ब्रिटेन की यात्रा पर गए राहुल गांधी ने वहां अभी तक जैसे वक्तव्य दिए हैं, उससे यही प्रतीत होता है कि वह आगे भी भाजपा एवं मोदी सरकार पर निशाना साधते रहेंगे और इस क्रम में देश को नीचा दिखाने में भी संकोच नहीं करेंगे। यह समझ आता है कि वह मोदी सरकार पर निशाना साधें, लेकिन ऐसे बयान तो उनकी कुंठा को ही रेखांकित करते हैं कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो रहा है और मोदी सरकार के नेतृत्व में देश की पहचान को खत्म करने का काम किया जा रहा है।

इससे भी खराब बात यह है कि वह स्वयं को सही सिद्ध करने के लिए झूठ का सहारा ले रहे हैं। उनकी मानें तो उनके जैसे नेताओं को भारत में किसी विश्वविद्यालय और यहां तक कि संसद में भी बोलने की अनुमति नहीं है। यह निरा झूठ ही नहीं, देश को लांछित करने और जानबूझकर उसकी गलत तस्वीर पेश करने की कोशिश है। ऐसी कोशिश तो विदेश में बैठे भारत विरोधी तत्व करते हैं।

बीते दिनों जब ऐसी ही एक कोशिश जिनेवा मे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सामने भारत को बदनाम करने वाले पोस्टर लगाकर की गई तो भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्विट्जरलैंड के राजदूत को तलब कर अपनी आपत्ति दर्ज कराई। क्या इससे खराब बात और कोई हो सकती है कि राहुल गांधी के वक्तव्य विदेश में सक्रिय भारत विरोधी तत्वों की भाषा से मेल खाते दिखें?

निःसंदेह राहुल गांधी को इसका आभास नहीं होगा कि उनके बेतुके बयान उनकी रही-सही प्रतिष्ठा को खत्म करने का काम कर रहे हैं, लेकिन उनके उन सलाहकारों को तो होना ही चाहिए, जिन्हें उनके भाषणों पर लीपापोती करनी पड़ती है या फिर उसे अपने ढंग से परिभाषित करना पड़ता है। यदि राहुल गांधी ने अपना रवैया नहीं सुधारा तो उन्हें कोई भी गंभीरता से नहीं लेगा-न तो देश में और न ही विदेश में। यह केवल आश्चर्यजनक ही नहीं, बल्कि आपत्तिजनक भी है कि वह कभी चीन की प्रशंसा करते हैं तो कभी इस पर अफसोस प्रकट करते हैं कि अमेरिका और यूरोप भारत में हस्तक्षेप क्यों नहीं कर रहे हैं।

पता नहीं वह इस नतीजे पर कैसे पहुंच गए कि मोदी सरकार की विदेश नीति बिल्कुल बेकार है, क्योंकि इस नीति की प्रशंसा तो पूरा विश्व कर रहा है। राहुल गांधी के बयान यही बताते हैं कि वह उस युवराज सरीखा व्यवहार कर रहे हैं, जो यह मान बैठा है कि छल-बल से उसका राजपाट छीन लिया गया है। उनके बयान इस धारणा को ध्वस्त करने का भी काम कर रहे हैं कि भारत जोड़ो यात्रा ने उनके चिंतन को प्रभावित किया है। अब तो ऐसा लग रहा है कि उन्होंने इस यात्रा के जरिये अपनी जैसी छवि बनाई थी, उसे अपने ही हाथों नष्ट करने पर तुल गए हैं।