संसद के प्रत्येक सत्र के पहले होने वाली सर्वदलीय बैठक इस बार भी हुई। सदैव की तरह इस बैठक में जहां सत्तापक्ष की ओर से यह कहा गया कि वह सभी विषयों पर चर्चा करने को तैयार है, वहीं विपक्ष ने इस पर जोर दिया कि अमुक-अमुक मुद्दों पर चर्चा अवश्य होनी चाहिए। सोमवार से शुरू होने जा रहे संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तावित विधेयक पारित हो सकेंगे या नहीं और विभिन्न विषयों पर कोई सार्थक बहस हो सकेगी या फिर हंगामा होता रहेगा, इसका पता लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होने पर ही चलेगा।

शीतकालीन सत्र के पहले आयोजित सर्वदलीय बैठक में संसदीय कार्य मंत्री ने जिस तरह यह कहा कि सरकार सभी मुद्दों पर विचार करने को तैयार है, लेकिन विपक्ष को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि चर्चा के लिए पूरा माहौल बने, उससे यही लगता है कि सत्तापक्ष को इसकी आशंका है कि विपक्ष संसदीय कार्यवाही में व्यवधान पैदा करने की कोशिश कर सकता है। इस आशंका का एक आधार तो संसद के पिछले कई सत्र हैं, जिनमें जमकर हंगामा हुआ।

व्यवधान की आशंका का एक अन्य आधार लोकसभा चुनाव करीब आना है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि संसद के पिछले सत्र में इसीलिए काम कम और हंगामा अधिक हुआ था, क्योंकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव निकट थे। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इन राज्यों के चुनाव नतीजों का कुछ न कुछ असर संसद की कार्यवाही पर पड़ सकता है। इसलिए और भी, क्योंकि राजनीतिक दलों ने आम चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है।

संसद के शीतकालीन सत्र में कुछ नए और पहले से लंबित कई विधेयक चर्चा के लिए पेश किए जाने हैं। इनमें से अनेक विधेयक खासे महत्वपूर्ण हैं। यह समय ही बताएगा कि इनमें से कितने विधेयक पारित हो पाते हैं। केवल विधेयकों का पारित होना ही महत्वपूर्ण नहीं है। उन पर सार्थक चर्चा होना भी आवश्यक है। दुर्भाग्य से अब महत्वपूर्ण विधेयकों पर भी व्यापक विचार-विमर्श मुश्किल से ही होता है। यह एक तथ्य है कि बजट सत्र में हंगामे के चलते आम बजट को भी बिना बहस के पारित कराना पड़ा था।

महत्वपूर्ण विधेयकों पर व्यापक चर्चा इसीलिए नहीं हो पाती, क्योंकि सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच आम सहमति की राजनीति की गुंजाइश लगातार कम होती जा रही है। यह कहना तो बहुत आसान है कि संसद चलाना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन इस प्रश्न पर विचार नहीं किया जा रहा कि यदि विपक्ष यह ठान ले कि उसे हंगामा ही करना है तो फिर सत्तापक्ष क्या कर सकता है? विपक्ष अब सत्तापक्ष से सवाल करने के नाम पर हंगामा अधिक करता है। वह विभिन्न विषयों पर प्रभावी चर्चा के लिए तैयारी करने से अधिक महत्व सदनों में नारेबाजी करने और पोस्टर लहराने को देने लगा है। कुछ सांसद तो बिना बात हंगामा करना पसंद करने लगे हैं।