हरेंद्र प्रताप: पिछले दिनों बिहार के मधुबनी जिले के रहने वाले मो. एहतेशाम को दिल्ली एयरपोर्ट पर पकड़ा गया। वह अफगानिस्तान भागने की तैयारी में था। प्रतिबंधित आतंकी संगठन पीएफआइ (पापुलर फ्रंट आफ इंडिया) के सदस्य याकूब खान को भी बिहार के पूर्वी चंपारण के एक मदरसे से गिरफ्तार किया गया था। गत वर्ष जब पीएफआइ से संबंधित समाचार आ रहे थे तो उसमें पटना हवाई अड्डा से सटे फुलवारी शरीफ के अलावा पूर्वी चंपारण और पूर्णिया का भी नाम आया था। पूर्णिया जिला पीएफआइ का मुख्यालय था तो पूर्वी चंपारण उसका ट्रेनिंग सेंटर।

27 अक्टूबर, 2013 को नरेन्द्र मोदी के पटना आगमन पर गांधी मैदान में हुए विस्फोट के कारण केंद्रीय एजेंसिया सतर्क थीं। परिणामस्वरूप वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री मोदी जब बिहार आए तो उससे एक दिन पूर्व एनआइए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) ने फुलवारी शरीफ से जलालुद्दीन और अतहर परवेज को गिरफ्तार कर लिया। शिक्षा के नाम पर ये दोनों युवाओं को जिहाद की ओर धकेल रहे थे। इसी प्रकार वर्ष 2016 में जाकिर नाइक और असदुद्दीन ओवैसी के समर्थन में पीएफआइ ने पटना में एक जुलूस निकाला था जिसमें पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए। वर्ष 2021 में त्रिपुरा की घटना को लेकर भी फुलवारी शरीफ में एसडीपीआइ (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया) के आह्वान पर एक अराजक जुलूस निकाला गया था।

‘आतंकवादियों का बिहारी लिंक’ सदा से चर्चा में रहा है। देश में घटी तमाम आतंकी घटनाओं के तार बिहार से जुड़ते रहे हैं। फुलवारी शरीफ घटना में गिरफ्तार अतहर परवेज ने एनआइए के पूछने पर यह स्वीकार किया था कि अपनी गिरफ्तारी से चार-पांच महीने पूर्व वह एटीएस आफिस गया था तथा एटीएस के दो पदाधिकारी उसके संपर्क में थे। बिहार पुलिस ने इस समाचार का न तो खंडन किया और न ही यह बताया कि वे दो पदाधिकारी कौन थे। वर्ष 2006 में मुंबई एटीएस ने मुंबई ट्रेन विस्फोट में मधुबनी के मो. कलाम और खालिद शेख को गिरफ्तार किया था।

वर्ष 2009 में दिल्ली विस्फोट में मधुबनी के मो. मदनी, 2008 में रामपुर के सीआरपीएफ कैंप में हुए विस्फोट में मधुबनी के सबाहुद्दीन, 2011 में मधुबनी के ही अफजल एवं गुल अहमद की गिरफ्तारी के बाद समाचार पत्रों में आतंकवाद के ‘मधुबनी और दरभंगा माड्यूल’ की चर्चा भी शुरू हो गई थी। मई 2012 में कर्नाटक पुलिस ने बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम विस्फोट के संबंध में दरभंगा के मो. कफिल को गिरफ्तार किया था।

इस पर बिहार विधानसभा के अंदर एक प्रश्न के जवाब में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि कर्नाटक पुलिस ने अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को बिहार पुलिस को बिना बताए गिरफ्तार किया। अखबारों में ‘दरभंगा और मधुबनी माड्यूल’ लिखे जाने की भी उन्होंने निंदा की। मुख्यमंत्री द्वारा वर्ष 2012 में कर्नाटक की भाजपा सरकार के खिलाफ की गई टिप्पणी 2013 में भाजपा से संबंध विच्छेद का कोई पूर्व संकेत तो नहीं था?

वर्ष 2021 में हुए दरभंगा ट्रेन विस्फोट की जांच एनआइए कर रही थी। इसी क्रम में 2022 में प्रधानमंत्री मोदी के बिहार आगमन के एक दिन पूर्व फुलवारी शरीफ में एनआइए ने कार्रवाई की। इस घटना के बाद राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण एवं नीति आयोग की बैठक से मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति ने भावी राजनीति के संकेत दे दिए। फुलवारी शरीफ की घटना के बाद बिहार में राजनीतिक परिवर्तन हुआ था। भाजपा से संबंध विच्छेद करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह स्वीकार किया कि समाज में विवाद पैदा करने का प्रयास उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था। सवाल यह है कि किस विषय को लेकर कौन विवाद पैदा कर रहा था? लगता है बिहार का प्रशासनिक तंत्र आतंकवाद के प्रति गंभीर नहीं है।

गांधी मैदान विस्फोट की जांच एनआइए को देने का उसने विरोध किया था। विस्फोट के बाद मुख्यमंत्री ने कहा था कि खुफिया विभाग (आइबी) ने कोई इसकी पूर्व सूचना नहीं दी थी। मुख्यमंत्री के दावे को खारिज करते हुए आइबी ने यह कहा था कि राज्य सरकार को इसकी पूर्व में सूचना दी गई थी। फुलवारी शरीफ की घटना के बाद पटना के तत्कालीन एसएसपी मानवजीत सिंह ढिल्लो ने पीएफआइ की तुलना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से की थी। उनके इस बयान के आधार पर कह सकते हैं कि राज्य का पुलिस-प्रशासन आतंकवाद को गंभीरता से नहीं ले रहा। कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है, पर लोकतंत्र में राज्य की सत्ता का संचालन करने वाला ‘वोट बैंक चाहे जाति का हो या पंथ का’ के खिलाफ सख्त कदम उठाने से परहेज कर रहा है।

आज राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष इस्लामिक और वामपंथी चरमपंथ का खतरा गहराता जा रहा है। फुलवारी शरीफ में आतंकवादियों से प्राप्त दस्तावेज में वर्ष 2047 तो माओवादियों से प्राप्त दस्तावेज में वर्ष 2050 में भारत पर कब्जा करने के उनके मंसूबे का पर्दाफाश हुआ है। पीएफआइ पर प्रतिबंध के बाद उम्मीद थी कि बिहार सरकार व्यापक स्तर पर अभियान चलाएगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। पीएफआइ ने अपना मुख्यालय संवेदनशील पूर्णिया में खोल रखा था।

मुजफ्फरपुर से सटे मोतिहारी जिले में पीएफआइ के ट्रेनिग सेंटर संबंधी फोटो को मीडिया ने दिखाया भी था। इन जगहों पर बड़े पैमाने पर छापेमारी की आवश्यकता थी, पर नहीं की गई। जिस तरह सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया) पर प्रतिबंध के बाद आतंकवादियों ने एक नए नाम पीएफआइ के तहत अपने संगठन को जिंदा रखा, उसी प्रकार पीएफआइ पर प्रतिबंध के बाद वे किस बैनर से सक्रिय हैं-इसकी जांच-पड़ताल की आवश्यकता है। बारूद के ढेर पर बैठे बिहार को गंभीरता से लेना होगा।

(लेखक बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य हैं)