प्रचार के लिए भावनाओं से खिलवाड़, देश की महिलाओं को नहीं चाहिए पूनम पांडे जैसों की झूठी सहानुभूति
पिछले दिनों अभिनेत्री और माडल पूनम पांडे ने प्रचार पाने के लिए पहले तो अपनी मौत की झूठी खबर फैलाई फिर अगले ही दिन प्रकट हो गईं। ‘सारी’ बोलते हुए बहाना बनाया कि वह सर्विकल कैंसर के प्रति औरतों में जागरूकता फैलाना चाहती थीं इसलिए उन्होंने ऐसा किया। पूनम पांडे की मौत की खबर में उनकी उम्र मात्र 32 साल बताई गई।
क्षमा शर्मा। पिछले दिनों अभिनेत्री और माडल पूनम पांडे ने प्रचार पाने के लिए पहले तो अपनी मौत की झूठी खबर फैलाई, फिर अगले ही दिन प्रकट हो गईं। ‘सारी’ बोलते हुए बहाना बनाया कि वह सर्विकल कैंसर के प्रति औरतों में जागरूकता फैलाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने ऐसा किया। पूनम पांडे की मौत की खबर में उनकी उम्र मात्र 32 साल बताई गई। यह भी कहा गया कि सर्विकल कैंसर के कारण वह दुनिया छोड़ गईं। उन्होंने इस तरह की हरकत करने से पहले क्या इस बात पर गौर किया कि 32 साल की जो भी लड़कियां और स्त्रियां होंगी, उनमें इसे सुनकर कितना डर बैठेगा? यह खबर सुनकर बड़ी उम्र की स्त्रियों को भी कोई कम डर नहीं लगा होगा, क्योंकि यदि मात्र 32 साल की उम्र में किसी औरत को सर्विकल कैंसर हो सकता है तो उन्हें क्यों नहीं।
कैंसर जैसा रोग कोई हंसी-मजाक करने की बात नहीं है। सर्विकल कैंसर से अपने देश में हर साल लाखों औरतें मर जाती हैं। जो महिला इस रोग से गुजरती है, वह और उसके परिवार वाले क्या-क्या झेलते हैं? पूनम पांडे ने प्रचार की भूख के लिए इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। दुखद है कि उन जैसी सेलेब्रिटी को भी कैंसर जैसी गंभीर बीमारी एक बेचने लायक और नाम कमाने लायक चीज लगती है। वैसे वह अतीत में भी अपने तमाम बयानों और हरकतों के लिए चर्चित रही हैं। इसके लिए उन्हें लोगों ने काफी बुरा माना और उनकी आलोचना भी की गई। कई जगह पुलिस में उनकी शिकायत भी की गई। शायद वह ऐसा चाहती भी होंगी, क्योंकि प्रसिद्धि के लिए नकारात्मक प्रचार बहुत अच्छा माना जाता है। वह जानती हैं कि होगा तो कुछ नहीं। उलटे कई दिनों तक मीडिया में छाई रहेंगी और चाहिए भी यही। कुछ वर्षों से यह एक रिवाज सा चल पड़ा है कि अपने बारे में कुछ ऐसी बातें की जाएं, जो लोगों में सहानुभूति जगाएं। कुछ साल पहले संजय दत्त ने कहा था कि उन्हें कैंसर हो गया है और वह अपना इलाज कराने जा रहे हैं। फिर कुछ ही दिनों बाद उन्होंने कहा कि वह ठीक हो गए हैं।
दीपिका पादुकोण ने भी डिप्रेशन में होने की बात बार-बार कही थी। मार्केटिंग एजेंसियों की ऐसी रणनीति बेहद खतरनाक है, जो रोगों को अपने मुनाफे के लिए बेचती हो। इन्हें उन लोगों को देखना चाहिए जिन्हें ऐसे गंभीर रोग होते हैं। बहुत से लोगों के पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं होते। वे यूं ही दम तोड़ देते हैं। जो लोग चर्चित होने के लिए ऐसे रोगों को बेचते हैं वे पीड़ितों का मजाक उड़ाते हैं।
इससे साफ होता है कि ग्लैमर की दुनिया कितने झूठ पर अपने महल बनाती है। इसके लिए वह तनिक शर्माती भी नहीं। अभी कुछ दिन पहले इंटरनेट मीडिया पर अमिताभ बच्चन के परिवार में झगड़े की खबरें खूब छाई हुई थीं। कहा जा रहा था कि अमिताभ बच्चन ने अपना एक बंगला बेटी श्वेता को दे दिया है इसलिए बहू ऐश्वर्य राय नाराज हैं। वह घर छोड़कर चली गई हैं और अभिषेक बच्चन को तलाक देना चाहती हैं। जबकि इन बातों में कोई सच्चाई बाद में साबित नहीं हो सकी। ऐसी खबरें क्यों फैलाई गईं? अभी तक सच पता नहीं चल सका है। पिछली सदी के नौवें और अंतिम दशक में फिल्मों को हिट कराने के लिए उनमें साथ काम करने वाले अभिनेता-अभिनेत्रियों के बीच प्रेम प्रसंग की झूठी खबरें खूब छपवाई जाती थीं। तब अभिनेत्रियां अपने वास्तविक प्रेम प्रसंगों को भी छिपाती थीं, क्योंकि उन्हें बताया जाता था कि उनके संबंधों के बारे में जैसे ही पता चलेगा, लोग उन्हें पसंद करना बंद कर देंगे, क्योंकि वे पुरुषों के मन में कामनाएं जगाती हैं। अभिनेता भी ऐसा करते थे।
बताया जाता है कि अपनी पहली फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ की रिलीज से पहले ही आमिर खान विवाह कर चुके थे, लेकिन इस बात को उन्होंने बहुत दिनों तक छिपाए रखा था। जबकि बाद के दिनों में बिपाशा बसु या करीना कपूर जैसी अभिनेत्रियां खुलेआम अपने लिव इन रिलेशनशिप के बारे में बातें करने लगीं, क्योंकि तब लिव इन बिक रहा था। आपको मधुर भंडारकर की ‘हीरोइन’ फिल्म याद होगी, जिसमें उम्रदराज होती जाती एक हीरोइन को मार्केटिंग एजेंसी वाली कहती है कि तुम्हारे पास बेचने को क्या है। फिर वह हीरोइन अपने रति प्रसंगों का वीडियो वायरल करा देती है और फिल्म हिट हो जाती है।
अब ये सारी बातें पुरानी पड़ चुकी हैं। मार्केटिंग जैसे भस्मासुर को हर वक्त कुछ नया चाहिए जिससे कि लोगों में खलबली मचाई जा सके और फिल्मों को हिट कराया जा सके। इसीलिए अब नया सोच यह हो चला है कि अपनी किसी बीमारी के बारे में बात की जाए। वह कोई गंभीर बीमारी होनी चाहिए जिससे कि लोग सहानुभूतिवश टिकट खिड़की पर टूट पड़ें। कुल मिलाकर झूठ बोलकर पैसा बनाया जा रहा है। ये प्रवृत्तियां सिर्फ समाज के लिए ही घातक नहीं हैं, बल्कि उनके लिए भी घातक हैं जो इस तरह के जाल में फंसते हैं। पूनम पांडे भी इसी का अनुसरण कर रही हैं। पूनम पांडे अगर वास्तव में औरतों की हितैषी हैं और जागरूकता बढ़ाना चाहती हैं तो इसके लिए वह जागरूकता अभियान चला सकती थीं। दूरदराज के इलाकों में कार्यशाला आयोजित कर सकती थीं। सरकारों से मांग कर सकती थीं कि शहरों और गांवों के अस्पतालों में इस तरह के रोगों की जांच के लिए पर्याप्त व्यवस्था करें। रोग का इलाज सस्ता हो।
अभी तो कैंसर का इलाज इतना महंगा है कि आम लोगों की पहुंच से बहुत दूर है, लेकिन लगता है ग्लैमर की दुनिया को इन बातों से कोई खास मतलब नहीं है सिवाय अपने स्वार्थ के। अपनी मौत की खबर फैलाना और अगले दिन ही प्रकट हो जाना किसी मानसिक रोग के ही लक्षण हैं। पूनम पांडे जैसों की ऐसी झूठी सहानुभूति इस देश की महिलाओं को नहीं चाहिए। उन पर कृपा करें। वैसे ही उनके जीवन में कोई कम मुश्किलें नहीं हैं।
(लेखिका साहित्यकार हैं)