शिवानंद द्विवेदी। महाभारत के शांतिपर्व में एक श्लोक है- स्वं प्रियं तु परित्यज्य यद् यल्लोकहितं भवेत अर्थात राजा को अपने प्रिय लगने वाले कार्य की बजाय वही कार्य करना चाहिए जिसमें सबका हित हो। केंद्र की मोदी सरकार के गत साढ़े चार वर्ष के कार्यो का मूल्यांकन करते समय महाभारत में वर्णित यह श्लोक और इसका भावार्थ स्वाभाविक रूप से जेहन में आता है। दरअसल स्वतंत्रता के बाद समाजवादी नीतियों पर चलते हुए कल्याणकारी राज्य की जिस अवधारणा का विकास हुआ उसमें सरकारी योजनाओं में ‘लोकहित’ के बजाय ‘लोकलुभावन’ की नीति को ज्यादा तरजीह दी गई।

समाज की यह सामान्य मनोस्थिति
समाज की यह सामान्य मनोस्थिति है कि वह अपने दूरगामी हितों के बजाय तात्कालिक एवं आकर्षक दिखने वाली नीतियों के प्रति ज्यादा झुकाव रखता है। यही वजह है कि सरकारों के सामने नीति-निर्धारण लोकहित बनाम लोकलुभावन का प्रश्न उभरता है। चुनावी राजनीति का बुनियादी सच यह है कि इसके हितधारक राजनीतिक दलों की प्राथमिकता चुनाव जीतने की होती है। यहीं से ‘लोकलुभावन’ शब्द की प्रासंगिकता बढ़ने लगती है। दर्द निवारक दवा खाकर दर्द से पीड़ित व्यक्ति त्वरित आराम तो महसूस कर लेता है, लेकिन दर्द के मूल कारण का इलाज नहीं हो पाता। लिहाजा हमें समझना होगा कि त्वरित आराम को चुनना ठीक है या जड़ से इलाज?

आर्थिक व सामाजिक सशक्तीकरण
आज जब मोदी सरकार के आर्थिक व सामाजिक सशक्तीकरण की दिशा में किए गए तमाम निर्णयों पर गौर करते हैं तो हमें लोकहित बनाम लोकलुभावन के अंतर को ध्यान में रखना होगा। मोदी सरकार के कुछ निर्णयों का मूल्यांकन भी इसी कसौटी पर होना चाहिए। आठ नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने विमुद्रीकरण का ऐलान किया और एक जुलाई 2017 को सरकार ने अप्रत्यक्ष करों के सुधार की दिशा में ‘एक राष्ट्र एक कर’ के रूप में जीएसटी लागू कराने में सफलता हासिल की। सरकार ने इन्सोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी तथा भगौड़ा आर्थिक अपराध विधेयक पारित किया। ये सारे निर्णय यथास्थितिवाद से टकराने वाले थे, लेकिन सरकार ने इन निर्णयों को अमली जामा पहनाया। सरकार जनता को यह समझाने में कामयाब रही है कि उनके कार्यकाल में किसी भी उद्योगपति को गलत ढंग से कर्ज नहीं दिया गया है तथा जिन्होंने पहले कर्ज लिया था केवल वे ही देश से भाग रहे हैं।

आर्थिक सुधारों की दिशा में उठाए कदम 
अगर परिणामों के धरातल पर बात करें तो आर्थिक सुधारों की दिशा में उठाए गए कदमों तथा कानूनी सुधारों का असर नजर आ रहा है। कारोबार में सुगमता की दृष्टि से भारत ने चमत्कारिक लक्ष्यों को छुआ है। अगले वर्ष तक भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभरने की ओर अग्रसर है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर चीन से तेज है जो अभी बढ़त में रहेगी। आइएमएफ ने अपने हालिया वल्र्ड इकोनोमिक आउटलुक में यह बताया है कि वित्त वर्ष 2019 में भारत की जीडीपी विकास दर 7.3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2020 में 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

रेड-टैप नहीं, रेड-कारपेट
सितंबर 2014 में जापान गए मोदी ने निवेशकों को कहा था कि भारत में रेड-टैप नहीं, रेड-कारपेट है। रेड-टैप को रेड-कारपेट में बदलने का कार्य मोदी के विजन में प्राथमिकता में है, तभी उन्होंने पद संभालने के महज चार महीने बाद विदेशी मंचों से यह कहना शुरू कर दिया था। हालांकि यह बदलाव करना आसान नहीं था। कानूनी सुधारों को अमली जामा पहनाने में कठिनाइयां थीं, लेकिन यह भी उतना सच है कि चाहे कड़वी दवा पिलानी पड़ी हो या लोकप्रियता के खोने का खतरा मोल लेना पड़ा हो मोदी ने अपने दृष्टिकोण से समझौता नहीं किया। जनवरी 2018 में विश्व आर्थिक मंच को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि हम लाइसेंस- परमिट राज को जड़ से उखाड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

मोदी के दृष्टिकोण का आर्थिक पहलू
मोदी के इस दृष्टिकोण का आर्थिक पहलू तो परिणामों में नजर आ रहा है, लेकिन इसका व्यावहारिक पहलू थोड़ा अलग है। जब परंपरागत रूप से कोई स्थिति एक ढर्रे पर चली आ रही हो तो सामान्यतया ‘जोखिम’ की तरफ जाना कोई नहीं चाहता। मोदी सरकार ने वह जोखिम लिया है, लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि उनके जोखिम लेने के बावजूद लोकप्रियता की कसौटी पर उन्हें नुकसान होता नहीं दिख रहा। इसका बड़ा कारण है कि मोदी लोकहित बनाम लोकप्रिय के नीति-निर्धारण में संतुलन स्थापित करने में सफल हुए हैं। साथ ही कड़े फैसले लेते समय लोगों के मन में यह भरोसा पैदा करने में भी वह सफल रहे हैं कि जो भी वह कर रहे हैं उसके दूरगामी परिणाम लोकहित में हैं।

सफलता के पीछे बड़ा कारण
इस सफलता के पीछे बड़ा कारण यह नजर आता है कि वह कोई भी कार्य ऐसा नहीं करते जिसका विजन और ब्लूप्रिंट उनके मन में पहले से तैयार न हो। वह जानते थे कि आर्थिक सुधारों की कठिनाइयों से जनता को जूझना पड़ेगा, इसलिए विमुद्रीकरण जैसा फैसला उन्होंने तब लिया जब देश की एक बड़ी आबादी को जनधन योजना के जरिये बैंकिंग सिस्टम से जोड़ चुके थे। नीति-नियामकों पर शोध करने वालों के लिए यह कम आश्चर्य का विषय नहीं था कि भारत में विमुद्रीकरण जैसा निर्णय लेने के बाद भी मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई।

उज्ज्वला योजना
उज्ज्वला योजना के माध्यम से मोदी सरकार ने उन करोड़ों घरों में रसोई गैस पहुंचाने का कार्य किया जिनके लिए यह एक सपना था। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2022 तक सभी को पक्का मकान देने का जो लक्ष्य सरकार ने रखा है, वह अब गरीब बस्तियों में नजर आने लगा है। हर गांव बिजली के बाद हर घर बिजली पहुंचाने की योजना इसी कड़ी में एक बड़ा कदम है। गरीबी कम करने के मामले में भी मोदी सरकार कामयाब होती दिख रही है।

विश्‍व बैंक ने भी की सराहना
इस दिशा में भारत की प्रगति की सराहना करते हुए विश्व बैंक ने भारत को निम्न मध्यम आय वर्ग वाले देशों से ऊपर उठकर उच्च मध्यम आय वाले देशों में शामिल होने के लिए सहायता देने का निर्णय किया है। हाल में मोदी सरकार द्वारा आयुष्मान भारत नाम से शुरू स्वास्थ्य योजना के तहत लाभार्थियों के आ रहे आंकड़े मोदी की विश्वसनीयता पर मुहर लगाने वाले हैं। कहना गलत नहीं होगा कि कड़े फैसलों की कड़वाहट में चीनी घोलने का पुख्ता इंतजाम मोदी ने लोकहित की इन योजनाओं के माध्यम से किया जिसकी वजह से उन पर लोगों का भरोसा बढ़ा है।