चुनावी छल-बल बेनकाब, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सबने किया सम्मान
चंडीगढ़ मेयर चुनाव में जो कुछ हुआ उसके लिए भाजपा पीठासीन अधिकारी को जिम्मेदार बताकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकती। उसे यह अनुभूति होनी चाहिए कि पीठासीन अधिकारी ने जो काम किया उसके कारण उसे न केवल कठघरे में खड़ा होना पड़ा बल्कि उसके विरोधियों को यह कहने का अवसर भी मिला कि वह चुनाव जीतने के लिए छल-बल का सहारा लेने में संकोच नहीं करती।
चंडीगढ़ में मेयर के चुनाव में गड़बड़ी की गई, यह चुनाव वाले ही दिन तब स्पष्ट हो गया था, जब कांग्रेस के समर्थन के चलते पर्याप्त संख्याबल वाले आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को पराजय का सामना करना पड़ा था। भाजपा प्रत्याशी की जीत की अप्रत्याशित घोषणा इस आधार पर की गई थी कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को मिले आठ मत अवैध पाए गए।
यह इसलिए समझ से परे था, क्योंकि एक तो अवैध करार दिए गए सभी मत आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के खाते के थे और दूसरे पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह एक वीडियो में मतपत्रों में कुछ लिखते हुए दिख रहे थे। इस पर हैरानी नहीं कि भाजपा से जुड़े पीठासीन अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह नहीं साफ कर सके कि वह मतपत्रों पर क्या लिख रहे थे और क्यों? यदि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की फटकार के साथ अवमानना नोटिस का सामना करना पड़ा तो इसके लिए वही उत्तरदायी हैं। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जैसे तथ्य सामने आए, उन्हें देखते हुए उसके पास यही विकल्प था कि या तो वह मेयर का चुनाव फिर से कराने का आदेश दे अथवा आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को मेयर घोषित करे।
चूंकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से खुला खिलवाड़ करने वाले इस मामले के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के साथ ही कथित रूप से मेयर का चुनाव जीते भाजपा प्रत्याशी को यह आभास हो गया था कि उनके पास अपने बचाव में कुछ कहने-बताने को नहीं है, इसलिए उन्होंने पहले ही त्यागपत्र दे दिया था।
इसके बाद भी यह प्रश्न तो अनुत्तरित है ही कि आखिर पीठासीन अधिकारी ने चुनाव प्रक्रिया से खिलवाड़ क्यों किया? क्या पार्टी के प्रति निष्ठा दिखाने के लिए अपनी ओर से या फिर किसी अन्य के कहने से? इस प्रश्न का उत्तर भाजपा के शीर्ष नेताओं को भी तलाशना होगा, क्योंकि वह ऐसे गंभीर आरोपों के घेरे में है कि उसके नेता मेयर तक का चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने और मनमानी करने को तैयार रहते हैं।
क्या यह विचित्र नहीं कि भाजपा एक ओर आगामी लोकसभा चुनाव में अपने बलबूते 370 सीटें जीतने का दम भर रही है और दूसरी ओर एक अदद मेयर का चुनाव जीतने के लिए ऐसे जतन करती दिख रही, जो उसकी फजीहत का कारण बन रहे हैं। लोकतंत्र में संख्याबल का सम्मान किया जाना आवश्यक होता है।
चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में भाजपा ऐसा करती हुई नहीं दिखाई दी। ऐसे रवैये से उसकी छवि बिगड़ेगी ही। चंडीगढ़ मेयर चुनाव में जो कुछ हुआ, उसके लिए भाजपा पीठासीन अधिकारी को जिम्मेदार बताकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकती। उसे यह अनुभूति होनी चाहिए कि पीठासीन अधिकारी ने जो काम किया, उसके कारण उसे न केवल कठघरे में खड़ा होना पड़ा, बल्कि उसके विरोधियों को यह कहने का अवसर भी मिला कि वह चुनाव जीतने के लिए छल-बल का सहारा लेने में संकोच नहीं करती।