एयरो इंडिया का संदेश, अन्य क्षेत्रों की तरह रक्षा क्षेत्र में भी निजी कंपनियों की भागीदारी आवश्यक
भारत को उन्नत रक्षा सामग्री के निर्माण के लिए और अधिक ऊंचे लक्ष्य रखने चाहिए ताकि उसका निर्यात करके अधिकाधिक विदेशी मुद्रा का अर्जन किया जा सके। इसी के साथ भारत की कोशिश यह भी होनी चाहिए कि आयातित युद्धक सामग्री पर निर्भरता कम से कम हो सके।
युद्धक विमानों, रक्षा उपकरणों एवं तकनीक को प्रदर्शित करने वाली एशिया की सबसे बड़ी रक्षा प्रदर्शनी-एयरो इंडिया के उद्घाटन ने एक बार फिर यह इंगित किया कि भारत रक्षा क्षेत्र में भी एक बड़ी ताकत बन रहा है। इस आयोजन की महत्ता इससे समझी जा सकती है कि इसमें करीब सौ देशों की आठ सौ से अधिक कंपनियां भाग ले रही हैं। इनमें कई प्रमुख देशों की नामी कंपनियां हैं। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि रक्षा क्षेत्र की भारतीय कंपनियां इनसे होड़ ले रही हैं। यह होड़ भारत के बढ़ते सामर्थ्य को ही रेखांकित करती है।
इसकी पुष्टि एयरो शो का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री की ओर से दिए गए इस वक्तव्य से भी होती है कि भारत अगले कुछ वर्षों में अपने सैन्य साजो-सामान का निर्यात 1.5 अरब अमेरिकी डालर से बढ़ाकर पांच अरब अमेरिकी डालर करने की तैयारी कर रहा है। इस समय भारत लगभग 75 देशों को अपनी रक्षा सामग्री का निर्यात कर रहा है। उल्लेखनीय यह है कि भारत में निर्मित लड़ाकू विमानों, मिसाइलों और अन्य रक्षा उपकरणों एवं तकनीक की मांग तेजी से बढ़ रही है। यह रक्षा सामग्री के निर्माण में निजी कंपनियों की भागीदारी के चलते ही संभव हो सका है। अच्छा हो कि यह समझा जाए कि अन्य क्षेत्रों की तरह रक्षा क्षेत्र में भी निजी कंपनियों की भागीदारी कितनी आवश्यक है।
भारत को उन्नत रक्षा सामग्री के निर्माण के लिए और अधिक ऊंचे लक्ष्य रखने चाहिए, ताकि उसका निर्यात करके अधिकाधिक विदेशी मुद्रा का अर्जन किया जा सके। इसी के साथ भारत की कोशिश यह भी होनी चाहिए कि आयातित युद्धक सामग्री पर निर्भरता कम से कम हो सके। एक वास्तविक महाशक्ति बनने के लिए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि भारत अपनी जरूरत की अधिकाधिक युद्धक सामग्री स्वयं निर्मित करे।
भारत को एक साथ दो मोर्चों पर काम करने की आवश्यकता है। एक तो परंपरागत हथियारों के निर्माण में उसे और अधिक सक्षम होना होगा और दूसरे, आधुनिक तकनीक से लैस युद्धक सामग्री तैयार करने में भी महारत हासिल करनी होगी। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि भविष्य के युद्ध परंपरागत हथियारों से कम, आधुनिक तकनीक आधारित उपकरणों से अधिक लड़े जाएंगे। रूस-यूक्रेन युद्ध ने यदि कुछ स्पष्ट किया है तो यही कि आने वाले समय में उन्हीं देशों की सैन्य शक्ति श्रेष्ठ मानी जाएगी, जो आधुनिक तकनीक और विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित रक्षा उपकरणों से लैस होंगे।
भारत के पास कुछ ऐसे भी आधुनिक उपकरण होने चाहिए, जैसे किसी और के पास न हों। स्पष्ट है कि रक्षा उपकरण और तकनीक विकसित कर रहीं भारतीय कंपनियों को शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में विशेष काम करना होगा। जैसी उन्नत युद्धक सामग्री अमेरिका एवं इजरायल की रक्षा कंपनियां बना रही हैं, वैसी ही भारतीय कंपनियों को भी बनानी होगी और उनकी गुणवत्ता के मामले में उदाहरण पेश करना होगा।