डाक्‍टर संजय वर्मा। मानव सभ्यता के लिए अंतरिक्ष हमेशा से जिज्ञासा, आशा और आशंकाओं का केंद्र रहा है। एक तरफ मनुष्य इस प्रश्न से जूझता था कि क्या इस ब्रह्मांड में वह अकेला है। कोई उत्तर न पाकर वह अंतरिक्ष की ओर देखता था। दूसरी तरफ वह आशंकित रहता था कि कहीं कोई परग्रही सभ्यता (एलियंस) उस पर हमला न कर दे। ज्योतिषीय गणनाओं और वैज्ञानिक खोज-पड़ताल ने कई सवालों के जवाब तो बीती सदियों में दिए हैं, लेकिन अब भी अनेक रहस्य ऐसे हैं जिनकी पड़ताल बाकी है। जैसे, आखिर हमारे सौरमंडल और उसके पार क्या है? सूर्य के रहस्य क्या हैं और क्षुद्रग्रहों से हमें क्या खतरा है? क्या अंतरिक्ष केवल सैर का ठिकाना बन सकता है और क्या धरती जैसे दूसरे असंख्य ग्रह सच में किसी तरह के जीवन से आच्छादित हैं? क्या किसी मुसीबत के दौर में अंतरिक्ष हम इंसानों के लिए एक नया ठिकाना बन सकता है?

इस दिशा में हाल में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा द्वारा अंतरिक्ष में छोड़े गए जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का उल्लेख विशेष रूप से करना होगा। नासा, यूरोपीय स्पेस एजेंसी और कनाडाई स्पेस एजेंसी द्वारा तैयार अब तक के सबसे शक्तिशाली हब्बल टेलीस्कोप से सौ गुना ज्यादा क्षमता वाले जेम्स टेलीस्कोप को महाविस्फोट (बिगबैंग की परिघटना) के बाद तैयार हुई आकाशगंगाओं की टोह लेने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इससे लग रहा है कि भविष्य में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप अंतरिक्ष से जुड़े शोध को नए आयाम देगा और कई उन रहस्यों को खोलेगा जिनसे पता चलेगा कि अब तक की जानकारी के मुताबिक आखिर जीवन हमारी पृथ्वी से बाहर क्यों नहीं पनपा।

इस साल की एक अन्य उपलब्धि यह है कि सूर्य का अध्ययन करने के लिए नासा द्वारा वर्ष 2018 में प्रक्षेपित यान-पार्कर सोलर प्रोब सूरज के अंदरूनी हिस्से को स्पर्श करने में सफल रहा है। इससे विज्ञानियों को सौर हवाओं और आकाशगंगा को एक साथ रखने वाले सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की करीबी जानकारियां मिलने की उम्मीद है।

जब बात अंतरिक्ष से जुड़ी उम्मीदों की होती है, तो अक्सर कहा जाता है कि जल्द ही ऐसा हो सकता है कि इंसान को किसी और ग्रह पर जाकर बसना पड़े। ग्लोबल वार्मिग और बढ़ती आबादी के साथ जरूरतों में वृद्धि होने से संसाधनों को लेकर चल रही मार-काट के नतीजे में ऐसा बहुत जल्द हो सकता है जब हमें रहने के लिए चंद्रमा से लेकर मंगल ग्रह तक की खाक छाननी पड़े। महज संसाधनों की कमी ही नहीं, कोरोना वायरस से फैली महामारी और कोविड-19 के वायरसों के बदलते स्वरूपों में अंतरिक्ष में कहीं और जाकर बसने की संभावनाओं को और बल दिया है। लेकिन पृथ्वी से बाहर जाकर बसने की योजना का साकार होना आसान नहीं है, यह बात केवल विज्ञानी ही नहीं, तमाम योजनाकार भी जानते हैं।

पृथ्वी से बाहर सांस लेने के लिए आक्सीजन और पीने के लिए पानी का इंतजाम करना भी कितनी टेढ़ी खीर है। इसका अंदाजा स्पेस की सैर पर जा रहे पर्यटक और अंतरिक्षविज्ञानी बखूबी लगा सकते हैं। शायद यही वजह है कि फिलहाल अंतरिक्ष को सूचना-तकनीक के प्रसार के अलावा शोध और सैर का केंद्र बनाया गया है। इससे जहां मौसम आदि की जानकारी मिल रही है और सूचना का तेज प्रसार हो रहा है, वहीं अंतरिक्ष को सैर का नया ठिकाना बनाने से अकूत कमाई के अवसर भी बन रहे हैं।

राहतों का अंतरिक्ष : असल में, कोरोना वायरस के खौफ में जी रही सभ्यता को इस साल अंतरिक्ष में सैर की घटनाओं से कई राहतें मिली हैं। निजी स्पेस एजेंसियों- वर्जिन गैलेक्टिक और ब्लू आरिजिन के संस्थापकों रिचर्ड ब्रैन्सन और जेफ बेजोस के प्रयासों से इस वर्ष कुछ ऐसे अभियान संचालित हुए, जिनसे अंतरिक्ष पर्यटन और इससे होने वाली कमाई के नए केंद्र के रूप में विकसित होने लगा है। इस साल जुलाई में वर्जिन गैलेक्टिक के मालिक रिचर्ड ब्रैन्सन अपने पांच कर्मचारियों के साथ अंतरिक्ष की उपकक्षीय (सब-आर्बिटल) उड़ान में सफल रहे थे। अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस ने भी जुलाई 2021 में अपनी कंपनी ब्लू आरिजिन के न्यू शेपर्ड यान से अंतरिक्ष की उड़ान भरी थी।

निजी अंतरिक्ष कंपनियों की इन कोशिशों से लग रहा है कि अंतरिक्ष एक बार फिर इंसान के सपनों की नई मंजिल बन गया है। ब्रैन्सन और बेजोस की कंपनियों की पहल नई जरूर है, परंतु अंतरिक्ष की सैर और उसमें निजी कंपनियों की भागीदारी की पहल अरसे से की जा रही है। पिछले ही साल (30 मई 2020) एक निजी उड़ान की मदद से दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) पहुंचे थे। इस उपलब्धि के साथ अमेरिका, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका की एक साथ नागरिकता रखने वाले अरबपति एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स दुनिया की पहली ऐसी प्राइवेट कंपनी बन गई थी, जो अपने राकेट से दो अंतरिक्षयात्रियों को आइएसएस तक सफलतापूर्वक ले गई थी।

30 मई, 2020 की रात स्पेसएक्स का ताकतवर राकेट फाल्कन-9 स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल लेकर कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ा था जिसने 19 घंटे की यात्रा के बाद कैप्सूल को आइएसएस से जोड़ दिया। इस कैप्सूल में राबर्ट बेनकेन और डगलस हर्ले नामक दो अंतरिक्षयात्री थे, जिन्हें एक विशुद्ध निजी उड़ान से अंतरिक्ष में पहुंचने का गौरव प्राप्त हुआ। हालांकि यह अभियान आइएसएस से जुड़ा था, लेकिन इससे उम्मीद जगी थी कि जल्दी ही दुनिया के और भी कई लोग अंतरिक्ष पर्यटन का अपना सपना पूरा कर सकेंगे।

कमाई का मंगलदायी सफर : कहने को तो हममें चांद और मंगल या उसके पार जाने का भी हौसला हो सकता है, लेकिन वर्तमान अंतरिक्षयानों के लिए न तो यह संभव है कि वे अपने साथ इंसान को चंद्रमा से पार ले जाकर वापस पृथ्वी पर सही-सलामत ला सकें और न ही अंतरिक्ष इतनी सुविधापूर्ण जगह है कि वहां जाकर इंसान लंबे समय तक स्वस्थ और जीवित रह सके। यहां तक कि मंगल ग्रह की यात्र को साकार करने की जो योजनाएं अभी चल रही हैं, उनमें भी यही अंदाजा लगाया जा रहा है कि जब कभी ऐसी कोई यात्रा संभव होगी, तो उसमें मंगल से पृथ्वी तक वापसी में इंसान का जिंदा रहना शायद ही संभव हो। मंगल तो क्या अभी की स्थितियों में चंद्रमा तक किसी मिशन को सही-सलामत पहुंचाना बेहद चुनौती भरा है। यही वजह है कि वर्ष 1969 के अपोलो-11 मिशन के बाद कोई मानव चंद्रमा पर नहीं भेजा जा सका है।

इसलिए ज्यादा कोशिश यही है कि मानवों को अंतरिक्ष कहलाने वाली पृथ्वी की निचली कक्षा (सबआर्बिट) तक ले जाया जाए और यदि आइएसएस पर मौजूद रहने वाले विज्ञानियों-यात्रियों की अदला-बदली संभव हो तो थोड़े अंतराल पर नए यात्री वहां भेजकर कुछ महीने वहां बिता चुके यात्रियों को वापस लाया जाए। अभी तक यह सारा काम सरकारी स्पेस एजेंसियों के बल पर हुआ है। परंतु अंतरिक्ष यात्रओं और अनुसंधान पर बढ़ रहे खर्च के कारण सरकारी एजेंसियां इस काम से हाथ खींचने लगी हैं। इन सारे कारणों के मद्देनजर स्पेस एजेंसी नासा अपने उपग्रहों का प्रक्षेपण यूरोपीय स्पेस एजेंसी और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से करवाती है और बाकी बचे ज्यादातर काम निजी कंपनियों के हवाले कर दिए हैं।

अंतरिक्ष पर्यटन में निजी क्षेत्र : वैसे तो अंतरिक्ष पर्यटन में कमाई की भरपूर संभावनाएं हैं, लेकिन इसमें निहित खतरों को देखते हुए अत्यधिक जोखिम वाले ऐसे कार्यो में सरकारी एजेंसियां अपने विज्ञानियों और विशेषज्ञों की सेवाएं प्राइवेट एजेंसियों को दे रही हैं। हालांकि यहां एक बड़ा सवाल है कि ऐसी अंतरिक्ष यात्रओं का उद्देश्य क्या है। क्या इनका मकसद केवल अमीरों को अंतरिक्ष की सैर पर ले जाकर कमाई करना है।

बेशक, दुनिया में ऐसे दिलेरों (और अमीरों) की कमी नहीं है जो अंतरिक्ष की सैर के ख्वाब को हर हाल में पूरा करना चाहते हैं। ब्रैन्सन की कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक का दावा है कि वर्ष 2022 से शुरू होने वाली उसकी निजी स्पेस फ्लाइट के लिए दुनिया के लगभग 600 लोगों ने अपनी बुकिंग करा रखी है। इन लोगों ने प्रति सीट ढाई लाख डालर की रकम चुकाई है। लेकिन अंतरिक्ष की सैर के उद्देश्य इससे भी ज्यादा हैं।

असल में इनसे लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के रास्ते खुलते हैं और भारी आर्थिक बोझ से जूझ रही सरकारी स्पेस एजेंसियों को अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए संसाधन जुटाने में इनसे मदद मिलती है। यानी इनके जरिये मानव अंतरिक्ष को छूकर एक तसल्ली भर नहीं पाना चाहता है। बल्कि उस अंतरिक्ष को और करीब से जानना चाहता है जिसका विस्तार अरबों-खरबों किलोमीटर है, लेकिन अब तक की यात्रओं में मानव ने उसके नगण्य हिस्से को ही जाना है।

चांद-सितारों के जन्म और ब्रह्मांड विस्तार की पहेली ऐसी है, जिस पर बहुत से प्रश्नों के उत्तर जानने की आवश्यकता शायद अगले कई दशकों और सदियों तक बनी रह सकती है। लेकिन आगे बढ़ते खगोल विज्ञान और उसे मिल रही तकनीकी मदद से इतना तो तय लग रहा है कि कुछ रहस्यों की थाह जल्द ही लग जाएगी। इस लिहाज से बीत रहे वर्ष 2021 में ऐसा क्या-क्या हुआ जिससे भविष्य में मानव के लिए अंतरिक्ष की राह और आसान हो सकती है, इसे भी हमें जानना-समझना चाहिए

भारत और इसरो का इरादा

चंद्रमा पर दो और मंगल पर अपना एक मिशन भेजकर भारत और उसका अंतरिक्ष संगठन ‘इसरो’ उन देशों की गर्वीली पांत में शामिल है जो सक्रिय रूप से अंतरिक्ष के क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे हैं। अपने अभियानों के बल पर हमारे देश ने कई उल्लेखनीय मकसद हासिल किए हैं। दूरसंचार के विस्तार और मौसम की जानकारियां जुटाने से लेकर शत्रु देशों की हरकतों की अंतरिक्ष निगरानी के अलावा अंतरिक्ष में जंग की तैयारी की एक झलक मिशन शक्ति के रूप में मिसाइल से दिखाते हुए भारत अपने एक सेटेलाइट को तबाह कर चुका है।

इसरो दुनिया भर के उपग्रहों को अपने भरोसेमंद राकेटों से अंतरिक्ष की कक्षाओं में पहुंचाकर एक रुतबा भी कायम कर चुका है। लेकिन अंतरिक्ष अनुसंधान का काम केवल सरकारी पैसे से न चले, इसके लिए वर्ष 2021 में भारत ने एक उल्लेखनीय पहल की है। इस साल अक्टूबर में देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर काम करने वाली सरकारी और निजी कंपनियों को साथ लाने के लिए ‘इंडियन स्पेस एसोसिएशन’ की शुरुआत की गई, जिसमें इसरो के अलावा टाटा, भारती, और एलएंडटी जैसी बड़ी निजी कंपनियां भी शामिल हैं।

इस संगठन (इस्पा) के फौरी उद्देश्यों में अगले कुछ वर्षो में देसी-विदेशी करीब 650 सेटेलाइट प्रक्षेपित करना है, ताकि अंतरिक्ष से कमाई को और विस्तार दिया जा सके। ध्यान रखना होगा कि इस समय अंतरिक्ष पर्यटन का वैश्विक कारोबार लगभग 360 अरब डालर का है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी केवल दो प्रतिशत ही है। इस्पा जैसा संगठन खड़ा करके देश अपनी हिस्सेदारी को वर्ष 2030 तक 10 प्रतिशत तक ले जाना चाहता है। साथ ही भारत इस क्षेत्र में अमेरिकी दबदबे को चुनौती देने की हैसियत में आ सकता है।

(एसोसिएट प्रोफेसर, बेनेट यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा)