जागरण संपादकीय: सशक्त भारत का निर्माण, विकसित राष्ट्र बनने का सपना जल्द होगा साकार
अपनी तमाम विविधता और बहुलता के बाद भी हमारे समाज की एकजुटता देश की एक बड़ी शक्ति रही है। एकजुट समाज वह सब कुछ कहीं अधिक आसानी से हासिल कर सकता है जो उसके सुनहरे भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक है। जैसे हमारे पूर्वजों ने स्वतंत्रता की लड़ाई मिलकर लड़ी थी वैसे ही हमें सशक्त और समरस भारत के निर्माण का लक्ष्य भी मिलकर साधना चाहिए।
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ने सामाजिक स्तर पर कलह की प्रवृत्तियों को खारिज करने की आवश्यकता पर जो बल दिया, उस पर प्रत्येक नागरिक को ध्यान देना चाहिए। निःसंदेह सबसे अधिक ध्यान राजनीतिक-सामाजिक स्तर पर लोगों का नेतृत्व करने वालों को देना चाहिए।
स्पष्ट है कि नेताओं का दायित्व कहीं अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि वे ही समाज को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। हमारे सामाजिक जीवन के हर पहलू में समावेशी भावना तभी दिखाई देगी, जब राजनीतिक वर्ग इस भावना को बल देने के लिए तत्पर रहेगा।
अभी ऐसा नहीं है। आज जब हम अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, तब हर किसी को इसके प्रति सजग रहना होगा कि उसके कार्य-व्यवहार से सामाजिक एकता को कहीं कोई क्षति न पहुंचे। इसके प्रति सजग रहकर ही हम सभी को साथ लेकर प्रगति पथ पर आगे बढ़ सकेंगे और वह सब कुछ अर्जित कर सकेंगे, जो संभव नजर आ रहा है, जो हमारे लिए अभीष्ट है और जिसके जरिये देश को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सकता है।
भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का जो स्वप्न देखा जा रहा है, उसमें सभी की हिस्सेदारी आवश्यक है, क्योंकि इससे ही भारत एक सक्षम राष्ट्र के रूप में उभर सकेगा। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम सभी अपने मतभेदों के बीच सद्भाव बनाए रखने की महत्ता को समझें। यह सद्भाव ही सामाजिक एकता को सुदृढ़ करने का कार्य करता है।
आज सामाजिक एकता पर बल देने की आवश्यकता इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि देश को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चुनौतियां आंतरिक मोर्चे पर भी हैं और बाहरी मोर्चे पर भी। हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि आज विश्व में किस तरह उथल-पुथल हो रही है। चूंकि उथल-पुथल हमारे पड़ोस में भी हो रही है, इसलिए हमें कहीं अधिक सचेत रहना चाहिए।
पड़ोसी देश बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, उससे हमें केवल चिंतित ही नहीं, बल्कि सजग भी रहना चाहिए। संभवतः बांग्लादेश के अस्थिरता और अराजकता से घिरने के कारण ही राष्ट्रपति ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर विभाजन की विभीषिका की ओर भी देश का ध्यान आकर्षित किया। हम सबको यह सदैव स्मरण रहे कि हमारे पूर्वजों ने जो स्वतंत्रता हासिल की, उसकी देश को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी।
यह कीमत इसीलिए चुकानी पड़ी थी, क्योंकि तब हम सामाजिक रूप से एकजुट नहीं रह सके थे। अपनी तमाम विविधता और बहुलता के बाद भी हमारे समाज की एकजुटता देश की एक बड़ी शक्ति रही है। एकजुट समाज वह सब कुछ कहीं अधिक आसानी से हासिल कर सकता है, जो उसके सुनहरे भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक है। जैसे हमारे पूर्वजों ने स्वतंत्रता की लड़ाई मिलकर लड़ी थी, वैसे ही हमें सशक्त और समरस भारत के निर्माण का लक्ष्य भी मिलकर साधना चाहिए।