लोक सेवा दिवस पर लोक सेवकों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने यह जो कहा कि यदि उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन सही तरह नहीं किया तो न केवल देश का धन लुट जाएगा, बल्कि करदाताओं के पैसे भी बर्बाद हो जाएंगे, वह एक यथार्थ है। समस्याओं के समाधान और विकास योजनाओं को गति देने में जितनी महती भूमिका लोक सेवकों की है, उतनी अन्य किसी की नहीं। सरकारें कितनी भी अच्छी योजनाएं बना लें, उनका सही तरह क्रियान्वयन तब तक संभव नहीं, जब तक लोक सेवक उन्हें जमीन पर उतारने के लिए तत्पर नहीं होते।

लोक सेवकों से केवल यही अपेक्षित नहीं होता कि वे सरकारी योजनाओं पर सही तरह अमल करें। उनसे यह भी अपेक्षित होता है कि वे जनता की समस्याओं के समाधान को लेकर सचेत रहें। उनका एक अन्य दायित्व यह भी होता है कि वे सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाएं। भ्रष्टाचार को तभी बल मिलता है, जब लोक सेवक या तो उसकी अनदेखी करते हैं या फिर अपने अधिकारों का मनमाना इस्तेमाल करते हुए उसमें शामिल हो जाते हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि भ्रष्टाचार के अनेक मामलों में नेताओं और नौकरशाहों की मिलीभगत होती है। यदि नौकरशाह चाह लें तो वे न केवल हर तरह के भ्रष्टाचार पर लगाम लगा सकते हैं, बल्कि उन भ्रष्ट नेताओं के इरादों पर पानी भी फेर सकते हैं, जो अपनी जेबें भरने की कोशिश में रहते हैं।

यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री ने लोक सेवकों को उनके दायित्वों की याद दिलाते हुए यह रेखांकित किया कि उनकी सक्रिय भागीदारी के बिना देश का तेज गति से विकास संभव नहीं, लेकिन उन्हें यह भी देखना होगा कि उन लोक सेवकों को सही राह पर कैसे लाया जाए, जो अपना काम ढंग से नहीं करते अथवा जो भ्रष्ट नेताओं से हाथ मिला लेते हैं। इसके लिए प्रशासनिक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ना होगा।

एक ओर जहां ऐसा वातावरण बनाने की आवश्यकता है कि लोक सेवक बिना किसी भय-संकोच अपना काम कर सकें, वहीं दूसरी ओर उनके कार्यों की सतत निगरानी भी सुनिश्चित करनी होगी। निःसंदेह सरकारें सब कुछ नहीं कर सकती, लेकिन ऐसा माहौल तो बना ही सकती हैं कि जो भी कार्य होने हैं, वे सरलता से हों। इस लक्ष्य की प्राप्ति लोक सेवकों की सजगता से ही संभव है। सरकारी तंत्र के कामकाज के तौर-तरीके बदलने के कैसे सकारात्मक प्रभाव होते हैं, इसे इससे समझा जा सकता है कि करीब तीन लाख करोड़ रुपये गलत हाथों में जाने से बचे हैं। यह एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन सरकारी योजनाओं को अभी और प्रभावी तरीके से जमीन पर उतारने की चुनौती है। सौभाग्य से अब वह स्थिति नहीं, जिसमें सरकारी कोष के एक रुपये में से 90 पैसे बिचौलियों की भेंट चढ़ जाते थे, लेकिन सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार तो अभी भी है।