जागरण संपादकीय: यूपीएस की जरूरत, मोदी सरकार का लाखों कर्मचारियों की मांग को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम
यूपीएस लाकर केंद्र सरकार ने केवल सरकारी कर्मचारियों की एक मांग ही नहीं पूरी की है बल्कि संभावित राजनीतिक नुकसान से बचने का भी उपाय किया है। अब जब सरकारी कर्मचारियों के पेंशन हितों की रक्षा के लिए कदम उठा लिया गया है तब उनके लिए भी यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपने कामकाज में जवाबदेही और जिम्मेदारी का परिचय दें।
सरकारी कर्मचारियों के लिए एकीकृत पेंशन योजना अर्थात यूपीएस लाकर केंद्र सरकार ने लाखों कर्मचारियों की एक पुरानी मांग को पूरा करने की दिशा में एक ठोस कदम उठाया है। ऐसा कोई कदम उठाया जाना इसलिए आवश्यक हो गया था, क्योंकि 2004 में लागू की गई नई पेंशन योजना यानी एनपीएस सरकारी कर्मचारियों के हितों की पूर्ति में सहायक नहीं बन रही थी और इसीलिए उसे लेकर असंतोष था।
इसी असंतोष के चलते कुछ राजनीतिक दल पुरानी पेंशन योजना यानी ओपीएस लागू करने का वादा कर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन यह संकीर्ण राजनीति ही थी और इसीलिए हिमाचल प्रदेश एवं कुछ अन्य राज्य सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने की जो घोषणा की, उस पर अमल नहीं कर सकीं।
तथ्य यह भी है कि कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश के अलावा अन्य कोई चुनावी लाभ भी नहीं मिला और यही कारण रहा कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन योजना को लेकर कहीं कोई वादा भी नहीं किया।
यह आश्चर्यजनक है कि अब वही कांग्रेस यूपीएस को लेकर सरकार पर तंज कस रही है और इस योजना को सरकार का एक और यू टर्न बता रही है। स्पष्ट है कि कांग्रेस और विपक्ष के अन्य नेता यह भूल रहे हैं कि बहुत पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक नई पेंशन योजना लाने का वादा किया था और इस संदर्भ में एक समिति भी गठित की थी।
यह अच्छा हुआ कि सरकार यूपीएस के रूप में एक ऐसी पेंशन योजना लाने में समर्थ रही जो सरकारी कर्मचारियों को भी संतुष्ट करेगी और सरकार के लिए बहुत अधिक बोझ भी नहीं साबित होगी। यह योजना इसलिए सरकारी कर्मचारियों को संतुष्ट करने वाली है, क्योंकि यह काफी कुछ पुरानी पेंशन योजना सरीखी है।
अंतर केवल इतना है कि इस नई पेंशन योजना में कर्मचारियों को दस प्रतिशत योगदान देना होगा। इससे उन्हें कोई समस्या नहीं आने वाली, क्योंकि नई पेंशन योजना में भी वे इतना ही अंशदान देते थे, लेकिन उसमें कितनी पेंशन मिलेगी, इसे लेकर अनिश्चितता रहती थी। यह लगभग तय है कि राज्य सरकारें भी यूपीएस को अपनाना पसंद करेंगी और महाराष्ट्र सरकार ने तो इस दिशा में पहल भी कर दी है।
सरकारी कर्मचारियों के पेंशन के एक जटिल मसले को सुलझाने के बाद केंद्र सरकार के लिए उचित होगा कि ईपीएस-95 को भी ऐसा रूप-स्वरूप देने की दिशा में आगे बढ़े जिससे निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के हितों की भी पूर्ति हो।
यूपीएस लाकर केंद्र सरकार ने केवल सरकारी कर्मचारियों की एक मांग ही नहीं पूरी की है, बल्कि संभावित राजनीतिक नुकसान से बचने का भी उपाय किया है। अब जब सरकारी कर्मचारियों के पेंशन हितों की रक्षा के लिए कदम उठा लिया गया है तब उनके लिए भी यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपने कामकाज में जवाबदेही और जिम्मेदारी का परिचय दें। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि सरकारी कामकाज के तौर-तरीके में सुधार की आवश्यकता है।