खालिस्तानियों को कड़ा संदेश दे संसद, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से जुड़े उसके कानूनों का हर हाल में हो पालन
खालिस्तान समर्थकों ने कनाडा और ब्रिटेन में भी भारतीय राजनयिकों एवं परिसरों को निशाना बनाया। लंदन स्थित उच्चायोग में तो उन्होंने दुस्साहस की सभी सीमाएं लांघकर वहां लगे तिरंगे को हटाकर खालिस्तानी झंडा लगा दिया। कनाडा और ब्रिटेन में कई स्थानों पर भारतीय राजनयिकों को धमकी भरे पोस्टर देखे गए। इंटरनेट मीडिया पर भी इन धमकियों को प्रचारित किया गया।
विवेक काटजू : बीते दिनों खालिस्तान समर्थकों ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास को आग के हवाले कर दिया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि राजनयिकों के विरुद्ध हिंसा और राजनयिक परिसरों को क्षति पहुंचाना अमेरिका में अपराध है। इससे कुछ महीने पहले ही खालिस्तान समर्थकों ने सैन फ्रांसिस्को के इसी परिसर में सुरक्षा घेरा तोड़कर वहां खालिस्तान के झंडे फहरा दिए थे। तब भी अमेरिकी अधिकारियों ने यही कहा था कि प्रदर्शनकारियों ने कानून का उल्लंघन किया।
असल में, राजनयिकों और राजनयिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा का दायित्व उसी देश का होता है, जहां वे उपस्थित होते हैं। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार सभी देशों के लिए यह बाध्यकारी है, लेकिन अमेरिका में घटी घटनाएं यही दर्शाती हैं कि अमेरिकी प्रशासन इस दायित्व को गंभीरता से नहीं ले रहा। यदि इन गतिविधियों में अमेरिका के आपराधिक कानूनों का उल्लंघन हुआ तो फिर कानून एवं व्यवस्था से जुड़ी अमेरिकी एजेंसियां दोषियों पर शिकंजा क्यों नहीं कस पाईं?
खालिस्तान समर्थकों ने कनाडा और ब्रिटेन में भी भारतीय राजनयिकों एवं परिसरों को निशाना बनाया। लंदन स्थित उच्चायोग में तो उन्होंने दुस्साहस की सभी सीमाएं लांघकर वहां लगे तिरंगे को हटाकर खालिस्तानी झंडा लगा दिया। कनाडा और ब्रिटेन में कई स्थानों पर भारतीय राजनयिकों को धमकी भरे पोस्टर देखे गए। इंटरनेट मीडिया पर भी इन धमकियों को प्रचारित किया गया। इससे पहले खालिस्तान समर्थक ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के समर्थन में सक्रिय हुए, लेकिन अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी से उनका उत्साह ठंडा पड़ गया। अब कनाडा में खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की मौत से झल्लाए भारत विरोधी तत्वों ने भारतीय राजनयिकों और प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की मुहिम छेड़ी है।
पश्चिमी देशों में खालिस्तान समर्थकों की इन गतिविधियों को लेकर कनाडा के संदर्भ में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले महीने कहा कि इस मामले में वहां की सरकार का ढुलमुल रवैया वोट बैंक राजनीति का परिणाम है। उन्होंने चेताया कि कनाडा के ऐसे रवैये का द्विपक्षीय रिश्तों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अभी हाल में उन्होंने बताया कि भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे अपने ‘साझेदार देशों’ से कहा है कि वे खालिस्तान समर्थकों को पनपने की गुंजाइश न दें, क्योंकि उनकी कट्टर एवं अतिवादी विचारधारा न केवल भारत, बल्कि इन देशों के लिए भी हितकारी नहीं।
इस बीच यह सवाल भी उठता है कि क्या खालिस्तान समर्थकों की हरकतों और संबंधित देशों की सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों को लेकर भारत ने सही प्रतिक्रिया दी? अब समय आ गया है कि भारतीय राजनीतिक बिरादरी इन देशों की सरकारों को संसद के माध्यम से संदेश दे कि वे भारतीय राजनयिकों को संरक्षण प्रदान करने के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का पूरी तरह से पालन करें। साथ ही स्पष्ट करे कि भारत यह कतई बर्दाश्त नहीं करेगा कि ये देश ऐसे किसी भी समूह को वैसी गतिविधियां चलाने दें, जो उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देती हों। निश्चित रूप से खालिस्तान समर्थक भी इसी श्रेणी में आते हैं। ऐसा करना उचित होगा, क्योंकि इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता कि खालिस्तान समर्थकों की कनाडाई राजनीति पर पकड़ मजबूत है और वहां के नेताओं को उनका यह प्रभुत्व अवश्य ही समाप्त करना चाहिए।
खालिस्तान असल में वह पाकिस्तानी प्रपंच है जिसका उद्देश्य भारत को क्षति पहुंचाना है। सिख समुदाय की भारत के प्रति निष्ठा को कमजोर करना पाकिस्तान की लंबे समय से कुत्सित मंशा रही है। पाकिस्तानियों को यह पता होना चाहिए कि सिख समुदाय अपनी देशभक्ति के लिए प्रतिष्ठित है और भारत की सुरक्षा के साथ ही कृषि, आर्थिक और वाणिज्यिक प्रगति में उसका अहम योगदान है। इसके बावजूद पाकिस्तान अपने नापाक मंसूबों से बाज नहीं आता।
वास्तव में, कुछ पाकिस्तानी इतिहासकार इस तथ्य पर अफसोस जताते हैं कि 1947 में मुस्लिम लीग ने हिंदू और सिखों दोनों के खिलाफ दंगे भड़काए। वे महसूस करते हैं कि केवल हिंदुओं को ही निशाना बनाना जाना चाहिए था ताकि हिंदुओं और सिखों में विभाजन की खाई पैदा कर सकते। यह भी पाकिस्तान का ऐसा सपना है जो कभी पूरा नहीं होने वाला, लेकिन भारतीय नीति-नियंताओं और राजनीतिक वर्ग को इस मामले में पाकिस्तान के दूरगामी उद्देश्यों से वाकिफ होना चाहिए। ऐसे में, भारतीय जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था संसद के माध्यम से ऐसा स्पष्ट संदेश दिया जाए कि पाकिस्तान द्वारा खालिस्तान समर्थकों के माध्यम से माहौल बिगाड़ने के मंसूबों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
दो अन्य बिंदुओं की चर्चा जरूरी है। पहला यही कि भारत से बाहर रहे रहे सिखों को लुभाने के लिए पाकिस्तान हर तिकड़म कर रहा है। खालिस्तान समर्थकों को पाकिस्तान में ठिकाना बनाने की अनुमति है। पाकिस्तान में सिख आस्था से जुड़े स्थानों की देखभाल से जुड़े प्रचार में भी यह दिखता है। पाकिस्तान के ननकाना साहिब में बाबा गुरु नानक विश्वविद्यालय की स्थापना पर काम चल रहा है। यह महसूस किया जा सकता है कि सिखों विशेषकर भारत से बाहर रहने वाले इस समुदाय के लोगों पर अपना प्रभाव जमाने में पाकिस्तान लगा हुआ है। चूंकि पाकिस्तान का यह अभियान अभी शुरुआती दौर में है तो भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को इस पर कड़ी नजर रखनी होगी।
दूसरा बिंदु पश्चिमी देशों के उस रवैये से जुड़ा है, जिसमें उनका दावा होता है कि खालिस्तान समर्थन से जुड़ी मुहिम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में आती है। भारत को ऐसे दावों को सिरे से खारिज कर स्पष्टता से अपना पक्ष रखना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं कि किसी भी देश में एक समूह को भारत की संप्रभुता और अखंडता के विरुद्ध गतिविधियां चलाने दी जाएं। भले ही ये देश अपने कुछ हिस्सों को अलग होने के लिए जनमत संग्रह करने की अनुमति देते हों, लेकिन भारत को इस पर अडिग रहना चाहिए कि संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से जुड़े उसके कानूनों का हर हाल में पालन किया जाना चाहिए।
(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं)