दिल्ली में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने देश की पहली ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाली बस को हरी झंडी दिखाकर भारत की उस प्रतिबद्धता को ही प्रकट किया, जिसके तहत वह ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों पर निर्भरता कम करने के प्रयास कर रहा है। इन प्रयासों को वांछित सफलता तभी मिलेगी, जब स्वच्छ ईंधन के अधिक से अधिक विकल्पों का उपयोग बढ़ाया जाएगा। ऐसे विकल्पों में एक ग्रीन हाइड्रोजन भी है।

चूंकि यह विकल्प प्रदूषण कम करने में भी सहायक है, इसलिए दिल्ली-एनसीआर में ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाली कुछ और बसें चलाने की योजना है। वास्तव में ऐसी बसें दिल्ली-एनसीआर में ही नहीं, देश के अन्य महानगरों में भी चलाई जानी चाहिए। इसी के साथ इसके भी प्रयत्न किए जाने चाहिए कि बसों के साथ अन्य वाहन और विशेष रूप से कारें भी ग्रीन हाइड्रोजन से चल सकें।

यह ठीक है कि कुछ समय पहले एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाली कार को लांच किया गया था, लेकिन अभी बड़े पैमाने पर उनका उपयोग शुरू नहीं हो पाया है। भारत को ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों को प्रोत्साहन देने के साथ ही स्वच्छ उर्जा के अन्य विकल्पों पर भी प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना होगा, क्योंकि अभी पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भरता बहुत अधिक है। इसका एक कारण यह भी है कि भारत ने घरेलू स्तर पर पेट्रोलियम पदार्थों के दोहन के जो लक्ष्य तय कर रखे हैं, वे पूरे नहीं हो रहे हैं।

चूंकि पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहन प्रदूषण का एक बड़ा जरिया हैं, इसलिए उनका उपयोग कम से कम करने के लिए हरसंभव जतन किए जाने चाहिए। इसलिए और भी किए जाने चाहिए, क्योंकि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक और उपभोक्ता है। हम अपनी आवश्यकता का लगभग 85 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करते हैं। इसके चलते भारी-भरकम विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है।

पेट्रोल की खपत कम करने के लिए उसमें एथनाल मिलाकर उसका उपयोग करने की जो कोशिश हो रही है, उसे बल देने की आवश्यकता है। वर्तमान में पेट्रोल में 10 प्रतिशत एथनाल मिलाया जा रहा है। सरकार ने तय किया है कि 2025 तक 20 प्रतिशत एथनाल मिलाकर पेट्रोल का उपयोग किया जाएगा। इस लक्ष्य को हर हाल में प्राप्त करने के प्रयत्न होने चाहिए। इसमें संदेह नहीं कि भारत स्वच्छ ऊर्जा के विकल्पों को अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन अभी इस दिशा में बहुत काम किया जाना शेष है।

भारत ने 2030 तक पवन और सौर ऊर्जा क्षमता में 420 गीगावाट की वृद्धि करने का जो लक्ष्य रखा है, उसे भी हासिल करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यदि भारत इस लक्ष्य को पाने में सफल रहता है तो न केवल पेट्रोलियम पदार्थों के साथ कोयले पर निर्भरता कम होगी, बल्कि विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी। इसके अतिरिक्त पर्यावरण की भी रक्षा होगी।