राजनाथ सिंह। अयोध्या धाम में श्रीरामलला के नूतन विग्रह में प्राण प्रतिष्ठा के साथ भारत एक नए सांस्कृतिक युग में प्रवेश कर चुका है। यह प्राण प्रतिष्ठा भारतीय संस्कृति की सनातन यात्रा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं सुखद पड़ाव है। भारतवर्ष के जन-जन में जो स्वतःस्फूर्त चेतना, देश के गांव-गांव, शहर-शहर में खुशी और उल्लास का जो वातावरण हमें देखने को मिल रहा है, वह अभूतपूर्व है। हमारे जीवन में जब कोई बड़ा लक्ष्य हमें मिलता है तो लक्ष्य प्राप्ति हेतु संघर्ष का अतीत भी हमारी आंखों के सामने कौंधना स्वाभाविक है। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के संदर्भ में भी यह बात लागू होती है।

मुझे अब भी वह समय याद आता है तो मैं भावुक हो जाता हूं, जब तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के तानाशाही और क्रूर रवैये के कारण हमने अपने कई कारसेवक खो दिए। कोठारी बंधुओं सहित अनेक कारसेवकों के बलिदान का स्मरण कर आज भी हम सब का मन पीड़ा से भारी हो जाता है। उस समय मैं भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष था और इस जघन्य अपराध के विरोध में मैंने एक सत्याग्रह का नेतृत्व किया था। वह दौर बहुत कठिन था। हर तरफ अंधकार ही अंधकार था। भारतीयों की आस्था और अस्मिता को कुचलने के लिए सत्ता का खुलकर दुरुपयोग हो रहा था।

समय बदला। वर्ष 2014 में भगवान श्रीराम जी की कृपा और भारतीय जनता के समर्थन से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में नई सरकार बनी। उसके बाद से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग साफ होता गया। प्रधानमंत्री जी द्वारा रामलला विग्रह का प्राण प्रतिष्ठित होना, भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण के नए युग की शुरुआत है। इतना बड़ा अनुष्ठान तभी संपन्न हो सकता है, जब अनुष्ठान के कारक पर प्रभु की कृपा हो। जैसा कि गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं, ‘जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करें सब कोई।’

मोदी जी पर देश की जनता की कृपा हुई और जनता के आशीर्वाद से ही यह युगप्रवर्तक अनुष्ठान संपन्न हो पाया। रामलला के अपने जन्मस्थान पर लौटने से रामराज्य के बुनियादी मूल्यों की पुनर्स्थापना होगी। तुष्टीकरण की राजनीति का अंत होगा। जाति और वर्ग से परे एक सर्वसमावेशी समाज की नींव मजबूत होगी। अयोध्या का जन्मस्थान मंदिर श्रीराम के आदर्श, लक्ष्मण रेखा की मर्यादा, लोकमंगल की शासन व्यवस्था, आतंक और अन्याय के नाश का ‘बीज केंद्र’ बनकर उभरने की दिशा में अग्रसर हो चुका है। राम मंदिर कंक्रीट और पत्थर से बना देश में महज एक और मंदिर नहीं है। यह मंदिर भारतीय सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक और हमारी सनातनी आस्था का शिखर भी है। यह मंदिर बदलते भारत और उसके संकल्प का भी प्रतीक भी है। यह नए भारत की गारंटी भी है।

राम कथा में उल्लेख है कि प्रभु राम जब अयोध्या लौटते हैं तब रामराज्य का आरंभ होता है। अब चूंकि राम अयोध्या में आ चुके हैं तो जो आने वाला समय है, विशेषकर अगले 24-25 साल, जिसे प्रधानमंत्री मोदी जी ने अमृतकाल कहा है, वह निश्चय ही रामराज्य का समय होगा। यह रामराज्य उन्हीं आदर्शों से, उन्हीं विचारों से प्रभावित होगा, जो रामराज्य की मूल अवधारणा है। वह रामराज्य जो महात्मा गांधी का रामराज्य था। वही रामराज्य, जो बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर द्वारा प्रदत्त भारतीय संविधान में भी अंतर्निहित है।

चूंकि भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो रामराज्य की पहली शर्त होगी मर्यादाओं का सम्मान करना और नियमों-कानूनों का अनुपालन। मर्यादा को राजनीतिशास्त्र की जिस अवधारणा के सबसे करीब से समझा जा सकता है, वह है विधि का शासन। अत: रामराज्य में संवैधानिक मर्यादाओं, नैतिक मर्यादाओं और राजनीतिक मर्यादाओं का पालन होगा। रामराज्य की अगली बात है वैयक्तिक स्वतंत्रता। मर्यादित सत्ता वैयक्तिक स्वतंत्रता की गारंटी है। सभी राम भक्त समान हैं। चाहे वह हनुमान हों, वशिष्ठ हों, निषादराज हों, अहिल्या हों, शबरी हों या रहीम हों, सभी रामभक्ति के सूत्र से आपस में समान रूप से बंधे हैं। अर्थात रामराज्य में हमारे संविधान के स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के मूल्यों के आधार पर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था का संचालन होगा।

रामराज्य के तीन और महत्वपूर्ण पहलू हैं, जो हमारे अमृतकाल की रूपरेखा तय करेंगे। रामराज्य में अभाव नहीं हो सकता। अर्थात अर्थव्यवस्था कमजोर नहीं हो सकती। समृद्धि रामराज्य का अभिन्न अंग है। 2047 तक विकसित भारत बनाना रामराज्य का प्रमुख संकल्प है। दूसरी बात ज्ञान आधारित समाज के निर्माण से संबंधित है। रामराज्य में अज्ञान नहीं हो सकता। भारतीयों का पढ़ा लिखा एवं स्वस्थ होना जरूरी है। हमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास एवं अनुसंधान पर केंद्रित होकर भारतीय जनता को विश्व का सबसे सशक्त एवं समृद्ध मानव संसाधन बनाना है, ताकि 2047 तक हम ज्ञान आधारित समाज का निर्माण कर सकें।

तीसरा पहलू रक्षा व्यवस्था से जुड़ा है। भगवान श्रीराम श्रेष्ठतम धनुर्धर हैं। अजेय हैं। उनकी सेना अपराजेय है, तो रामराज्य में हमें अपनी सैन्य शक्ति को, अपनी रक्षा क्षमता को बढ़ाकर दुनिया की सबसे सक्षम सैन्य शक्ति के रूप में आगे लाना है। देश के रक्षामंत्री के तौर पर मैं यह बता सकता हूं कि मोदी जी के नेतृत्व में हम इसके लिए निरंतर प्रयासरत हैं। हमने न सिर्फ सेनाओं में आवश्यक सुधार किए हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि रक्षा उद्योग एवं अनुसंधान में लगातार वृद्धि हो, ताकि एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण हो सके।

एक समृद्ध भारत, एक शिक्षित-स्वस्थ भारत, एक ज्ञान-आधारित समाज और एक सक्षम सैन्यशक्ति वाला भारत, संवैधानिक मूल्यों पर आधारित भारत, 2047 में ऐसा होगा रामराज्य का स्वरूप। इस महान लक्ष्य प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय साधना के लिए हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने सभी भारतवासियों का आह्वान किया है। हम एक युग से दूसरे नए युग में पदार्पण कर रहे हैं। यह नवयुग मंगलकारी होगा। यह नवयुग आशाओं और विश्वास से भरा है, लेकिन साथ ही साथ यह जिम्मेदारियों से भी भरा है। हम भारतवासियों को अपने आप पर, अपनी संस्कृति पर, अपने पूर्वजों की विरासत पर, अपने आराध्य प्रभु श्रीराम पर आस्था रखते हुए नए भारत और नए युग के लिए कार्य करना है। मुझे विश्वास है कि प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में ऐसा ही होगा।

(लेखक रक्षा मंत्री हैं)