राज्य के सरकारी कार्यालयों में वर्क कल्चर में कोई सुधार न होने से लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। लोग जब भी कार्यालयों में अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते हैं तो कर्मचारी गैरहाजिर मिलते हैं। यह सही है कि शिकायत आने पर ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी हो रही है, मगर विडंबना यह है कि इसके दूरगामी परिणाम देखने को नहीं मिल रहे हैं। विगत दिवस भी रामबन जिला उपायुक्त ने जब कार्यालयों में छापे मारे तो ग्यारह कर्मचारी गैरहाजिर मिले। यही स्थिति किश्तवाड़ जिले की भी थी, जहां एसडीएम के औचक निरीक्षण में कई कर्मचारी बिना किसी को जानकारी दिए ही कार्यालयों से गायब थे। ऐसा पहली बार नहीं है जब सरकारी कार्यालयों से कर्मचारी गैरहाजिर मिले हों। कुछ महीने पूर्व ही अखनूर कस्बे में कार्यालयों और स्कूलों में कई अधिकारी दफ्तरों से गैर हाजिर मिले थे। शायद ही कोई ऐसा जिला होगा जहां पर सरकारी दफ्तरों में गैर हाजिर रहना एक मजाक न हो। ड्यूटी के प्रति कर्मचारियों का यह रवैया निस्संदेह कामकाज पर असर डालता है। विशेषकर शिक्षकों की गैरहाजिरी से स्कूलों के परिणामों पर भी असर पड़ता है। यह सही है कि अधिकारी एक दिन छापे मार कर ऐसे कर्मचारियों को निलंबित कर देते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, लेकिन इसका वर्क कल्चर पर कोई भी असर नहीं पड़ा। इस समय राज्यपाल शासन में कर्मचारियों की हाजिरी को सुनिश्चित बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, जिनमें बायो मीट्रिक हाजिरी प्रमुख है। मगर कर्मचारियों को खुद सोचना चाहिए कि आठ घंटों की ड्यूटी का निर्वाह करके वे समाज में अपना अहम योगदान दे सकते हैं। इसके लिए उन्हें सरकार की ओर से वेतन भी दिया जाता है। ड्यूटी में लापरवाही बरतने से न सिर्फ लोग परेशान हो रहे हैं बल्कि यह भी भ्रष्टाचार का एक हिस्सा है। इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि वह बार-बार गैरहाजिर पाए जाने वाले कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे ताकि सभी में यह संदेश जाए कि सरकार वर्क कल्चर में सुधार लाने के लिए गंभीर है।

[स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर]