कांग्रेस की राजनीतिक जमीन, नीतीश कुमार के अलग होने से आइएनडीआइए के साथ ही पार्टी की भी बढ़ेगी कठिनाई
यदि नीतीश कुमार आइएनडीआइए में बने रहते तो कांग्रेस को केवल बिहार में ही लाभ नहीं मिलता बल्कि उत्तर भारत में भी उसके पक्ष में मनोवैज्ञानिक माहौल बनता जहां वह बहुत अधिक कमजोर है। अब ऐसा होने के आसार कम ही हैं। इसका एक कारण कांग्रेस की ओर से राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करना भी है।
अब इसमें कोई संदेह नहीं कि नीतीश कुमार के आइएनडीआइए से अलग होने के बाद इस गठबंधन के साथ-साथ कांग्रेस की भी कठिनाई बढ़ने जा रही है। अपनी इस कठिनाई के लिए वही अधिक जिम्मेदार है। नीतीश कुमार जिन कारणों से आइएनडीआइए से अलग हुए, उनमें एक बड़ा कारण उन्हें इस गठबंधन का संयोजक न बनाया जाना रहा।
नीतीश कुमार आइएनडीआइए के संयोजक बनने के अधिकारी इसलिए थे, क्योंकि उन्होंने ही कांग्रेस के नेतृत्व में अन्य विपक्षी दलों को एकजुट करने की पहल की थी। कांग्रेस ने केवल नीतीश कुमार की ही अनदेखी नहीं की, बल्कि उसने आइएनडीआइए के अन्य घटकों को एकजुट करने और सीटों के बंटवारे को महत्व देने के स्थान पर राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकालने को प्राथमिकता प्रदान की। इस यात्रा का उपयोग आइएनडीआइए की एकजुटता को मजबूत करने में किया जा सकता था, लेकिन कोई नहीं जानता कि कांग्रेस ने ऐसा करना आवश्यक क्यों नहीं समझा?
उसने घटक दलों को इस यात्रा में सम्मिलित होने का औपचारिक निमंत्रण देकर कर्तव्य की इतिश्री ही अधिक की और इसी कारण ममता बनर्जी ने उसमें हिस्सा नहीं लिया। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी घोषणा कर दी कि वह लोकसभा चुनाव अपने बलबूते पर लड़ेंगी। अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 11 सीटें देने की घोषणा अवश्य कर दी, लेकिन यह घोषणा उन्होंने कांग्रेस से व्यापक विचार-विमर्श के बजाय अपने स्तर पर ही की। कांग्रेस का इससे संतुष्ट न होना स्वाभाविक है।
यदि नीतीश कुमार आइएनडीआइए में बने रहते तो कांग्रेस को केवल बिहार में ही लाभ नहीं मिलता, बल्कि उत्तर भारत में भी उसके पक्ष में मनोवैज्ञानिक माहौल बनता, जहां वह बहुत अधिक कमजोर है। अब ऐसा होने के आसार कम हैं। इसका एक कारण कांग्रेस की ओर से राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करना भी है। पता नहीं, कांग्रेस के रणनीतिकार यह साधारण सी बात क्यों नहीं समझ सके कि सांस्कृतिक महत्व के इतने महत्वपूर्ण आयोजन में न जाना और उसके निमंत्रण को ठुकराना एक ही बात नहीं।
आइएनडीआइए में भले ही दो दर्जन से अधिक राजनीतिक दल शामिल हों, लेकिन संप्रग के बाहर का कोई बड़ा राजनीतिक दल कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़ा नहीं दिख रहा है। जैसे ममता बनर्जी बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं, वैसे ही आम आदमी पार्टी भी यह स्पष्ट कर चुकी है कि वह पंजाब में अपने दम पर लड़ेगी। पता नहीं दिल्ली में क्या होगा होगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि कांग्रेस आइएनडीआइए को सशक्त नहीं कर सकी।
हैरानी नहीं कि अब आइएनडीआइए की राजनीतिक हैसियत संप्रग सरीखी ही नजर जाए। कांग्रेस यह मानकर चल सकती है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में निकल रही भारत जोड़ो न्याय यात्रा लोगों के आकर्षण का केंद्र बन रही है, लेकिन सच यह है कि उसकी राजनीतिक जमीन मजबूत होती नहीं दिख रही है।