दिव्य कुमार सोती। कतर की एक निजी कंपनी में कार्यरत भारतीय नौसेना के आठ सेवानिवृत्त अधिकारियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है। इनमें से दो कैप्टन और छह कमांडर स्तर के अधिकारी रहे हैं। उन्हें कतर की खुफिया एजेंसियों द्वारा अज्ञात कारणों से हिरासत में रखा गया। उन पर आरोपों के विषय में भी कोई सही जानकारी भारत सरकार या उनके स्वजनों को नहीं दी गई।

मीडिया रिपोर्टों की मानें तो इन्हें न सिर्फ यातनाएं दी गईं, बल्कि एकांत कारावास में भी रखा गया, जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का घोर उल्लंघन है। उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाए जाने के बाद भी कतर सरकार की ओर से स्पष्ट नहीं किया जा रहा है कि उन्हें किन आरोपों में दोषी पाया गया है? निचली अदालत द्वारा सुनाए गए मृत्युदंड के आदेश की कापी का भी कहीं अता-पता नहीं है। सिर्फ अनुमान लगाए जा रहे हैं कि कतर सरकार ने दंडित अधिकारियों पर जासूसी का आरोप लगाया है। भारत सरकार और दंडित अधिकारियों के स्वजनों को आरोपों की पूरी जानकारी दिए बिना मुकदमा चलाकर मृत्युदंड की सजा सुनाना अंतरराष्ट्रीय कानूनों एवं न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता के मानदंडों के अनुरूप नहीं है।

न्याय के मूल सिद्धांत के उल्लंघन के आधार पर भारत को इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाना चाहिए। भारत को वहां कुलभूषण जाधव मामले की तरह सफलता मिलने की पूरी संभावना है। असल में यह मामला तो एक उदाहरण भर है। कतर द्वारा भारत और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उत्पन्न की जा रही समस्याएं और बड़ी एवं चिंताजनक हैं।

कतर के शाही परिवार की इस्लामिक कट्टरपंथ के मामले में बढ़त बनाने और सऊदी शाही परिवार जैसा रुतबा हासिल करने की भूख अब सनक की सीमा तक बढ़ चुकी है। इसके लिए कतर हर प्रकार के कट्टरपंथी और आतंकी गुटों को प्रश्रय दे रहा है। इस कारण वह पाकिस्तान की तरह ही एक दुष्ट प्रकृति वाला देश बनता जा रहा है। अपने पाले-पोसे आतंकी तत्वों का इस्तेमाल कतर दूसरे देशों पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए करता है।

हाल में इजरायल में निरीह महिलाओं और बच्चों तक की निर्मम हत्याएं करने वाले आतंकी संगठन हमास के अधिकांश बड़े नेता कतर में ही रहते हैं। मिस्र में सक्रिय कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड को सत्ता तक पहुंचाने में कतर सहायता कर चुका है, जबकि सऊदी सरकार ने मुस्लिम ब्रदरहुड को आतंकी संगठन घोषित कर रखा है। अगर मिस्र की फौज और जनता के एक बड़े वर्ग ने मुस्लिम ब्रदरहुड को सत्ता से अपदस्थ न किया होता तो आज मिस्र जैसे बड़े मुस्लिम देश की दुर्गति भी अफगानिस्तान जैसी हो गई होती। कतर आतंकवाद को लेकर दोहरी चाल चलने में भी पाकिस्तान की ही तरह है। एक ओर अमेरिका का पश्चिम एशिया में सबसे बड़ा सैन्य अड्डा कतर में है तो दूसरी ओर कतर की खुफिया एजेंसियां ही सीरिया और इराक में सक्रिय उन आतंकी संगठनों को पैसा एवं हथियार मुहैया कराती आई हैं, जो अमेरिकी सैनिकों को निशाना बनाते रहे हैं।

एक अमेरिकी थिंक टैंक ‘फाउंडेशन फार डिफेंस आफ डेमोक्रेसीज’ की 2017 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार आतंकी संगठनों को पैसा मुहैया कराने वाले विश्व के 20 सबसे बड़े फाइनेंसरों के तार कतर से जुड़े हैं। इनमें अलकायदा को करोड़ों डालर मुहैया कराने वाला कतर का नागरिक अब्दुल रहमान अल-नुआमी प्रमुख है, जिसे कतर के सुल्तान अपना ‘अजीज दोस्त’ बताते हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी मामलों में सूचीबद्ध किए जाने के बावजूद कतर सरकार अल-नुआमी को कतर इस्लामिक बैंक में उच्च पद पर नियुक्त कर चुकी है।

विश्व में कहीं भी जिहादी गतिविधि सामने आए तो उसकी पाकिस्तान की ही तरह कतर से भी कोई न कोई कड़ी जुड़ी मिलती है। 9/11 हमलों के मास्टरमाइंड खालिद शेख मोहम्मद तक को कतर के जरिये पैसा मिला था। कतर के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्पष्ट कह चुके हैं कि कतर और तालिबान की विचारधारा मिलती-जुलती है। कतर की खुफिया एजेंसियों पर सीरिया में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों को कंधे से चलाई जा सकने और जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलें मुहैया कराने के आरोप लग चुके हैं। इन्हीं कारणों के चलते 2017 में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने कतर से संबंध तोड़ दिए थे, जबकि कतर भी इन देशों की तरह एक सुन्नी देश है। इन देशों का कहना था कि कतर सरकार अपने पड़ोसियों को परेशान करने के लिए तरह-तरह के आतंकी संगठनों और ईरान की कट्टरपंथी शिया सरकार की सहायता करती है। 2021 में बाइडन प्रशासन ने इन देशों पर दबाव डालकर कतर का बायकाट खत्म करा दिया था।

इजरायल पर हमास के आतंकी हमले के बाद कतर की आतंकी कड़ियां फिर से सुर्खियों में हैं। इसे विडंबना कहें या आतंकवाद को लेकर अमेरिका का दोहरा रवैया कि जिस कतर में अमेरिका का सबसे बड़ा पश्चिम एशियाई सैन्य अड्डा है और जिसे नाटो के विशेष सहयोगी देश का दर्जा भी मिला हुआ है, उसी की राजधानी में बैठकर हमास के आतंकियों ने यहूदियों के नरसंहार की योजना बनाई। याद दिला दें कि हिंदू देवियों के अश्लील चित्र बनाने वाले एमएफ हुसैन को न सिर्फ कतर में शरण दी गई थी, बल्कि एक बंगला भी उपहार में दिया गया था। हुसैन पर इतनी मेहरबानी करने वाले कतर ने ही नुपुर शर्मा मामले को लेकर भारत में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने में भी अहम भूमिका निभाई थी।

अब तो भारत में सक्रिय आतंकियों के तार भी कतर से जुड़ने लगे हैं। जनवरी में दिल्ली में एक व्यक्ति की सिर कलम करके हत्या करने वाले इस्लामिक और खालिस्तानी आतंकियों के एक गुट को पैसा कतर के जरिये ही मिला था। ऐसे में भारत को कतर के प्रति बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्योंकि यह छोटा सा देश आतंकी संगठनों की बड़ी शरणस्थली बनता जा रहा है। अपने सैन्य अड्डे के लिए कतर पर अमेरिका की निर्भरता उसे वैसी ही स्थिति में ला खड़ा करती है, जैसी कभी पाकिस्तान को लेकर थी। ऐसे में जरूरी है कि भारत पश्चिम एशिया में कतर की आतंकवाद के समर्थन की नीति से पीड़ित विभिन्न देशों के साथ कूटनीतिक और खुफिया सहयोग बढ़ाते हुए इस चुनौती से निपटने की कारगर योजना बनाए।

(लेखक काउंसिल आफ स्ट्रैटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं)