घिसी-पिटी बातें, रायपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने फिर अलापा वही पुराना राग
समस्या यह नहीं कि सोनिया गांधी इतने महत्वपूर्ण अवसर पर कोई नई बात नहीं कह सकीं समस्या यह भी है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी उन्हीं की तरह वही पुराने बातें कहीं जो वह पहले भी कहते चले आ रहे हैं।
कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन में सोनिया गांधी ने मोदी सरकार की आलोचना करते हुए जो कुछ कहा, वह सब वही है, जो वह पहले न जाने कितनी बार कह चुकी हैं। उन्होंने अपना यह पुराना आरोप तो दोहराया ही कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश की हर संस्था पर कब्जा कर उसे बर्बाद कर दिया है, यह भी फिर से रेखांकित किया कि विपक्ष की आवाज को दबाया जा रहा है। उनका यह आरोप भी नया नहीं कि अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों एवं महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है। सोनिया गांधी के कथन से यदि कुछ स्पष्ट हुआ तो यही कि उनके पास कोई नया विचार नहीं।
समस्या यह नहीं कि सोनिया गांधी इतने महत्वपूर्ण अवसर पर कोई नई बात नहीं कह सकीं, समस्या यह भी है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी उन्हीं की तरह वही पुराने बातें कहीं, जो वह पहले भी कहते चले आ रहे हैं। उन्होंने मोदी सरकार पर देश को तोड़ने की साजिश रचने का आरोप लगाया और यह दावा किया कि इस सरकार में बैठे लोगों का डीएनए ही गरीब विरोधी है।
उनकी मानें तो देश के लोकतंत्र को तोड़ने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। उन्होंने इसके विरुद्ध आंदोलन करने की भी आवश्यकता जताई। यह किसी से छिपा नहीं कि राहुल गांधी भी इसी तरह के भाषण देते रहते हैं। अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उन्होंने शायद ही कोई नई बात कही हो। कुल मिलाकर कांग्रेस के शीर्ष नेता इसी पर जोर देते रहते हैं कि मोदी सरकार के कारण देश गड्ढे में जा रहा है। इस तरह के स्वर पिछले आठ वर्षों से सुनाई दे रहे हैं और यह किसी से छिपा नहीं कि इस अवधि में कांग्रेस राजनीतिक रूप से कमजोर ही हुई है।
उचित होगा कि कांग्रेस नेतृत्व यह समझे कि वह घिसे-पिटे आरोपों से न तो देश की जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकता है और न ही अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार कर सकता है। चूंकि कांग्रेस नेतृत्व के पास कोई नया विचार नहीं, इसलिए वह ऐसा कोई एजेंडा भी पेश नहीं कर पा रहा है, जिसे वैकल्पिक एजेंडे की संज्ञा दी जा सके। एक समस्या यह भी है कि कांग्रेस वैचारिक रूप से वामपंथी सोच से ग्रस्त होती जा रही है। वह उद्यमियों को भला-बुरा कहकर केवल उन्हें ही निशाने पर नहीं रखती, बल्कि उद्यमशीलता पर भी आघात करती है।
जिस कांग्रेस के समय देश आर्थिक उदारीकरण की ओर बढ़ा, उसी के नेता आज इस पर बल देते दिखते हैं कि सब कुछ सरकार को ही करना चाहिए। शायद इसी कारण वे निजीकरण के विरोधी बन बैठे हैं। यदि कांग्रेस अपना भला चाहती है तो उसे अपनी इस मानसिकता का भी परित्याग करना होगा कि देश की जनता ने भाजपा को केंद्र की सत्ता सौंपकर कोई गलती कर दी है।