यह आश्चर्यजनक है कि संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन की शुरुआत हंगामे के साथ हुई। इसका कोई औचित्य नहीं था। लोकसभा में हुए हंगामे से यही स्पष्ट हुआ कि विपक्ष ने प्रधानमंत्री की इस बात पर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझा कि विधानसभा चुनावों में पराजय का गुस्सा संसद में न निकालें। उन्होंने विपक्ष से नकारात्मक राजनीति का परित्याग करने का आग्रह करते हुए यह भी कहा कि वह सकारात्मकता का साथ दे।

यह समझ आता है कि विपक्ष को प्रधानमंत्री की यह नसीहत रास न आई हो, लेकिन उसे और विशेष रूप से कांग्रेस को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसकी हार का एक बड़ा कारण उसकी नकारात्मक राजनीति भी रही।

कांग्रेस इन तीनों राज्यों में मिली पराजय से कोई सही सबक सीखने को तैयार नहीं, इसका प्रमाण इससे मिलता है कि उसके नेताओं ने तेलंगाना में अपनी जीत के आधार पर उत्तर बनाम दक्षिण की बहस को हवा देनी शुरू कर दी। इसे विभाजनकारी एवं नकारात्मक राजनीति के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। जैसे जाति, संप्रदाय के आधार पर समाज को बांटने वाली राजनीति देश के लिए हितकारी नहीं, वैसे ही उत्तर बनाम दक्षिण भारत की राजनीति भी शुभ नहीं।

यदि कांग्रेस यह सिद्ध करना चाहती है कि भाजपा का दक्षिण भारत में कोई प्रभाव नहीं और इस हिस्से के लोग उसे पसंद नहीं करते तो यह उसकी भूल ही है। वह इसकी जानबूझकर अनदेखी कर रही है कि भाजपा ने जहां तेलंगाना में आठ सीटों पर जीत हासिल करने के साथ अपना वोट प्रतिशत दोगुना करने में सफलता हासिल की, वहीं कर्नाटक में वह प्रमुख विपक्षी दल है।

समझना कठिन है कि कांग्रेस इसकी अनदेखी क्यों कर रही है कि पिछले लोकसभा चुनाव में कर्नाटक की 28 में से 25 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी? कांग्रेस को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी की सत्ता में भी भाजपा साझीदार है। तमिलनाडु और केरल में भी उसका प्रभाव बढ़ रहा है।

प्रधानमंत्री ने विपक्ष को जैसी नसीहत संसद का सत्र शुरू होने के पहले दी, उसी तरह उन्होंने तीन राज्यों में जीत के बाद भाजपा मुख्यालय में अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भी दी थी। उन्होंने कहा था कि अब देश की जनता भ्रष्टाचार, तुष्टीकरण और परिवारवाद की राजनीति को पसंद नहीं कर रही है।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि तीन राज्यों के चुनाव नतीजे नकारात्मक राजनीति करने वालों को सुधर जाने की चेतावनी दे रहे हैं। पता नहीं कांग्रेस और उसके साथ खड़े राजनीतिक दल इस चेतावनी पर ध्यान देने को तैयार हैं या नहीं, लेकिन कम से कम उन्हें राष्ट्रीय हितों को चोट पहुंचाने या फिर देश विरोधी ताकतों को बल देने वाली राजनीति से तो बाज आना ही चाहिए। सरकार का विरोध करते-करते जाने-अनजाने देश विरोध की सीमा तक पहुंचना ठीक नहीं।