आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में भाग लेने जकार्ता पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से सहयोग बढ़ाने पर जिस तरह जोर दिया, उससे फिर यह स्पष्ट हुआ कि भारत अपनी एक्ट ईस्ट पालिसी को लेकर प्रतिबद्ध है। इसी प्रतिबद्धता के चलते भारतीय प्रधानमंत्री जी-20 सम्मेलन की तमाम व्यस्तता के बावजूद जकार्ता गए। उन्होंने आसियान-भारत शिखर सम्मेलन के साथ ही पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को भी संबोधित किया और उसमें यह कहा कि दक्षिण चीन सागर में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन होना चाहिए।

अभी तक भारत इस मामले में संयमित बयान देता रहा है, लेकिन यह संभवतः पहली बार है, जब स्वयं भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन को दो टूक संदेश दिया कि वह दक्षिण चीन सागर में मनमानी नहीं कर सकता। चीन को ऐसा संदेश देना इसलिए आवश्यक था, क्योंकि उसकी मनमानी बढ़ती जा रही है।

अभी हाल में चीन ने अपना जो नया मानचित्र जारी किया, उसमें दक्षिण चीन सागर के साथ ताइवान, अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताया। इसके अलावा उसने जापान और आसियान के कई देशों के इलाकों पर अपना दावा जताया। एक के बाद एक देशों ने जिस तरह चीन के नए नक्शे को खारिज किया, उससे यह स्पष्ट है कि उसके अतिक्रमणकारी रवैये से परेशान देश एकजुट होना शुरू हो गए हैं।

यह अच्छा हुआ कि भारत ने चीन के विस्तारवादी रवैये से त्रस्त देशों के साथ खुलकर खड़े होने का निश्चय किया। यह समय की मांग भी है, क्योंकि चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। इसी कारण केवल उसके पड़ोसी देश ही उसके खिलाफ आवाज नहीं उठा रहे, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और आस्ट्रेलिया भी अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं।

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि भारत में आयोजित जी-20 सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति इसीलिए नहीं आ रहे, क्योंकि वह यह जान रहे हैं कि उनकी घेरेबंदी हो सकती है। इस सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति भी नहीं आ रहे हैं और उसका कारण यही है कि यूक्रेन युद्ध के चलते वह पश्चिमी देशों का सामना करने से कतरा रहे हैं। जी-20 समूह के कई देश रूस के खिलाफ मुखर हैं।

फिलहाल यह कहना कठिन है कि रूस और चीन के प्रतिनिधि इसमें भागीदार बनेंगे या नहीं कि जी-20 सम्मेलन का कोई साझा घोषणापत्र जारी हो, लेकिन यह तय है कि चीनी राष्ट्रपति नई दिल्ली इसलिए नहीं आ रहे हैं, क्योंकि वह यह समझ गए हैं कि सीमा विवाद के मामले में भारत चीन का डटकर मुकाबला करने को तैयार है।

विदेश मंत्री एस.जयशंकर तो लगातार यह कहते ही रहे हैं कि सीमा पर पहले जैसी स्थिति बहाल हुए बगैर चीन से संबंध सामान्य नहीं हो सकते। कुछ ऐसी ही बात भारतीय प्रधानमंत्री ने हाल में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति से कही। अब उन्होंने दक्षिण चीन सागर पर भी चीन को आईना दिखा दिया। ऐसा करना आवश्यक था।