पुराने ढर्रे पर पाकिस्तान, भारत से संबंध सुधारना उनकी प्राथमिकता में नहीं
भारत-पाकिस्तान संबंधों में किसी प्रकार के नाटकीय बदलाव के आसार नहीं दिख रहे हैं। शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस के खिलाफ वैसी भाषा का इस्तेमाल करेंगे जैसी इमरान ने की थी। भारत के साथ संबंध बहाल करने से पहले पाकिस्तान अपना चेहरा बचाने का पूरा प्रयास करेगा। इसी कड़ी में शायद वह जम्मू-कश्मीर की पूर्ण राज्य के रूप में वापसी चाहता है।
विवेक काटजू। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट के माध्यम से बधाई संदेश दिया। हालांकि, अपनी पोस्ट में मोदी ने केवल ‘बधाई’ शब्द का प्रयोग किया। इस तरह मोदी ने पड़ोसी देश में अपने किसी समकक्ष की ताजपोशी पर न्यूनतम औपचारिकता ही पूरी की। मोदी ने ऐसी किसी भाषा से पूरी तरह परहेज किया कि भारत पाकिस्तान के साथ संबंधों में सुधार का इच्छुक है।
ध्यान रहे कि अतीत में ऐसी औपचारिकताओं में इस प्रकार का भाव भी व्यक्त किया जाता रहा है। मोदी ने स्वाभाविक रूप से ऐसा नहीं किया, क्योंकि शहबाज शरीफ ने हाल में कश्मीर राग छेड़ा था। प्रधानमंत्री बनने के बाद नेशनल असेंबली यानी पाकिस्तानी संसद में तीन मार्च को शहबाज शरीफ का संबोधन मुख्य रूप से उन आर्थिक चुनौतियों पर केंद्रित रहा, जिन्होंने पाकिस्तान को घेर रखा है।
उन्होंने कहा कि वार्षिक सरकारी राजस्व पाकिस्तान के कर्ज भुगतान के लिहाज से पर्याप्त नहीं। इसका अर्थ है कि पाकिस्तान कर्ज के जाल में फंसा है और मौजूदा ऋण की भरपाई के लिए उसे और कर्ज लेना होगा। कुछ आंतरिक मुद्दों के अतिरिक्त शहबाज शरीफ ने पाकिस्तान की विदेश नीति से जुड़े मुद्दों पर संक्षिप्त चर्चा की। इस कड़ी में पाकिस्तान के नेताओं के लिए कश्मीर मुद्दे को उठाना एक प्रकार की परंपरा है, जिसे शहबाज शरीफ ने भी निभाया।
यदि शहबाज शरीफ केवल कश्मीर का जिक्र ही करते तो समझा जा सकता था कि यह सेना एवं पाकिस्तानी राजनीति में कट्टरपंथी तत्वों और एक तबके को खुश करने के लिए किया गया। स्वाभाविक रूप से भारत को उस पर भी आपत्ति होती, लेकिन बात केवल इतनी ही नहीं रही। शहबाज शरीफ ने कश्मीर की तुलना गाजा के हालात से की। इसके पीछे उनकी मंशा इस्लामिक देशों का इस ओर ध्यान आकृष्ट करने की थी कि इजरायल हमले में गाजा की जो दुर्गति हुई है, कुछ वैसा ही मोदी की नीतियों के चलते कश्मीर में हुआ है।
जबकि दोनों स्थितियों की तुलना बिल्कुल बेतुकी है। यह अलग बात है कि अधिकांश इस्लामिक देश शहबाज शरीफ की बात को नजरअंदाज करेंगे। तमाम इस्लामिक देशों के साथ भारत के संबंध निरंतर प्रगाढ़ हो रहे हैं और उनमें से किसी ने भी कश्मीर मुद्दे पर कोई खास ध्यान नहीं दिया है। हालांकि शहबाज शरीफ का बयान पाकिस्तान की मानसिकता को दर्शाने के साथ यह भी रेखांकित करता है कि भारत के साथ संबंध सुधारना फिलहाल नई सरकार की प्राथमिकता में नहीं।
इसमें संदेह नहीं कि शहबाज शरीफ और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी पीपीपी जैसे उनके गठबंधन के सहयोगी दल को सेना भारत के मामले में नीति तय करने की कोई गुंजाइश देगी। भले ही शहबाज शरीफ के भाई और उनके राजनीतिक गुरु नवाज शरीफ इस पर जोर देते रहे हों कि चुने हुए प्रधानमंत्री के रूप में उनके पास सुरक्षा सहित देश की सभी नीतियों के निर्धारण का अधिकार रहा, लेकिन सच यह नहीं है। इसके चलते ही उनके और सेना के बीच खटास भी पैदा हुई और अतीत में तीन बार उन्हें प्रधानमंत्री पद से चलता किया गया।
शहबाज शरीफ के सेना के साथ हमेशा बहुत अच्छे रिश्ते रहे हैं, लेकिन इस समय पाकिस्तान में सुरक्षा से जुड़ा चर्चित मुद्दा पश्चिमी सीमा पर उत्पन्न हो रही चुनौतियों का है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अफगान तालिबान के साथ पाकिस्तान के रिश्ते बिगड़ रहे हैं। अफगान तालिबान ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी को समर्थन देना बंद नहीं किया है। टीटीपी लगातार पाकिस्तानी सेना को निशाना बना रहा है। टीटीपी और पाकिस्तानी सेना के बीच टकराव टलने के फिलहाल कोई आसार नहीं दिख रहे, जबकि भारत के साथ लगती सीमा पर फरवरी 2021 से पाकिस्तान का संघर्षविराम जारी है। इससे सीमा रेखा के पास रहने वाले दोनों देशों के लोगों को बड़ी राहत मिली है।
पाकिस्तान की ओर से संघर्षविराम उल्लंघन के भी कोई संकेत नहीं दिखते, लेकिन पाकिस्तान ने अपने यहां आतंकी ढांचा उसी प्रकार कायम रखा हुआ है। यह तो आर्थिक एवं राजनीतिक मुश्किलों के चलते उसकी सक्रियता कुछ सीमित है। इसलिए भारत का यह दबाव उचित ही है कि द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के लिए पाकिस्तान को अपना आतंकी ढांचा ध्वस्त करना होगा। भारत में चुनाव के बाद भी यह दबाव इसी प्रकार बना रहना चाहिए। चुनाव तक भारत में भी सरकार का मुख्य ध्यान घरेलू मुद्दों पर ही केंद्रित होगा।
अतीत में शरीफ बंधुओं का यही रुख रहा है कि कश्मीर मुद्दे पर मतभेदों के बावजूद दोनों देशों को आर्थिक एवं वाणिज्यिक रिश्ते पूरी तरह बहाल रखने चाहिए। जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में परिवर्तन के समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे इमरान खान ने भारत के प्रति बहुत कड़ा रवैया अपनाया और संघ परिवार तक पर अपनी खीझ उतारी। इमरान खान ने दोटूक एलान किया कि जब तक भारत अनुच्छेद-370 पर अपने निर्णय को नहीं बदलता, तब तक पाकिस्तान के साथ रिश्ते आगे नहीं बढ़ेंगे।
लगता नहीं कि शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस के खिलाफ वैसी भाषा का इस्तेमाल करेंगे, जैसी इमरान ने की थी। भारत के साथ संबंध बहाल करने से पहले पाकिस्तान अपना चेहरा बचाने का पूरा प्रयास करेगा। इसी कड़ी में शायद वह जम्मू-कश्मीर की पूर्ण राज्य के रूप में वापसी चाहता है। हालांकि, भारत सरकार उच्चतम न्यायालय को आश्वस्त कर चुकी है कि वह उपयुक्त समय पर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करेगी, लेकिन यह निर्णय आंतरिक स्थितियों पर निर्भर करेगा न कि पाकिस्तान की भावनाओं पर।
कुल मिलाकर, भारत-पाकिस्तान संबंधों में किसी प्रकार के नाटकीय बदलाव के आसार नहीं दिख रहे हैं। द्विपक्षीय संबंधों में तब तक कोई ताजगी भरा हवा का झोंका महसूस नहीं होगा, जब तक पाकिस्तानी सेना कोई सार्थक पहल नहीं करती और फिलहाल उसके जनरलों की ओर से ऐसे कोई संकेत नहीं दिख रहे। यह स्थिति तब है, जब वे इस तथ्य से भलीभांति अवगत हैं कि पाकिस्तान का आर्थिक स्थायित्व भारत संबंधी नीति में परिवर्तन के बिना सुनिश्चित नहीं किया जा सकता।
(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं)