कांग्रेस की कार्यशैली में अब संवाद और बहस की परंपरा हो चुकी है खत्म- वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे
एक अर्से से कांग्रेस में नेतृत्व का मतलब सोनिया राहुल और प्रियंका गांधी हो गया है। ये तीनों जो चाहते हैं वही होता है। जिनकी इन तक पहुंच नहीं उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं। इस तरह कंपनी तो चलाई जा सकती है पार्टी नहीं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे ने पार्टी की कार्यशैली को लेकर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए यह जो कहा कि कांग्रेस में अब संवाद और बहस की परंपरा खत्म हो चुकी है, उससे असहमत होना कठिन है। आत्मचिंतन के लिए शिविरों और बैठकों को आवश्यक बताते हुए शिंदे ने यह भी महसूस किया कि कांग्रेस अपनी संस्कृति खोती जा रही है। उनकी मानें तो आज यह समझना मुश्किल है कि कांग्रेस कहां जा रही है। यह पहली बार नहीं जब किसी कांग्रेसी नेता ने पार्टी की कार्यशैली को लेकर सवाल खड़े किए हों। इसके पहले गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल समेत 23 नेता एक चिट्ठी के जरिये वैसी बातें कह चुके हैं, जैसी शिंदे ने कहीं। चूंकि इन 23 नेताओं की चिट्ठी के बाद भी कांग्रेस के तौर-तरीकों में कोई बदलाव नहीं आया, इसलिए इसके आसार नहीं कि शिंदे की बातें असर करेंगी। कांग्रेस अपने तौर-तरीके बदलने के लिए तैयार नहीं, इसका प्रमाण पंजाब कांग्रेस के संकट को सुलझाने के उसके रवैये से भी मिलता है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह दिल्ली आते हैं, लेकिन गांधी परिवार के किसी सदस्य से उनकी मुलाकात नहीं हो पाती। इसके विपरीत उनके खिलाफ मोर्चा खोले हुए नवजोत सिंह सिद्धू दिल्ली आते ही प्रियंका गांधी और फिर उनके जरिये राहुल गांधी से भी मुलाकत कर लेते हैं।
पता नहीं अमरिंदर और नवजोत के बीच की तनातनी कैसे खत्म होगी, लेकिन यह देखना दयनीय है कि उनके झगड़े को सुलझाने के लिए गठित की गई समिति किसी काम नहीं आई। काम आई प्रियंका गांधी की पहल। यह कहा जा सकता है कि उन्होंने कांग्रेस महासचिव के नाते नवजोत सिंह सिद्धू से मिलने का समय निकाला, लेकिन राहुल गांधी का बीच में पड़ना तो यही बताता है कि वह बिना कोई जिम्मेदारी संभाले पर्दे के पीछे से पार्टी को अपने ढंग से चला रहे हैं। अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से ही पार्टी के सारे बड़े फैसले वही कर रहे हैं, लेकिन इसके लिए उन्होंने न तो कोई तंत्र बना रखा है और न ही संपर्क-संवाद की कोई व्यवस्था। वह जिससे चाहते हैं, उससे मिलते हैं और जिससे नहीं चाहते, वह इधर-उधर परिक्रमा करते रहता है। इससे ही आजिज आकर हिमंता बिस्वा सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद जैसे कई नेता या तो दूसरे दलों में चले गए या फिर शिंदे की तरह निष्क्रिय हो गए। एक अर्से से कांग्रेस में नेतृत्व का मतलब सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी हो गया है। ये तीनों जो चाहते हैं, वही होता है। जिनकी इन तक पहुंच नहीं, उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं। इस तरह कंपनी तो चलाई जा सकती है, पार्टी नहीं।