राहुल गांधी एक बार फिर जिस तरह अदाणी समूह को घेरने में जुट गए हैं, उससे यही लगता है कि वह यह समझने को तैयार नहीं कि ऐसे मुद्दे भले ही खबरों का हिस्सा बन जाते हों, लेकिन उनसे कांग्रेस को कुछ हासिल नहीं होता। राहुल गांधी एक लंबे समय से यह साबित करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं कि मोदी सरकार चंद उद्यमियों के लिए ही काम कर रही है।

पिछले लोकसभा चुनाव के समय वह देश भर में घूम-घूम कर यह कह रहे थे कि मोदी सरकार ने राफेल विमान सौदे में एक विशेष कारोबारी को अनुचित लाभ पहुंचाया है। एक बार वह यहां तक कह गए कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी वही कह रहा है, जो वह कह रहे हैं। उन्हें अपनी इस गलतबयानी के लिए सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगनी पड़ी। इससे उनकी अच्छी-खासी किरकिरी हुई, लेकिन वह कोई सबक सीखने के लिए तैयार नहीं हुए। जब मोदी सरकार तीन नए कृषि कानून लाई तो राहुल गांधी इन कानूनों को अदाणी-अंबानी कानून की संज्ञा देकर किसानों को बरगलाने लगे, जबकि ऐसे कानून बनाने का वादा खुद कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किया था।

जब अदाणी समूह को लेकर अमेरिकी संस्था हिंडनबर्ग की रपट सामने आई तो राहुल गांधी नए सिरे से इस समूह और मोदी सरकार पर हमला करने में जुट गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित एक समिति ने हिंडनबर्ग के आरोपों की जांच करने के बाद यह पाया कि पहली नजर में किसी तरह का फर्जीवाड़ा नहीं दिखता, फिर भी राहुल गांधी अदाणी समूह और मोदी सरकार पर उलटे-सीधे आरोप लगाते रहे। अब वह यह कह रहे हैं कि जैसे ही कोई अपने घर में बल्ब जलाता है, अदाणी की जेब में पैसा चला जाता है।

पहले वह यह आरोप उछाला करते थे कि अदाणी समूह ने 20 हजार करोड़ का घपला किया है। अब वह इस नतीजे पर पहुंच गए हैं कि घपले की राशि 32 हजार करोड़ रुपये है। पता नहीं वह ऐसे आंकड़े कहां से लाते हैं, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि वह कीचड़ उछालने की राजनीति कर रहे हैं। यदि उन्हें अदाणी समूह से इतनी ही शिकायत है तो फिर वह कांग्रेस शासित राज्य सरकारों से यह क्यों नहीं कहते कि वे इस समूह से कोई संबंध न रखें? राहुल गांधी उद्यमियों को लांछित करने की जो राजनीति कर रहे हैं, वह वाम दलों की उद्यम विरोधी राजनीति को भी मात करने वाली है।

वास्तव में उनकी राजनीति उद्यमशीलता को हतोत्साहित और कारोबारियों को बेवजह बदनाम करने वाली है। दुर्भाग्य से कुछ और नेता भी यही काम कर रहे हैं। इसका पता उस मामले से चलता है, जिसमें यह सामने आया कि तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने एक कारोबारी समूह को अनुचित लाभ पहुंचाने और अदाणी समूह को निशाना बनाने के इरादे से संसद में तमाम सवाल पूछे।