विवेक देवराय और आदित्य सिन्हा। कोविड महामारी के बाद और इस समय जारी भू-राजनीतिक उथलपुथल के दौर में जहां दुनिया के तमाम हिस्से पुरानी आर्थिक तेजी हासिल करने के लिए संघर्षरत हैं, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत स्पष्ट दिखते हैं। देश में उपभोग का स्तर भी बढ़ा है। इसके बावजूद कुछ आर्थिक दबाव अब भी कायम हैं, जैसे कि निर्यात का मोर्चा, जो व्यापक रूप से बाहरी वैश्विक परिदृश्य पर निर्भर करता है।

ऐसे में वृद्धि को गति देने के लिए सरकारी व्यय की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। सरकारी व्यय को भी मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। एक होता है चालू व्यय, जिसमें वेतन और सब्सिडी जैसे सामान्य एवं परिचालन लागतों से जुड़े खर्चे शामिल होते हैं। दूसरा होता है पूंजीगत व्यय जिसे कैपेक्स भी कहते हैं। इसमें बुनियादी ढांचे का निर्माण जैसी ऐसी परिसंपत्तियों का निर्माण होता है, जो लंबे समय तक उपयोग में लाई जाती हैं।

इसमें वित्तीय हस्तांतरण के माध्यम से कल्याणकारी कार्यक्रमों के रूप में धन का पुनर्वितरण होता है। वस्तुओं और सेवाओं की लागत को नियंत्रण में रखने के लिए सब्सिडी दी जाती है और सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाता है। इसके अंतर्गत शोध, विकास एवं लोक उपक्रमों पर खर्च किया जाता है।

अपनी उत्पादक प्रकृति के चलते पूंजीगत व्यय जीडीपी वृद्धि पर व्यापक प्रभाव डालता है। यह न केवल सड़क, स्कूल और कारखानों के निर्माण जैसी परियोजनाओं के माध्यम से तात्कालिक मांग को प्रोत्साहन देता है, बल्कि आर्थिकी की उत्पादन क्षमताओं में वृद्धि के जरिये दीर्घकालिक आर्थिक विस्तार की आधारशिला रखता है।

प्रश्न उठता है कि पूंजीगत व्यय अन्य खर्चों से कैसे बेहतर है? इसे मल्टीप्लायर इफेक्ट यानी गुणक प्रभाव की अवधारणा से समझा जा सकता है। इस प्रकार के खर्च में सरकार द्वारा आरंभिक स्तर पर जो राशि खर्च की जाती है वह अर्थव्यवस्था पर चक्रीय प्रभाव दिखाकर उसके एक बड़े हिस्से को प्रभावित करने की क्षमता रखती है। जैसे सरकार किसी हाईवे के निर्माण पर जो खर्च करती है, उससे कंस्ट्रक्शन में आपूर्तिकर्ताओं से लेकर कामगारों के लिए अवसर बनते हैं।

उन्हें आय अर्जित होती है। इस आय से कुछ लोग वस्तु और सेवाओं का उपभोग करेंगे तो कारोबारी अपने व्यवसाय में पुन: निवेश करेंगे। इस पैसे से जो कारोबार सृजित होगा, उससे अन्य लोगों के लिए भी रोजगार सृजित होंगे। यह प्रक्रिया चलती रहती है और हर एक चरण के साथ सरकार के आरंभिक निवेश में चक्रीय प्रभाव उत्पन्न होता रहता है।

वस्तुत: गुणक प्रभाव से यही आशय है कि इसमें सरकारी खर्च केवल परियोजना में प्रत्यक्ष रूप से सक्रिय लोगों तक ही सीमित नहीं रहता, अपितु यह आर्थिकी के विभिन्न स्तंभों पर असर डालते हुए समग्र आर्थिक वृद्धि को संबल प्रदान करता है। संभव है कि सभी प्रकार के सरकारी व्यय इस प्रकार का प्रभाव न उत्पन्न न कर पाएं। सुकन्या बोस और एनआर भानुमूर्ति के एक शोध के अनुसार पूंजीगत परियोजनाओं (बुनियादी ढांचे जैसी) पर खर्च अन्य प्रकार के खर्चों की तुलना में कहीं व्यापक प्रभाव डालता है।

ऐसी परियोजनाओं पर सरकार जो एक रुपया खर्च करती है वह 2.45 रुपये के खर्च जितना प्रभाव उत्पन्न करता है। इसके उलट, सरकार नकदी हस्तांतरण (कल्याण और पेंशन) और सामान्य व्यय (जैसे कि वेतन) पर जो एक रुपया खर्च करती है, उसका प्रभाव 0.98 से 0.99 रुपये के बराबर पड़ता है। यानी अपने मूल के जितना भी नहीं।

इससे स्पष्ट है कि पूंजीगत परियोजनाओं पर खर्च न केवल तात्कालिक तौर पर अर्थव्यवस्था की गति बढ़ाता है, बल्कि बुनियादी ढांचे में सुधार, उत्पादकता में बढ़ोतरी और भावी आर्थिक गतिविधियों को आधार प्रदान कर दीर्घकालिक वृद्धि की ठोस बुनियाद भी रखता है।

सीधे शब्दों में कहें तो सरकार सड़क, स्कूल या अस्पताल जैसी परियोजनाओं पर जो खर्च करती है, उससे न केवल वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, बल्कि भविष्य के लिए भी अवसरों का सृजन होता है। यह निवेश लोगों के जीवन को सुविधाजनक बनाता है। कारोबार को सुगम बनाता है। रोजगार बढ़ाता है। इससे दीर्घकाल में एक सशक्त अर्थव्यवस्था की राह तैयार होती है।

वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में सरकार ने पूंजीगत व्यय के लिए 11.1 लाख करोड़ रुपये का प्रविधान किया है। यह जीडीपी के 3.4 प्रतिशत के बराबर आवंटन है। इसमें पिछले वर्ष की तुलना में 17.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। यह बढ़ोतरी बुनियादी ढांचा विकास एवं दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करती है। हाल के वर्षों में सरकारी निवेश के दम पर ही बुनियादी ढांचे के विकास ने गति पकड़ी है।

वर्ष 2019 से 2023 के बीच इस मोर्चे पर हुआ 49 प्रतिशत निवेश सरकार द्वारा किया गया। पिछले एक दशक के दौरान देश में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विकास हुआ है। इनमें अत्याधुनिक रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट और बंदरगाह और हाईवे से लेकर ब्राडबैंड कनेक्टिविटी जैसे प्रमुख काम गिनाए जा सकते हैं। बेहतर सुविधाओं और संपर्क से पूर्वोत्तर जैसे हिस्सों का शेष भारत के साथ जुड़ाव बढ़ रहा है।

सुनिश्चित किया जा रहा है कि दुर्गम इलाकों में भी स्कूल और अस्पताल जैसी सुविधाएं पहुंचें। आयुष्मान भारत योजना के जरिये किफायती स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। दूरदराज के क्षेत्रों में भी आधुनिक अस्पताल और आरोग्य मंदिर स्थापित किए जा रहे हैं। तमाम मेडिकल कालेज और अस्पताल निर्माण की प्रक्रिया में हैं।

करीब 60,000 तालाबों का पुनरुद्धार किया गया है तो दो लाख पंचायतों को आप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ा गया है। नहरों का फैलता जाल भी किसानों को लाभ पहुंचा रहा है। इसके साथ ही चार करोड़ पक्के मकानों का निर्माण हाशिए पर रहने वाले लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने में सेतु की भूमिका निभा रहा है।

इसी कड़ी में तीन करोड़ और मकानों के निर्माण की भी बात है। सरकार का यह दृष्टिकोण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उसी संकल्पना के अनुरूप है, जिसका उल्लेख उन्होंने स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में ‘ईज ऑफ लिविंग’ यानी जीवन की सुगमता के रूप में किया।

(देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और सिन्हा परिषद में ओएसडी-अनुसंधान हैं)