डा. सुरजीत सिंह गांधी : कोई भी सांख्यिकीविद् या अर्थशास्त्री यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होगा कि भारत गंभीर भुखमरी की स्थिति में है, लेकिन आयरलैंड और जर्मनी के गैर-सरकारी संगठनों द्वारा जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत को अफ्रीकी देशों के साथ गंभीर भुखमरी की स्थिति में दिखाया गया है और यूक्रेन युद्ध, कोविड महामारी, जलवायु परिवर्तन और क्षेत्रीय संघर्षों से खाद्य कीमतों में वृद्धि और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान आदि कारणों को वैश्विक स्तर पर भुखमरी बढ़ने का प्रमुख कारण बताया गया है।

भारत ने हमेशा ही अपनी खाद्य प्रणाली को सर्वोच्च प्रथमिकता दी है। इसी कारण वह कोविड महामारी में प्रत्येक गरीब परिवार को भोजन उपलब्ध कराने में सफल रहा। इस दौरान सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की प्रशंसा पूरे संसार ने की है। आइएमएफ ने कहा है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के कारण 2020 में गरीब लोगों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है।

इन परिस्थितियों में 2022 का वैश्विक भुखमरी सूचकांक स्वयं को ही संदेह के कठघरे में खड़ा करता है। उसकी रपट भविष्य में खाद्य संकट से निपटने के लिए सरकारों को अधिक न्याययंगत, समावेशी, टिकाऊ और लचीला बनाने का सुझाव देते हुए जिन नीतियों का प्रस्ताव करती है, वे सभी नीतियां पहले से ही भारत का हिस्सा हैं। इसके बावजूद यह सूचकांक म्यांमार को 71वां, पाकिस्तान को 99वां एवं श्रीलंका को 64वां और भारत को 107वां स्थान देता है।

ध्यान रहे कि पाकिस्तान विश्व बैंक के ऋण जाल में फंसा हुआ है और वहां महंगाई उच्चतम स्तर पर है। श्रीलंका के आर्थिक हालात इतने खराब हो चुके हैं कि 75 प्रतिशत लोगों के पास दो वक्त की रोटी के लिए पैसे नहीं हैं। भारत ने श्रीलंका को आर्थिक एवं खाद्यान्न मदद उपलब्ध करवाई है। ऐसे में भारत को गंभीर हालत की भुखमरी की श्रेणी में रखना गलत चित्र को प्रस्तुत करना है।

भारत सरकार ने भुखमरी सूचकांक तैयार करने की विधि को अवैज्ञानिक करार दिया है। महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय का तर्क है कि यह सूचकांक जिन चार मानकों पर आधारित है, उनमें से तीन मानक पांच वर्ष के बच्चों से संबधित हैं, इसलिए मात्र एक मानक द्वारा और वह भी केवल 3000 लोगों के सर्वे के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना कि भारत गंभीर भुखमरी की स्थिति में है, असंगत है।

भुखमरी सूचकांक के सर्वे के दौरान एक प्रश्न यह पूछा गया कि ‘पिछले 12 महीनों में क्या कोई समय था, जब पैसे या अन्य संसाधनों की कमी के कारण आप इससे चिंतित थे कि आपके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन न होगा या फिर आपने जितना सोचा, उससे कम खाया।’ ऐसे प्रश्नों के आधार पर किसी भी देश में भुखमरी का मापन सही परिणाम नहीं देगा। इस सूचकांक की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह भुखमरी और कुपोषण में अंतर नहीं करता। वास्तव में इस सूचकांक में भुखमरी की स्थिति का आकलन न तो वैज्ञानिक है और न ही तर्कसंगत।

चूंकि वैश्विक भुखमरी सूचकांक के चार मानकों में से तीन मानक पांच वर्ष के बच्चों से ही संबधित हैं, इसलिए इसे बच्चों की स्थिति का आकलन माना जाना चाहिए। जब भूख एवं पोषण से संबंधित अनेक आंकड़े राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा अपनी-अपनी रपट में प्रस्तुत किए जाते हैं तो फिर एक एनजीओ की रपट को इतनी तव्वजो देने का कोई कारण नजर नहीं आता।

स्वास्थ्य मंत्रालय, महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन के जल, सफाई एवं स्वच्छता कार्यक्रम आदि के संयुक्त प्रयासों से भारत में शिशु मृत्यु दर कम हुई है। भारत में शिशु मृत्यु दर 90 प्रति हजार से घटकर 32 प्रति हजार रह गई है। बच्चों को मरने से बचाया तो जा रहा है, पर जनसंख्या के आनुपातिक रूप से उन्हें अच्छा स्वास्थ्य देने की दिशा में बहुत कार्य किया जाना शेष है।

इस तथ्य को नहीं झुठलाया जा सकता कि पांच साल तक के बच्चों में वेस्टिंग (ऊंचाई के हिसाब से कम वजन) की समस्या है। भारत में 6.7 लाख परिवारों के सर्वे का डाटा भी उपलब्ध है, जो यह बताता है कि 48 प्रतिशत महिलाओं में एवं 52 प्रतिशत पुरुषों में कुपोषण कम हुआ है। यूएन चार्टर के अनुसार भुखमरी घटाने की दिशा में भारत ने अच्छा काम किया है। भारत सरकार सतत विकास लक्ष्य के अंतर्गत यह प्रयास कर रही है कि 2030 तक देश से भुखमरी को समाप्त कर दिया जाए। भारत सरकार दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम चला रही है।

निःसंदेह गरीब कल्याण अन्न योजना, प्रधानमंत्री मैत्री वंदना योजना, इंद्रधनुष, पोषण अभियान आदि के तहत पोषण के स्तर को बढाने हेतु अभी लंबा सफर तय किया जाना बाकी है, लेकिन भारत की स्थिति उतनी गंभीर नहीं, जितनी वैश्विक भुखमरी सूचकांक में दिखाई गई है। इसके चलते यह रैंकिंग संदेह को जन्म देती है। भारत में प्रति व्यक्ति आहार ऊर्जा आपूर्ति में वृद्धि हो रही है और आजादी के बाद खाद्यान्न का उत्पादन पांच गुना बढ़ गया है।

ऐसे में यह आवश्यक है कि खाद्य सुरक्षा के साथ कुपोषण सुरक्षा को भी जोड़ा जाए। कैलोरी की कमी को पूरा करने हेतु खाने में प्रोटीन एवं पोषक तत्वों की मात्रा में वृद्धि की जाए। केंद्र एवं राज्य सरकारें पोषण संबंधी जागरूकता के साथ-साथ प्रत्येक गांव को पोषण सुरक्षा चक्र से सुरक्षित करने हेतु मिलकर कार्य करें। मौजूदा पोषण कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने हेतु उसे स्वयं सहायता समूहों के साथ जोड़ना होगा, जिससे 2030 तक सभी प्रकार के कुपोषण को समाप्त किया जा सके। हमें किसी एनजीओ की लकीर को मिटाने के बजाय एक बड़ी लकीर खींचनी चाहिए।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)