G20 Logo: बिना बात का बतंगड़, कांग्रेस को भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक भी स्वीकार्य नहीं
यदि कांग्रेस को यह लगता है कि जी-20 सम्मेलन के लोगो में कमल को दर्शाए जाने से भाजपा को राजनीतिक लाभ मिलेगा तो उसे स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसा कैसे होगा? क्या जी-20 समूह के देशों की भारत में होने वाले चुनावों में कोई भूमिका रहने वाली है?
कांग्रेस ने जी-20 सम्मेलन के लोगो में कमल को चित्रित करने पर आपत्ति जताकर बैठे-ठाले अपनी फजीहत ही कराई। ऐसा लगता है कि उसे मोदी सरकार के हर काम और निर्णय का विरोध करने की आदत पड़ गई है। ऐसा तभी होता है, जब कोई अंधविरोध से ग्रस्त हो जाता है। भारतीय संस्कृति में कमल के पुष्प की महत्ता किसी से छिपी नहीं। यह शुभ, सौंदर्य, समृद्धि का प्रतीक तो है ही, अनेक देवी-देवताओं से भी संबंधित है। इसका उपयोग विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक अनुष्ठानों में शताब्दियों से किया जाता रहा है।
हमारे न जाने कितने प्राचीन भवनों और विशेष रूप से मंदिरों में कमल को उकेरा गया है। संभवत: इसी कारण 1857 में जन-जन तक स्वतंत्रता संग्राम का संदेश देने के लिए रोटी और कमल का वितरण किया जाता था। स्वतंत्रता के उपरांत भी विभिन्न संस्थाओं के प्रतीक चिह्नों, सरकारी आयोजनों के साथ डाक टिकटों में इसका उपयोग किया जाता रहा। आज भी कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के लोगो में कमल को शोभायमान देखा जा सकता है। वस्तुत: इसी कारण उसे राष्ट्रीय पुष्प की तरह देखा जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भारतीय संस्कृति में कमल की महत्ता से पूरी तरह अनजान है। यह एक विडंबना ही है कि भारत जोड़ो यात्रा पर निकली कांग्रेस भारतीय संस्कृति में कमल की महत्ता और उपयोगिता से अपरिचित दिख रही है।
समझना कठिन है कि उसे कमल के रूप में केवल भाजपा का चुनाव चिह्न ही क्यों दिखाई दिया? इससे भी विचित्र यह रहा कि किन्हीं कारणों से वह इस नतीजे पर भी पहुंच गई लगती है कि जी-20 सम्मेलन के लोगो में चित्रित कमल ठीक वैसा ही है, जैसा भाजपा का चुनाव चिन्ह। यदि कांग्रेस को यह लगता है कि जी-20 सम्मेलन के लोगो में कमल को दर्शाए जाने से भाजपा को राजनीतिक लाभ मिलेगा तो उसे स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसा कैसे होगा? क्या जी-20 समूह के देशों की भारत में होने वाले चुनावों में कोई भूमिका रहने वाली है? कोई भी समझ सकता है कि कांग्रेस ने बिना बात का बतंगड़ बनाकर अपनी जग हंसाई करा ली।
जाने-अनजाने उसने यह भी प्रतीति कराई कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति के जो भी प्रतीक हैं, वे उसे स्वीकार्य नहीं। यह तो वाम दलों वाला रवैया है। वास्तव में कमल पर आपत्ति खड़ी कर कांग्रेस ने एक बार फिर यह प्रकट किया कि वाम दलों की संगत में उसकी मानसिकता उनके जैसे ही होती जा रही है। क्या वह यह चाहती है कि कमल का अन्यत्र उपयोग इसलिए प्रतिबंधित कर दिया जाए, क्योंकि वह भाजपा का चुनाव चिह्न है? यदि कांग्रेस देश की संस्कृति के प्रतीकों के प्रति सम्मानभाव नहीं प्रकट कर सकती तो कम से कम उसे उनका विरोध भी नहीं करना चाहिए।