झूठ की पोल खुली, नागरिकता संशोधन कानून का विरोध अनैतिक
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर लोगों को किस तरह बरगलाया गया इसका एक प्रमाण यह है कि दो माह पहले जब इस कानून के नियम अधिसूचित किए गए तो कहीं कोई विरोध देखने को नहीं मिला। विरोध के नाम पर केवल कुछ बयान जारी किए गए और वह भी मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाले विरोधी दलों के नेताओं की ओर से।
नागरिकता संशोधन कानून के नियमों को अधिसूचित करने के दो माह के अंदर तीन सौ से अधिक लोगों को नागरिकता प्रदान करने के अगले ही दिन प्रधानमंत्री मोदी ने आजमगढ़ में एक सभा को संबोधित करते हुए यह बिल्कुल सही कहा कि इस कानून को लेकर झूठ का पहाड़ खड़ा किया गया और दंगे भी कराए गए। चूंकि झूठ का पहाड़ खड़ा करने का काम विपक्षी दलों की ओर से किया गया, इसलिए वे इस आरोप से बच नहीं सकते कि उन्होंने लोगों को गुमराह कर सड़कों पर उतारा। इन्हीं लोगों ने हिंसा और उपद्रव का सहारा लिया।
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जो हिंसक प्रदर्शन हुए, उनमें सरकारी एवं गैर-सरकारी संपत्ति को तो नुकसान पहुंचाया ही गया, जान माल की क्षति भी हुई। इन हिंसक प्रदर्शनों के कारण लाखों लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। दुर्भाग्य से दिल्ली के लोगों को कुछ ज्यादा ही, क्योंकि यहां पर शाहीन बाग इलाके में एक व्यस्त सड़क को अवरुद्ध कर महीनों तक यातायात बाधित रखा गया। इसी अराजक धरने के कारण दिल्ली को भीषण दंगों का सामना करना पड़ा, जिनमें 50 से अधिक लोग मारे गए। इससे देश की बदनामी भी हुई, क्योंकि इन दंगों के समय तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति भारत में थे।
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर लोगों को किस तरह बरगलाया गया, इसका एक प्रमाण यह है कि दो माह पहले जब इस कानून के नियम अधिसूचित किए गए तो कहीं कोई विरोध देखने को नहीं मिला। विरोध के नाम पर केवल कुछ बयान जारी किए गए और वह भी मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाले विरोधी दलों के नेताओं की ओर से।
स्पष्ट है कि लोग समझ चुके हैं कि इस कानून के विरोध में सचमुच झूठ का पहाड़ खड़ा किया गया था और यह कोरी अफवाह थी कि इस कानून से भारत के मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी। यह कानून तो तीन पड़ोसी देशों-अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में प्रताड़ित किए गए वहां के उन अल्पसंख्यकों के लिए है, जो किसी तरह अपनी जान बचाकर भारत आ गए। बुधवार को ऐसे ही कुछ लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई। इन दीन-हीन लोगों को नागरिकता देने का विरोध क्यों? आखिर इन प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देना गलत कैसे है?
यह तो भारत का नैतिक दायित्व है और एक तरह से विभाजन के समय की भूल को सुधारने की कोशिश भी। यह शर्मनाक है कि कुछ दल और विशेष रूप से तृणमूल कांग्रेस एवं वामपंथी दल अभी भी नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने में लगे हुए हैं। उनके दबाव में आकर कांग्रेस भी यह कहने लगी है कि सत्ता में आते ही वह सबसे पहला काम इस कानून को खत्म करने का करेगी। आखिर कांग्रेस या फिर अन्य दल यह अमानवीय-अनैतिक काम करने का वादा क्यों करने में लगे हुए हैं?