कृषि कानूनों की आड़ में किसानों को मोहरा बना रहे राजनीतिक दल, अपना अस्तित्व बचाने में भी जुटी हैं ये पार्टियां
इन दिनों जिन तीन कृषि कानूनों को लेकर पंजाब के कुछ किसान संगठनों द्वारा आंदोलन किया जा रहा है दरअसल वे भी किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के उद्देश्य से ही लाए गए हैं लेकिन कांग्रेस और कुछ अन्य दल राजनीतिक स्वार्थ के चलते इनका विरोध कर रहे हैं।
[त्रिवेंद्र सिंह रावत]। देश के किसानों के हितों और उनकी स्थिति में सुधार को लेकर जितना काम बीते पांच-छह साल में हुआ है, उतना उससे पहले कभी नहीं हुआ। खेती-किसानी की लागत कम करने से लेकर उनके लिए बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति और किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार की तरफ से निरंतर कदम उठाए जा रहे हैं। इन दिनों जिन तीन कृषि कानूनों को लेकर पंजाब के कुछ किसान संगठनों द्वारा आंदोलन किया जा रहा है, दरअसल वे भी किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के उद्देश्य से ही लाए गए हैं, लेकिन कांग्रेस और कुछ अन्य दल राजनीतिक स्वार्थ के चलते इनका विरोध कर रहे हैं।
वास्तव में आज की तारीख में ये सभी दल अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं और जनता का विश्वास उन पर से उठ चुका है। इसलिए मुद्दों से विहीन ये पार्टियां कृषि कानूनों को मुद्दा बनाकर अपना अस्तित्व बचाने की कोशिश में किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर चला रही हैं। जबकि सत्ता में रहते हुए कांग्रेस के नेतृत्व में इन्हीं दलों ने कृषि और मंडी कानूनों में बदलाव की शुरुआत की थी, जिसे मौजूदा सरकार ने केवल परिणति तक पहुंचाया है। अगर 2014 से पूर्व मंडी कानून में बदलाव किसानों के हित में थे तो 2020 में ये किसान विरोधी कैसे हो गए?
पहले की तरह बनी रहेगी सरकारी मंडी की व्यवस्था
कृषि कानूनों के विरोधी तर्क दे रहे हैं कि इनसे देश में खेती-किसानी बर्बाद हो जाएगी और किसान अपनी जमीनों से वंचित हो जाएंगे। साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के रूप में किसानों को प्राप्त समर्थन मूल्य का सहारा भी समाप्त हो जाएगा। जबकि सच्चाई यह है कि इन तीनों में से किसी भी कानून में यह कहीं नहीं लिखा है कि इनके लागू होने से 23 प्रकार की फसलों के लिए जारी होने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। केंद्र सरकार की तरफ से बार-बार यह स्पष्ट किया गया है कि सरकारी मंडी की व्यवस्था पहले की तरह बनी रहेगी। अगर सरकार की मंशा एमएसपी को बनाए रखने की न होती तो बीते पांच-छह वर्षों में विभिन्न फसलों की एमएसपी में इतनी वृद्धि न हुई होती। चूंकि एमएसपी पर गेहूं और धान की सर्वाधिक खरीद पंजाब और हरियाणा में होती है इसलिए इन राज्यों के किसानों में इसकी आशंका भी अधिक है। उनकी इसी आशंका को भाजपा के राजनीतिक विरोधी हवा दे रहे हैं।
अपनी शर्तों पर सौदा करने में सक्षम होंगे किसान
तकरीबन यही स्थिति मंडी कानून में हुए बदलाव को लेकर भी है। मंडी कानून में बदलाव कर सरकार की मंशा किसानों को उनकी उपज बेचने के लिए अधिक विकल्प प्रदान करना है, ताकि किसान अपनी फसलों की बिक्री के लिए केवल मंडी के आढ़तियों पर आश्रित न रहें। इससे किसान न केवल अपनी फसलों के लिए बेहतर मूल्य हासिल कर सकेंगे, बल्कि अपनी शर्तों पर सौदा करने में सक्षम भी होंगे।
कांट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर भी किसानों को भड़का रहें हैं विपक्षी दल
खुद कांग्रेस ने 2004 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद मंडी कानून में बदलाव पर चर्चा शुरू की और इसे किसानों के लिए फायदेमंद बताया था। आज इस मुद्दे पर केंद्र सरकार पर निशाना साधने वाले शरद पवार का राज्यों के साथ 2010 और 2011 में हुआ पत्र-व्यवहार इस बात का गवाह है कि उस वक्त की कांग्रेस सरकार मंडी कानून यानी एपीएमसी (कृषि उत्पाद विपणन समिति) एक्ट में बदलाव के लिए राज्य सरकारों पर दबाव बना रही थी। केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उस वक्त इस आशय का एक मॉडल कानून भी राज्यों को भेजा था। विभिन्न संगठनों समेत इस मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा की प्रक्रिया भी तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ही शुरू की थी। इसी तरह विपक्षी दल कांट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर भी किसानों को भड़का रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि इस प्रावधान के तहत किसानों को अपनी पैदावार का सौदा ही कंपनियों के साथ करना है, जमीन का नहीं। ऐसे में उनकी जमीन छिनने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
उत्तराखंड में गन्ना किसानों के बकाए का शत-प्रतिशत किया गया भुगतान
जहां तक किसान हितों के लिए मौजूदा सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का प्रश्न है तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार के कृषि बजट से ही स्पष्ट हो जाता है। केंद्र का कृषि बजट पांच साल में 12,000 करोड़ रुपये से बढ़कर आज 1,34,000 करोड़ रुपये को पार कर गया है। केंद्र सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य ही नहीं, बल्कि कृषि के बजट को भी उसके अनुरूप बढ़ाया है। कांग्रेस को यह पता होना चाहिए कि भाजपा शासित राज्यों में किसानों के लिए किस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं? उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने गन्ना किसानों के बकाए का शत-प्रतिशत भुगतान किया है। वह भी पेराई सीजन शुरू होने से दो महीने पहले। इसके अतिरिक्त किसानों को तीन लाख रुपये तक और स्वयं सहायता समूहों को पांच लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। इस योजना के तहत अब तक चार लाख से अधिक किसानों और 1330 समूहों को 2062 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया जा चुका है।
दरअसल कृषि कानूनों के विरोध का पूरा सच पंजाब में कांग्रेस सरकार की विफलताओं में छिपा है। पंजाब में अमरिंदर सिंह की सरकार के खिलाफ बनते माहौल से ध्यान भटकाने के लिए कांग्रेस कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों को भड़का रही है, लेकिन मुझे विश्वास है कि हमारे किसान भाई यह सच्चाई जानते हैं कि कौन उनके हितों के बारे में अधिक गंभीर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मानते हैं कि पुराने कानूनों से नए भारत का निर्माण नहीं हो सकता। मौजूदा वैश्विक एवं घरेलू चुनौतियों का सामना करने और किसान समेत पूरे देश को विकास के उच्च शिखर पर ले जाने के लिए नए कानूनों की आवश्यकता होगी।
(लेखक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हैं)