साइबर संकट, माइक्रोसाफ्ट आउटेज से सबक सीखने की जरूरत
माइक्रोसाफ्ट के सर्वर में तकनीकी गड़बड़ी से भारत समेत दुनिया के कई देशों में हवाई यातायात बाधित हुआ बैंकों का कामकाज थमा टीवी चैनलों का प्रसारण रुका सरकारी एवं गैर सरकारी कंपनियों के काम में खलल पड़ा और अमेरिका में तो आपातकालीन सेवाएं भी ठप पड़ गईं। यह एक विडंबना ही है कि माइक्रोसाफ्ट के सर्वर में खराबी तब आई जब साइबर सुरक्षा के उपाय किए जा रहे थे।
माइक्रोसाफ्ट के सर्वर में खराबी से दुनिया भर में जो संकट पैदा हुआ, उससे सबक सीखने की आवश्यकता है। जब एक साफ्टवेयर कंपनी के सर्वर में खराबी से इतनी अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा तो इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है कि अन्य कंपनियों में एक साथ कोई खराबी आने या उनके साइबर हमले का शिकार होने पर कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है। माइक्रोसाफ्ट के सर्वर में तकनीकी गड़बड़ी से भारत समेत दुनिया के कई देशों में हवाई यातायात बाधित हुआ, बैंकों का कामकाज थमा, टीवी चैनलों का प्रसारण रुका, सरकारी एवं गैर सरकारी कंपनियों के काम में खलल पड़ा और अमेरिका में तो आपातकालीन सेवाएं भी ठप पड़ गईं।
फिलहाल इसका अनुमान लगाना कठिन है कि माइक्रोसाफ्ट के सर्वर में खराबी आने से दुनिया को कितना अधिक नुकसान उठाने के साथ कितने लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा, लेकिन यह ठीक नहीं कि तकनीक पर निर्भरता ऐसी विश्वव्यापी समस्या खड़ा कर दे। यह एक विडंबना ही है कि माइक्रोसाफ्ट के सर्वर में खराबी तब आई, जब साइबर सुरक्षा के उपाय किए जा रहे थे। इन उपायों ने ही साइबर सुरक्षा को संकट में डालने का काम किया। माइक्रोसाफ्ट ने कहा है कि खामी का पता लगा लिया गया है और शीघ्र ही समस्या का समाधान हो जाएगा, लेकिन माना जा रहा है कि स्थितियां सामान्य होने में दो-तीन दिन का समय लग सकता है।
निश्चित रूप से आज के युग में तकनीक के बगैर किसी का काम चलने वाला नहीं है। जीवन के हर क्षेत्र में तकनीक का प्रवेश हो चुका है, लेकिन समस्या यह है कि इस तकनीक पर कुछ बड़ी टेक कंपनियों का वर्चस्व है। इस वर्चस्व का लाभ उठाकर ये कंपनियां कई बार मनमानी करती हैं। कभी-कभी तो वे अपनी सेवाएं लेने वालों पर मनचाही शर्तें थोपती हैं। इससे भी खराब बात यह है कि वे अलग-अलग देशों के लिए अलग-अलग नियम बनाती हैं। निजी टेक कंपनियों के वर्चस्व और उनकी मनमानी का मुकाबला करने के लिए विभिन्न देशों की सरकारों को एकजुट होना होगा। पता नहीं दुनिया के प्रमुख देश टेक कंपनियों के एकाधिकार का सामना करने और उनकी मनमानी पर लगाम लगाने के लिए एकजुट हो पाएंगे या नहीं, लेकिन कम से कम भारत को तो इस दिशा में कदम उठाने ही चाहिए।
ऐसा इसलिए और भी आवश्यक है, क्योंकि यह देखने में आ चुका है कि इन कंपनियों ने भारत सरकार की ओर से बनाए गए नियम-कानूनों का पालन करने से इन्कार कर दिया। इस मामले में सोशल नेटवर्क साइट्स चलाने वाली कंपनियों का रिकार्ड तो बहुत ही खराब है। यह सही समय है कि तकनीकी क्षेत्र के भारतीय कारोबारी अमेरिका आधारित बड़ी टेक कंपनियों के एकाधिकार का सामना करने के लिए आगे आएं-ठीक वैसे ही, जैसे हाल में ओला कैब्स के भाविश अग्रवाल गूगल मैप्स के खिलाफ आए।