अलगाववाद को हवा, डीके सुरेश के बयान बरपा हंगामा
डीके सुरेश कुमार ने अंतरिम बजट में केवल दक्षिण की उपेक्षा का थोथा आरोप ही नहीं लगाया बल्कि इस पर भी आपत्ति जताई कि कुछ योजनाओं के नाम संस्कृत और हिंदी में रखे जा रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि कर्नाटक और तमिलनाडु के नेताओं की ओर से किस तरह रह-रह कर यह शिगूफा छेड़ा जाता है कि दक्षिण की भाषाओं पर हिंदी थोपी जा रही है।
इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि जब राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण में हैं, तब कर्नाटक से उनके सांसद डीके सुरेश कुमार यह कह रहे हैं कि ऐसी स्थितियां बनती जा रही हैं कि दक्षिण को अलग देश बनाने की मांग करनी पड़ सकती है। वह अंतरिम बजट को लेकर यह निष्कर्ष निकाल रहे थे कि दक्षिणी राज्यों के हिस्से का पैसा उत्तर भारत में बांटा जा रहा है।
डीके सुरेश केवल कांग्रेस के सांसद भर नहीं हैं। वह कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के भाई भी हैं। उन्हें तो और संभलकर बोलना चाहिए था, लेकिन उन्होंने अंतरिम बजट की आड़ में अलगाववाद को हवा देना आवश्यक समझा। इससे भी दयनीय यह रहा कि डीके शिवकुमार ने उनके इस विभाजनकारी बयान पर लीपापोती करने की कोशिश की।
यह अच्छा हुआ कि संसद में डीके सुरेश के बयान को लेकर हंगामा होने पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि यदि कोई देश तोड़ने की बात करेगा तो हम इसे सहन नहीं करेंगे, चाहे वह किसी भी पार्टी का हो, लेकिन उन्हें यह ध्यान रहे कि ऐसी बात करने वाले उनके अपने सांसद हैं। उन्हें इस पर भी गौर करना होगा कि आखिर कांग्रेस नेताओं की ओर से विभाजनकारी बयान देने का सिलसिला क्यों कायम है?
कुछ समय पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस के कुछ नेताओं ने उत्तर और दक्षिण के बीच विभाजन पैदा करने की कोशिश की थी। यह कोशिश इसलिए की गई थी, क्योंकि कांग्रेस को तेलंगाना में जीत हासिल हुई थी और मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ के साथ मिजोरम में पराजय का सामना करना पड़ा था।
डीके सुरेश कुमार ने अंतरिम बजट में केवल दक्षिण की उपेक्षा का थोथा आरोप ही नहीं लगाया, बल्कि इस पर भी आपत्ति जताई कि कुछ योजनाओं के नाम संस्कृत और हिंदी में रखे जा रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि कर्नाटक और तमिलनाडु के नेताओं की ओर से किस तरह रह-रह कर यह शिगूफा छेड़ा जाता है कि दक्षिण की भाषाओं पर हिंदी थोपी जा रही है। यह शिगूफा छोड़ने में तमिलनाडु के नेता कुछ ज्यादा ही आगे हैं।
अंतरिम बजट पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की इस बेतुकी प्रतिक्रिया की भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि वित्त मंत्री ने उनके राज्य की योजनाबद्ध तरीके से उपेक्षा की है। क्या यह हास्यास्पद नहीं कि एक ओर तो यह कहा जा रहा कि अंतरिम बजट में कुछ है ही नहीं और दूसरी ओर राज्य विशेष की अनदेखी का आरोप भी उछाला जा रहा है? आखिर केंद्रीय अंतरिम बजट देश का होता है या फिर किसी राज्य या क्षेत्र विशेष का? यह समझना भी कठिन है कि डीके सुरेश और एमके स्टालिन जैसे नेता इस शरारत भरे नतीजे पर कैसे पहुंच जाते हैं कि केंद्र सरकार की योजनाएं केवल राज्य विशेष तक ही सीमित हैं?