पीकेडी नांबियार। मुझे वह दिन आज भी अच्छी तरह याद है, जब मैं 1992 में उथल-पुथल भरे माहौल के बीच अयोध्या पहुंचा था। उस समय मेरी उम्र मात्र 16 साल थी। उन दिनों की यादें आज भी मेरे रोंगटे खड़े कर देती हैं। देश भर से हर उम्र के हजारों श्रद्धालु अयोध्या में जुटे हुए थे। मौसम और माहौल की तमाम मुश्किलों के बावजूद ‘जय श्री राम’ के गगनभेदी नारे हवा में गूंज रहे थे और मुझे आध्यात्मिक अहसास दे रहे थे। युवा, बूढ़े और महिलाएं सभी श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की पुनः प्राप्ति के लिए इस आंदोलन में शामिल हुए थे।

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के आलोचक अक्सर इसे राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद समेत भाजपा द्वारा शुरू किया गया आंदोलन कहकर खारिज कर देते थे। उस समय लगभग सभी राजनीतिक दल और मीडिया का अधिकांश हिस्सा भी इस आंदोलन को खारिज करने में जुटा था। यह वास्तविकता को नकारने का प्रयास था।

यदि अयोध्या विवाद पर ध्यान दिया जाए तो यह एक तरह से राष्ट्रीय स्वाभिमान को पुनः प्राप्त करने के लिए शुरू किया गया सांस्कृतिक आंदोलन था। भगवान श्रीराम हमारी धरती के सांस्कृतिक मूल्यों की अभिव्यक्ति करते हैं। यही कारण है कि श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन लाखों लोगों के दिलों को छू गया। इस आंदोलन को केवल भाजपा अपना समर्थन दे रही थी। इसका उसे राजनीतिक लाभ भी मिल रहा था, लेकिन विपक्षी दल इस सच को समझने से इन्कार कर रहे थे। वे इस सत्य को भी अनदेखा कर रहे थे कि श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन उत्तर के साथ दक्षिण के लोगों के लिए भी एक भावनात्मक मुद्दा है।

सार्वजनिक जीवन में राम के नाम का उपयोग करने वाले पहले प्रमुख राजनीतिज्ञ महात्मा गांधी थे। उन्होंने हमारे लिए रामराज्य का आदर्श विचार छोड़ा। रामराज्य के इस विचार को स्वयं को गांधी के अनुयायी कहने वाले अन्य कई नेता अपनाते तो थे, लेकिन वे अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन को खारिज भी करते थे।

इस आंदोलन के दौरान भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि उन्होंने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की अपनी रथ यात्रा के बाद राम के साथ लोगों के गहरे जुड़ाव को महसूस किया। भारत के लोगों के लिए श्रीराम उनके जीवन की वास्तविकता हैं। श्रीराम देश के जनमानस में बहुत गहरे बसे हैं। उनका धार्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक महत्व भी है। वह भारत के दायरे को पार कर कई देशों की सभ्यताओं को प्रभावित करते हैं। मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में राम आज भी प्रेरक व्यक्तित्व हैं। इसी तरह थाइलैंड में भी। थाइलैंड के अधिकांश लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं, लेकिन वहां के राजा को राम का वंशज माना जाता है।

अयोध्या को लेकर विवाद इसलिए उत्पन्न हुआ, क्योंकि राजनीति का एक वर्ग श्रीराम की महत्ता को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक अल्पसंख्यक समुदाय और विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए इस मुद्दे को दबाने की कोशिश करते रहे। कांग्रेस की ओर से राम मंदिर की मांग को सांप्रदायिक करार दिया गया।

शैक्षणिक संस्थानों पर दबदबा रखने वाले वामपंथियों ने हिंदू विरोध को बल देने वाली कहानियां गढ़ीं। वामपंथियों ने अयोध्या विवाद को लेकर लोगों को गुमराह करने की भी हरसंभव कोशिश की। अयोध्या के विवादित स्थल में उत्खनन करने वाले आर्कियोलोजिस्ट केके मुहम्मद बताते हैं कि किस तरह कुछ इतिहासकारों ने झूठे तर्कों और तथ्यों के सहारे लोगों और विशेष रूप से मुस्लिम नेतृत्व को बरगलाने की कोशिश की। वास्तव में इरफान हबीब और रोमिला थापर जैसे इतिहासकारों ने अयोध्या विवाद के सद्भावपूर्ण तरीके से समाधान के प्रयासों को विफल करने का भी काम किया। मुसलमानों का एक वर्ग अयोध्या की विवादित भूमि को हिंदुओं को सौंपने के पक्ष में था, ताकि वे उस पर राम मंदिर बना सकें, लेकिन इतिहासकारों और सेक्युलर नेताओं के एक बड़े समूह ने मुस्लिम समुदाय को झूठी आशा देकर उनके बीच के कट्टरपंथी तत्वों को उकसाया।

यह एक तथ्य है कि कथित सेक्युलर पार्टियां राम की महत्ता को नकारती रहीं। राम सेतु मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में इस आशय का हलफनामा दिया था कि राम एक काल्पनिक पात्र हैं। इसी के साथ डीएमके जैसी पार्टी के नेताओं ने यह पूछा कि राम कौन हैं? उन्होंने कौन से इंजीनियरिंग कालेज से पढ़ाई कर राम सेतु का निर्माण किया था? यह दयनीय है कि डीएमके नेता अपनी जड़ों पर तो गर्व करते हैं, लेकिन वे उस इतिहास के बारे में नहीं जानते, जहां से वे आते हैं। जाने-माने इतिहासकार बीबी लाल के अनुसार राम का संदर्भ तमिलनाडु के संगम साहित्य में भी पाया जाता है। यह साहित्य वाल्मीकि रामायण के कालखंड का है।

राम जन्मभूमि आंदोलन ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिवेश को बदलने का काम किया। इस आंदोलन ने राजनीतिक विमर्श में बदलाव लाने का भी काम किया। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का सपना साकार होने को है। पूरा देश 22 जनवरी की प्रतीक्षा कर रहा है, जब राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। यह देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा। अयोध्या में राम मंदिर के भव्य निर्माण ने पीढ़ियों से हिंदू समाज के मन की टीस को दूर किया है। लालकृष्ण आडवाणी ने कभी कहा था कि राम मंदिर भारत को सशक्त, समृद्ध एवं सद्भावपूर्ण देश के रूप में स्थापित करेगा। रामराज्य सुशासन की हमारी कल्पना का स्रोत है। श्रीराम ने भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक के रूप में जैसा सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक प्रभाव उत्पन्न किया, उसकी मिसाल मिलना कठिन है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)