भूपिंदर सिंह मान का समिति से हटने का फैसला यही बता रहा कि वह उग्र माहौल का नहीं कर सकते सामना
दिल्ली में डेरा डाले किसान नेता किस तरह सुलह-समाधान के लिए तैयार नहीं इसका प्रमाण यह भी है कि वे सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई समिति में शामिल अन्य सदस्यों पर भी यह दबाव बना रहे हैं कि वे भी भूपिंदर सिंह मान की राह पर चलें।
कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित चार सदस्यीय समिति के एक सदस्य भूपिंदर सिंह मान जिस तरह यह कहते हुए इस समिति से हट गए कि वह देश के किसानों और पंजाब के हितों के साथ समझौता नहीं कर सकते, उससे यही साफ हुआ कि वह उस दबाव का सामना नहीं कर सके, जो उन पर बनाया जाने लगा था। न तो इसकी अनदेखी की जा सकती है कि सुप्रीम कोर्ट की समिति में उनके नाम की घोषणा होते ही उनके संगठन ने किस तरह उनसे संबंध तोड़ने और उनका बहिष्कार करने की घोषणा कर दी थी और न ही इसकी कि उन्होंने अपने कदम पीछे खींचने के कारण बयान करने वाली चिट्ठी में पंजाब का खास तौर पर उल्लेख किया।
उनका इस समिति से हटने का फैसला यही बता रहा है कि वह उस उग्र माहौल का सामना करने के लिए तैयार नहीं, जो पंजाब में कृषि कानूनों को लेकर बना दिया गया है। यह एक तथ्य है कि किसान आंदोलन मुख्यत: पंजाब के किसानों का आंदोलन बनकर रह गया है। इस आंदोलन में पंजाब के किसानों की अधिकता की एक बड़ी वजह खुद वहां की सरकार की ओर से उन्हें उकसाया जाना है।
यह किसी से छिपा नहीं कि किसानों को उकसाने और उन्हें गुमराह करने के लिए इस तरह का सुनियोजित दुष्प्रचार किया गया कि नए कृषि कानूनों से उनकी जमीन छिन जाएंगी। तमिलनाडु के दौरे पर गए राहुल गांधी ने इसी दुष्प्रचार को आगे बढ़ाते हुए यह कहा कि किसानों की उपेक्षा नहीं, बल्कि उन्हें खत्म करने की साजिश की जा रही है।
अच्छा हो कि वह बीते लोकसभा चुनाव के अवसर पर अपने उस घोषणा पत्र का स्मरण करते, जिसमें वैसे ही कानून बनाने का वादा किया गया था, जैसे मोदी सरकार ने बनाए हैं। क्या तब कांग्रेस किसानों को खत्म करने और उनकी जमीनें छीनने की साजिश रच रही थी?
दिल्ली में डेरा डाले किसान नेता किस तरह सुलह-समाधान के लिए तैयार नहीं, इसका प्रमाण यह भी है कि वे सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई समिति में शामिल अन्य सदस्यों पर भी यह दबाव बना रहे हैं कि वे भी भूपिंदर सिंह मान की राह पर चलें।
इसका सीधा मतलब है कि वे समाधान के बजाय टकराव की राह पर चलने को आमादा हैं। चूंकि किसान आंदोलन को पंजाब के किसानों और वह भी सिख किसानों के आंदोलन में तब्दील करने की कोशिश हो रही है इसलिए वहां के बुद्धिजीवियों और सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र की हस्तियों को दखल देना चाहिए। उन्हें आगे आकर कृषि कानूनों के खिलाफ किसान नेताओं के संकीर्ण इरादों का पर्दाफाश करते हुए किसानों को वस्तुस्थिति से अवगत कराना चाहिए।