प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पोलैंड यात्रा जितनी महत्वपूर्ण है, उतना ही यूक्रेन का उनका दौरा भी। किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पोलैंड यात्रा 45 वर्षों बाद हो रही है। भारतीय प्रधानमंत्री की यूरोप के इस महत्वपूर्ण देश की यात्रा में इतना लंबा समय नहीं लगना चाहिए था। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि दोनों देशों के दशकों से मधुर संबंध रहे हैं।

पोलैंड के लिए भारत इसलिए भी महत्व रखता है, क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब वहां की सैकड़ों महिलाओं और बच्चों को कहीं शरण नहीं मिल रही थी, तब भारतीय रियासतों ने उन्हें शरण दी थी। पोलैंड भारत के इस उपकार को भूला नहीं है। यह स्वाभाविक ही है कि भारतीय प्रधानमंत्री की पोलैंड यात्रा दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत करने के साथ आर्थिक संबंधों को भी बल प्रदान करेगी, लेकिन सबसे अधिक निगाह उनकी यूक्रेन यात्रा पर होगी।

वह वहां 23 अगस्त को ट्रेन से पहुंचेंगे। इस यात्रा पर दुनिया भर की निगाहें होंगी, क्योंकि हाल में भारतीय प्रधानमंत्री रूस भी गए थे। जबसे रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है, तबसे अनेक देशों के शासनाध्यक्षों ने यूक्रेन की यात्रा की है, लेकिन ऐसे शासनाध्यक्ष गिनती के ही हैं, जिन्होंने रूस के साथ-साथ यूक्रेन की भी यात्रा की है।

भारतीय प्रधानमंत्री एक ऐसे शासनाध्यक्ष हैं, जो रूस-यूक्रेन युद्ध पर तटस्थ विदेश नीति पर कायम हैं। उनके नेतृत्व में भारत इस युद्ध का विरोध भी करता रहा है और इसके साथ ही रूस से अपने संबंध तोड़ने से मना भी करता रहा है। पश्चिमी देशों को भारत की यह नीति पसंद तो नहीं आई, लेकिन वे यह भी मानते हैं कि भारत ही एक ऐसा देश है, जो रूस को संघर्ष विराम के लिए राजी कर सकता है।

यह धारणा भारत की कूटनीतिक महत्ता और उसके बढ़ते कद को रेखांकित करती है। इसका श्रेय मोदी सरकार की विदेश नीति को जाता है, जिसे उसने अपने पिछले दस वर्षों के शासनकाल में नई धार दी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का कद बढ़ने का एक कारण उसकी अर्थव्यवस्था का तेज गति से बढ़ना भी है और वह भी ऐसे समय, जब प्रमुख देश आर्थिक सुस्ती से दो-चार थे।

रूस-यूक्रेन युद्ध के सिलसिले में विश्व समुदाय न तो इसकी अनदेखी कर सकता है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने किस तरह रूसी राष्ट्रपति से दो टूक कहा था कि यह युग युद्ध का नहीं और न ही इसकी कि उनकी पहल से भारत जी-20 सम्मेलन में रूस-यूक्रेन युद्ध पर सभी देशों की सहमति वाला प्रस्ताव पारित करने में सफल हुआ था।

इस सम्मेलन में और फिर उसके बाद भारतीय नेतृत्व ने जिस तरह ग्लोबल साउथ कहे जाने वाले देशों की आवाज बुलंद की है, उससे भी विश्व सुमदाय को यह संदेश गया है कि भारत अंतरराष्ट्रीय विषयों के समाधान में महती भूमिका निभाने में सक्षम है। रूस-यूक्रेन युद्ध रोकना आसान नहीं, लेकिन भारत को इसकी पहल तो करनी ही चाहिए।