प्रो. रसाल सिंह। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह को भारतीय इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और अद्वितीय घटना के रूप में देखा जाएगा। इस समारोह ने भारतीय जनमानस के वर्षों पुराने उद्घोष-‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ को साकार कर दिया। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अडिग संकल्प के साथ-साथ असंख्य भारतीयों की दृढ़प्रतिज्ञा, अनवरत संघर्ष और असीम समर्पण का भी प्रमाण है।

राम मंदिर ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ और ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ की उदात्त भावना को समाहित और संपोषित करने वाला है। इसी कारण प्रधानमंत्री ने राम के प्रति समर्पण को राष्ट्र के प्रति समर्पण से जोड़ने का संकल्प बताया। वास्तव में यह मंदिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए सांस्कृतिक पर्यटन का अद्वितीय केंद्र बनेगा। बहु-विध दुख-तापों से हांफते-कांपते विश्व-समुदाय के लिए राम और रामराज्य एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करते हैं।

पृथ्वी को ‘निसिचरहीन’ करना लोकनायक राम की केंद्रीय प्रतिज्ञा थी। इस ध्येय-प्राप्ति के लिए उन्होंने दीन-दुखी, निर्बल और निर्धन को साधकर उन्हें संगठित किया। उनके आत्मगौरव-आत्मविश्वास को जागृत किया। रामराज्य समता, समरसता, बंधुता के साथ-साथ सतत और संतुलित विकास का अनुकरणीय उदाहरण है। ‘दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज काहुहि नहिं व्यापा’ और ‘नहिं दरिद्र कोई दुखी न दीना, नहिं कोई अबुध न लक्षणहीना’ रामराज्य की केंद्रीय विशेषता है।

‘रामराज्य’ एक यूटोपिया नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अनुभव है। यह आदर्श राज्य का एक ऐसा अनोखा उदाहरण है, जो आधुनिक कल्याणकारी लोकतांत्रिक राज्य के लिए प्रेरक है। रामराज्य में समाज पीड़ामुक्त और प्रेमयुक्त है। दीन-हीन को संरक्षण और सहायता प्राप्त होती है। नैतिकता आधारित इस राज्य में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के लिए कोई स्थान नहीं है। सामाजिक जीवन सुख, शांति और समृद्धि से ओतप्रोत है। रामराज्य की इन विशेषताओं के कारण ही महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महापुरुषों ने इसे स्वातंत्र्योत्तर भारत के शासन-तंत्र के अनुकरणीय आदर्श के रूप में पहचाना और प्रस्तावित किया।

संभवतः इसी से प्रेरित और प्रभावित होकर प्रधानमंत्री मोदी ने सनातन सांस्कृतिक मूल्यों और आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनूठे संगम पर आधारित शासन की स्थापना की है। उनके द्वारा आविष्कृत शासन-सूत्र को नव-कल्याणवाद का नाम दिया जा सकता है। यह रामराज्य का समसामयिक संस्करण है। आध्यात्मिक अभिप्रेरणा से संचालित समावेशी विकास केंद्रित सुशासन इसका आत्मा है। जन-जन की भागीदारी और सर्वजनहिताय पर आधारित उनके शासन का ध्येय-मंत्र ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ है।

प्रधानमंत्री मोदी की प्रमुख पहल में से एक प्रधानमंत्री जनधन योजना है। यह निर्धन-वर्ग के आर्थिक समावेशन और सशक्तीकरण की भावना का प्रकटीकरण है। इसके माध्यम से बैंक सेवाओं से वंचित बहुत बड़ी आबादी की बैंकिंग तक पहुंच सुनिश्चित की गई है। इसी प्रकार आयुष्मान भारत योजना आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को स्वास्थ्य सुविधा सुनिश्चित करती है। रामराज्य के सिद्धांत के अनुरूप इसका ध्येय सभी के लिए उत्तम स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता है। स्वच्छ भारत अभियान, जिसका मुख्य उद्देश्य बहुआयामी स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण है।

इनके अतिरिक्त वंचित वर्गों के लिए घर उपलब्ध कराने वाली प्रधानमंत्री आवास योजना, ग्रामीण विद्युतीकरण पर केंद्रित सौभाग्य योजना, कृषकों के सहयोग के लिए पीएम किसान सम्मान निधि योजना, घर-घर स्वच्छ पेयजल पहुंचाने वाली हर घर जल योजना आदि उल्लेखनीय हैं। इन सभी योजनाओं के लाभार्थी समाज के उपेक्षित एवं वंचित वर्ग हैं। इनमें दलित, वनवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यक, महिलाएं, किसान और ग्रामीण प्रमुख हैं।

उज्ज्वला योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ और नारी शक्ति वंदन अधिनियम आदि महिला सशक्तीकरण की दिशा में उठाए गए युगांतकारी कदम हैं। मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, और स्टार्टअप इंडिया जैसी पहल देश में आत्मनिर्भरता और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करती हैं। कौशल विकास और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आत्मनिर्भरता की कुंजी हैं। वहीं, डिजिटल भारत अभियान सुगमता, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के उन्मूलन पर केंद्रित है। ये सभी योजनाएं और रामराज्य की भावना का ही सगुण साकार रूप हैं।

पिछले कुछ वर्षों में कुछ राज्यों में पनपी रेवड़ियां बांटने की राजनीतिक संस्कृति नागरिकों को पराश्रित और परजीवी बना रही है। उसके बरक्स मोदी सरकार द्वारा संचालित इन तमाम योजनाओं ने आम भारतीय का सशक्तीकरण किया है। ये आखिरी पायदान पर खड़े नागरिकों की चिंता और कल्याणकामना से प्रेरित हैं। समग्रतः ये प्रयास एक ऐसे समाज के निर्माण के संकल्प को दर्शाते हैं, जहां न्याय, कल्याण और समृद्धि सिर्फ सिद्धांत नहीं, बल्कि यथार्थ हैं और उनकी पहुंच और प्राप्ति सबके लिए समान रूप से है।

प्रधानमंत्री मोदी की ये नव-कल्याणकारी नीतियां समकालीन भारत में रामराज्य के स्वप्न को साकार करने का प्रयत्न हैं। ये नीतियां समाज में प्रत्येक स्तर पर समता, समरसता, एकता, एकात्मता, सतत विकास और आर्थिक समावेशन को संभव कर रही हैं। ऐसे समय में राम मंदिर का पुनर्निर्माण एक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं, अपितु यह आयोजन सांस्कृतिक स्वाधीनता और सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण के नए युग का सूत्रपात है। यह भारत का अमृतकाल भी है। जन-जन के आह्वान के साथ खड़ा किया गया यह आंदोलन रामराज्य के स्वप्न को साकार करने की सार्थक पहल है।

(लेखक किरोड़ीमल कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)