डॉ.ऋतु सारस्वत। कोरोना जनित संकट का असर लोगों की मानसिक सेहत पर गंभीर रूप से पड़ने लगा है। संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि कोरोना संकट से पहले दुनियाभर में करीब 27 करोड़ लोग मानसिक रोगों से पीड़ित थे। अब इस संख्या में करीब दोगुनी वृद्धि हो गई है। आज पूरा विश्व एक ऐसे मुहाने पर आ खड़ा हो गया है, जहां वर्तमान और भविष्य दोनों ही उसे चिंतित किए हुए हैं। कोरोना ने संपूर्ण मानव जाति का जो अहित किया है, उससे कहीं अधिक पीड़ा दायक उसके भविष्य में होने वाले परिणाम होंगे।

आने वाले समय में यकीनन कोरोना पर नियंत्रण कर लिया जाएगा, परंतु भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आज जो जरूरी एहतियात बरती जा रही है,उसने लोगों की मनःस्थिति पर गहरा प्रभाव डाला है। घरों में बंद जीवन, वित्तीय संकट की आशंका, सामान्य जीवन नहीं जी पाने की छटपटाहट और इन सबसे ऊपर कोरोना का डर, इन सभी भावनाओं ने नकारात्मकता को उत्पन्न कर दिया है।

इसी नकारात्मकता से घबराहट और फिर अवसाद ने मानसिक बीमारियों को बढ़ा दिया है। समस्या का एक कारण बीमारी को लेकर उत्पन्न भ्रांतियां और समझ में कमी है। दरअसल हमारी प्रतिक्रिया चिकित्सीय ज्ञान पर आधारित ना होकर, हमारी सामाजिक एवं स्वनिर्मित सोच से निर्धारित होती है।नतीजन यह सोच इतना भयग्रस्त कर रही है। यह सहज कल्पनीय है कि कोरोना ने शरीर से कहीं ज्यादा मन-मस्तिष्क पर आघात किया है। यह बात और है कि भारत में शारीरिक रोगों के इलाज पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, मानसिक स्वास्थ्य हमारे यहां बड़ा मुद्दा नहीं है।

इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी के सर्वे के मुताबिक कोरोना वायरस के आने के बाद देश में मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या में 15 से 20 प्रतिशत तक की बढोतरी हुई है। दरअसल संक्रामक रोगों का लोगों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है और उसका कारण यह है कि लोगों को अपनी सहज मानवीय वृत्ति के विपरीत व्यवहार करना पड़ता है,जो कि उसके लिए मुश्किल और पीड़ादायक होता है।एक दूसरे से निश्चित दूरी बनाए रखने की ताकीद मनुष्य के लिए मानसिक उलझन का कारण बन जाती है।

वर्तमान परिस्थितियों में अनिश्चितता की स्थिति लोगों को डरा रही है। विशेषकर यह भावना कि उनके नियंत्रण में कुछ नहीं है। कोरोना संकट काल में वे तो प्रभावित हैं ही जो इसकी चपेट में आए हैं, परंतु पीड़ादायक स्थिति उनकी भी है, जो दिन-रात कोरोना पीड़ितों की सेवा में जुटे हुए हैं। चीन के 34 अस्पतालों के 1,257 चिकित्सकों पर हुए सर्वे के मुताबिक कोरोना का इलाज करते-करते 50 प्रतिशत चिकित्सक अवसादग्रस्त हो चुके हैं।नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की स्थिति कहीं और अधिक खराब है।

इस बीमारी से लड़ रहे चिकित्सकों के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के संबंध में दो फरवरी को चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने नोटिस जारी कर के स्थानीय एजेंसियों को मानसिक सहायता और परामर्श मुहैया कराने का आग्रह किया था, जिसका उद्देश्य उनकी मानसिक समस्याओं को नियंत्रित करने का था।परंतु भारत ने अभी तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है।

इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस संक्रमण काल में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंता जताते हुए एक गाइडलाइन भी जारी की है।एसोसिएशन फॉर बिहेवियरल एंड कॉग्निटीव थेरेपी के अनुसार हमें रोजाना करीब आधे घंटे का एक ‘वरी पीरियड’ तय कर लेना चाहिए, रोजाना एक समय और एक स्थान पर।इससे दिन का बाकी समय अच्छा गुजरता है।

उस वरी पीरियड में यह सोचना चाहिए कि किन चीजों के बारे में चिंता कर के भी आप कुछ नहीं बदल सकते और किस बारे में चिंता करने से कुछ बदला जा सकता है। यकीनन हम स्वयं जान जाएंगे कि अभी हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हमारा जीवन है और उसके लिए बहुत जरूरी है सकारात्मक सोच को अपनाना। हमें समझना होगा कि आज शारीरिक दूरी जरूरी है, परंतु भावनात्मक दूरी नहीं।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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