आईना दिखाने वाला फैसला, ऐसी व्यवस्था बने कि संदिग्ध इरादों वाली संस्थाएं कारोबार जगत को निशाना न बना पाएं
एक वर्ष पहले जब अमेरिकी शार्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग ने यह आरोप लगाया था कि अदाणी समूह अपने शेयरों में हेराफेरी कर रहा है तो उससे केवल इस समूह को ही नुकसान नहीं पहुंचा था बल्कि भारतीय निवेशकों के अच्छे-खासे पैसे भी डूब गए थे। इसके अतिरिक्त अदाणी समूह के प्रमुख गौतम अदाणी अमीरों की सूची में तीसरे नंबर से खिसककर 25वें नंबर पर पहुंच गए थे।
अदाणी-हिंडनबर्ग प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर कांग्रेस और साथ ही उन तत्वों को बड़ा झटका दिया है, जो इस मामले को लेकर अदाणी समूह के साथ केंद्र सरकार को भी घेरने में लगे हुए थे कि सेबी की जांच में कोई खामी नहीं है और विशेष जांच दल गठित करने की कोई आवश्यकता नहीं। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भी महत्वपूर्ण है कि ऐसी जनहित याचिकाएं स्वीकार नहीं की जा सकतीं, जिनमें पर्याप्त शोध की कमी हो और जो अप्रमाणित रिपोर्टों को सच मानती हों।
स्पष्ट है कि यह टिप्पणी उन तत्वों को भी आईना दिखाती है, जो जनहित याचिकाओं का इस्तेमाल अपने निहित स्वार्थों को साधने के लिए करते हैं। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि कुछ तत्व ऐसे हैं, जिन्होंने जनहित याचिकाओं को एक उद्योग में तब्दील कर दिया है। वे हर मामले में जनहित याचिका के सहारे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाते हैं। ऐसे तत्वों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
एक वर्ष पहले जब अमेरिकी शार्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग ने यह आरोप लगाया था कि अदाणी समूह अपने शेयरों में हेराफेरी कर रहा है तो उससे केवल इस समूह को ही नुकसान नहीं पहुंचा था, बल्कि भारतीय निवेशकों के अच्छे-खासे पैसे भी डूब गए थे। इसके अतिरिक्त अदाणी समूह के प्रमुख गौतम अदाणी अमीरों की सूची में तीसरे नंबर से खिसककर 25वें नंबर पर पहुंच गए थे।
यह भी ध्यान रहे कि हिंडनबर्ग ने अदाणी समूह की साख पर आघात कर अच्छी-खासी कमाई भी कर ली थी। एक तथ्य यह भी है कि अदाणी समूह के खिलाफ हिंडबनर्ग की रिपोर्ट मोदी सरकार को घेरने का जरिया भी बन गई थी। संसद के भीतर और बाहर इसे लेकर खूब हंगामा हुआ था। राहुल गांधी ने इस मामले को खूब तूल दिया था।
राहुल गांधी शायद ही कीचड़ उछालने की अपनी राजनीति का परित्याग करें, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि गत दिवस जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुना रहा था, तब लगभग उसी समय तेलंगाना के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अदाणी समूह के प्रबंध निदेशक से मुलाकात कर रहे थे। महत्वपूर्ण केवल यह नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने सेबी की अब तक की जांच को सही पाया, बल्कि यह भी है कि उसने विदेशी संस्थाओं की रपट पर आंख मूंदकर भरोसा करने से इन्कार किया।
यह ध्यान रहे कि कुछ समय पहले उसने यह कहा था कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में जो कुछ कहा गया है, उसे पूरी तरह सही नहीं माना जा सकता। गत दिवस भी उसने मोदी सरकार से खुन्नस खाने वाले अरबपति निवेशक जार्ज सोरोस से जुड़ी संस्था ओसीसीआरपी के आरोपों को महत्व देने से इन्कार किया। सुप्रीम कोर्ट का फैसला यह रेखांकित कर रहा है कि सेबी और सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी होगी, जिससे संदिग्ध इरादों वाली हिंडनबर्ग और ओसीसीआरपी जैसी संस्थाएं भविष्य में देश के कारोबार जगत को निशाना न बना पाएं।