यह अच्छा हुआ कि भारत ने कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका में सक्रिय खालिस्तानी चरमपंथियों की अराजक गतिविधियों को लेकर इन देशों से एक बार फिर यह कहा कि इस तरह की हरकतें अस्वीकार्य हैं। इन देशों को सख्त और सीधा संदेश देना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि वे अपने यहां के खालिस्तानी अतिवादियों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई करने के स्थान पर जुबानी जमा-खर्च कर रहे हैं। इस मामले में सबसे शर्मनाक रवैया कनाडा सरकार का है। वहां के प्रधानमंत्री ने जिस तरह खालिस्तानियों के धमकी भरे और हिंसा की पैरवी करने वाले पोस्टरों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता दिया, वह निर्लज्जता की पराकाष्ठा ही नहीं, एक तरह से अतिवाद को खुले तौर पर दिया जाने वाला प्रश्रय है।

चूंकि अमेरिका और ब्रिटेन की सरकारें भी अपने यहां के चरमपंथी खालिस्तानियों के खिलाफ ढुलमुल रवैया अपनाए हुए हैं, इसलिए इन देशों में भी उनकी अराजक और भारत विरोधी गतिविधियां बढ़ती चली जा रही हैं। खालिस्तानी उग्रवादी भारतीय दूतावासों के साथ भारत के राजनयिकों की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन रहे हैं, लेकिन कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका की सरकारें ऐसे व्यवहार कर रही हैं, जैसे वे कुछ गलत ही नहीं कर रहे हैं। हालांकि खालिस्तानी अतिवादियों और जिहादियों की हरकतें एक जैसी हैं और यह भी किसी से छिपा नहीं कि एक समय भारत में खालिस्तानी आतंकियों ने किस तरह हजारों लोगों को मारा था, लेकिन पश्चिमी देश इस सबकी अनदेखी करने में लगे हुए हैं।

जब पश्चिमी देशों को खालिस्तानी अतिवादियों और जिहादियों में कोई फर्क नहीं करना चाहिए, तब वे खालिस्तानियों के प्रति नरम रवैया अपनाए हुए हैं। ऐसा आत्मघाती रवैया अपनाकर वे भारत के साथ-साथ अपने लिए भी मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। आखिर कोई यह कैसे भूल सकता है कि खालिस्तानी आतंकियों ने किस तरह 1985 में एयर इंडिया के विमान में विस्फोट कर सैकड़ों लोग की जान ले ली थी? ऐसी भीषण आतंकी घटना को अंजाम देने और दुनिया को दहशत में डालने वाले खालिस्तानियों के प्रति पश्चिमी देशों की नरमी गंभीर चिंता का विषय है। खालिस्तानियों के प्रति इन देशों की नरमी का यह आलम है कि वे उन्हें खुशी-खुशी शरण देते हैं और उनकी हर तरह की अतिवादी हरकतों की अनदेखी भी करते हैं।

यह एक पहेली ही है कि अपने लिए खतरा बने जिहादियों को मारने के लिए दूसरे देशों पर हमले करने में भी संकोच न करने वाले पश्चिमी देश भारत के लिए गंभीर खतरा बन रहे खालिस्तानी अतिवादियों को पालने-पोसने का काम कर रहे हैं। यह अतिवाद के खिलाफ प्रदर्शित किया जाने वाला भोंडे किस्म का दोहरा मानदंड है। भारत को इस दोहरे मानदंड को बार-बार बेनकाब करना होगा। इससे खराब बात और कोई नहीं हो सकती कि पश्चिमी देश और विशेष रूप से कनाडा आतंक की खुली पैरवी को अभिव्यक्ति की आजादी बता रहा है। क्या वह अपने क्यूबेक प्रांत में अलगाववादियों की ऐसी हरकतें सहन करेगा?