सुधरती आंतरिक सुरक्षा, विघटनकारी एजेंडे पर चल रहे समूहों को नियंत्रित करने की चुनौती
सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों के समक्ष उन समूहों पर भी नियंत्रण पाने की चुनौती है जो पीएफआइ की तरह से विघटनकारी एजेंडे पर चल रहे हैं और अतिवाद को हवा दे रहे हैं। इनमें से कुछ समूहों के तार दूसरे देशों के आतंकी संगठनों से भी जुड़े हुए हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हैदराबाद में भारतीय पुलिस सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित करते हुए यह सही कहा कि उनकी सरकार ने आतंकवाद के विरुद्ध जो कठोर नीति अपना रखी है, उसके कारण ही उस पर लगाम लगी है। निःसंदेह यह भी कहा जा सकता है कि आतंकवाद के साथ नक्सलवाद और पूर्वोत्तर का उग्रवाद भी एक बड़ी हद तक नियंत्रित हुआ है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौतियां अभी भी कायम हैं। यह चुनौती अतिवादी संगठन पापुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी पीएफआइ पर पाबंदी लगाने और उसके सदस्यों की धरपकड़ के बाद भी कायम है। पीएफआइ के ऐसे सदस्यों की गिरफ्तारी होती ही रहती है, जो आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं।
इस संगठन के इरादे कितने खतरनाक हैं, इसका पता इससे चलता है कि उसने 2047 तक भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने का न केवल षड्यंत्र रच रखा था, बल्कि उस पर काम भी कर रहा था। यह नहीं कहा जा सकता कि पीएफआइ पर पाबंदी लगने के साथ ही उसके सभी सदस्य निष्क्रिय होकर बैठ गए होंगे। वे नहीं बैठे, इसका पता हाल में राष्ट्रीय जांच एजेंसी की ओर से मध्य प्रदेश और बिहार के अतिरिक्त दूसरे राज्यों से पीएफआइ सदस्यों की गिरफ्तारियों से चलता है। इन गिरफ्तारियों से यही स्पष्ट होता है कि इस प्रतिबंधित संगठन के सदस्य अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। इसकी आशंका है कि वे नए सिरे से एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं। वे ऐसा न करने पाएं, इसके लिए एनआइए समेत अन्य एजेंसियों को सचेत रहना होगा।
सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों के समक्ष उन समूहों पर भी नियंत्रण पाने की चुनौती है, जो पीएफआइ की तरह से विघटनकारी एजेंडे पर चल रहे हैं और अतिवाद को हवा दे रहे हैं। इनमें से कुछ समूहों के तार दूसरे देशों के आतंकी संगठनों से भी जुड़े हुए हैं। इन समूहों की सक्रियता का कारण यह है कि युवाओं को बरगलाकर अतिवाद के रास्ते पर ले जाने वालों को नियंत्रित नहीं किया जा सका है। इसी कारण रह-रहकर ऐसे युवा पकड़े जाते रहते हैं, जो अलकायदा अथवा इस्लामिक स्टेट से जुड़ने या फिर उनके लिए काम करने को तत्पर रहते हैं।
स्पष्ट है कि आतंकी तत्वों के साथ उन्हें अतिवाद का पाठ पढ़ाने वालों की निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता है। ऐसी ही आवश्यकता नक्सली और अलगाववादी संगठनों के मामले में भी है। निश्चित रूप से ऐसे संगठनों की ताकत कम हुई है, लेकिन वे यदा-कदा सिर उठाते रहते हैं। यह सही समय है कि इन संगठनों को पूरी तरह निष्क्रिय-नाकाम करने के लिए कोई रणनीति बनाई जाए। इसमें सफलता तब मिलेगी, जब राज्य सरकारें केंद्रीय एजेंसियों और विशेष रूप से राष्ट्रीय जांच एजेंसी का सहयोग करने के मामले में तत्परता दिखाएंगी।