौसला तोड़ने की लगती है। पश्चिम से एयर-डिफेंस सिस्टम और तमाम अन्य हथियारों की निरंतर प्राप्ति के बावजूद यूक्रेन रूस के ऐसे हमले नहीं रोक पा रहा।

रूस-यूक्रेन मामले पर अमेरिका में बदल रहे घरेलू विमर्श के बीच एक तथ्य यह भी है कि उसने 2022 में यूक्रेन को करीब 50 अरब डालर की मदद दी और उसके नए 1.66 ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर व्यय में यूक्रेन के लिए 45 अरब डालर की अतिरिक्त सहायता की योजना भी शामिल है। यह संभवतः विगत सात दशकों में किसी भी यूरोपीय देश को मिली सबसे बड़ी अमेरिकी वित्तीय सहायता है। इसके बावजूद इसकी समर्थक अमेरिकी लाबी को यह किफायती लगता है, क्योंकि यह अमेरिकी रक्षा बजट का मामूली हिस्सा है और इससे अमेरिका को अपना एक भी सैनिक गंवाए बिना शत्रु की सैन्य शक्तियों को कुंद करने में सहायता मिल रही है।

यूक्रेन को लेकर अमेरिका का ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती रणनीतिक चुनौतियों से भटक रहा है। इसे लेकर खतरा बढ़ गया है कि चीन ताइवान के विरुद्ध मुहिम छेड़ सकता है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का आकलन है कि अगले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले शी ताइवान के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं। ताइवान पर चीनी हमले का असर यूक्रेन पर रूसी हमले से भी कहीं ज्यादा होगा। 2023 अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए इसलिए भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि जहां यूक्रेन में युद्ध थमता नहीं दिख रहा, वहीं चीन ताइवान से लेकर हिमालयी क्षेत्र में दुस्साहस दिखाते रहने से बाज नहीं आएगा।

(लेखक सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं)