प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की ओर से नेशनल हेराल्ड मामले में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड और यंग इंडियन की लगभग 752 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त करने के बाद कांग्रेस और भाजपा में आरोप- प्रत्यारोप का सिलसिला छिड़ जाने पर आश्चर्य नहीं। जहां कांग्रेस ईडी की कार्रवाई को बदले की राजनीति बता रही है, वहीं भाजपा यह प्रश्न पूछ रही है कि आखिर गांधी परिवार ने नेशनल हेराल्ड की करोड़ों की संपदा को अपनी संपत्ति कैसे बना लिया?

यह वह प्रश्न है, जिसका उत्तर सामने आना ही चाहिए। कांग्रेस भले ही ईडी की कार्रवाई पर नाराजगी जताए, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया और राहुल गांधी जमानत पर हैं। एक तथ्य यह भी है कि दिल्ली की एक अदालत ने यह पाया था कि कांग्रेस नेताओं ने नेशनल हेराल्ड समेत अन्य समाचार पत्रों का प्रकाशन करने वाली कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को गलत तरीके से हथियाया।

चूंकि कांग्रेस को इस मामले में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय से भी राहत नहीं मिल सकी, इसलिए इसका अंदेशा गहराता है कि इस मामले में कुछ तो ऐसा है, जिसके चलते कांग्रेसी नेता कठघरे में हैं।

स्वतंत्रता से पहले कांग्रेस के शीर्ष नेताओं समेत करीब पांच हजार स्वतंत्रता सेनानियों ने मिलकर अंग्रेजी में नेशनल हेराल्ड, हिंदी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज नाम से समाचार पत्रों का प्रकाशन शुरू किया था। इन अखबारों का प्रकाशन करने वाली कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड पर किसी एक नेता का मालिकाना अधिकार नहीं था। 2008 में उक्त अखबारों का प्रकाशन बंद हो गया, क्योंकि एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड घाटे में चली गई।

2010 में कांग्रेस नेताओं ने यंग इंडिया लिमिटेड नाम से एक कंपनी बनाई, जिसमें सोनिया और राहुल गांधी की हिस्सेदारी 38-38 प्रतिशत थी। शेष हिस्सेदारी उन कांग्रेसी नेताओं के पास थी, जो गांधी परिवार के करीबी थे। कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को घाटे से उबारने के लिए 90 करोड़ रुपये का कर्ज दिया, लेकिन इससे भी उसकी आर्थिक स्थिति सुधरी नहीं।

इससे मामले में पहला सवाल यह उठा कि क्या किसी राजनीतिक दल को इस तरह से किसी कंपनी को कर्ज देने का अधिकार है? यह सवाल इसलिए उठा, क्योंकि आयकर संबंधी नियम किसी दल को इसकी अनुमति नहीं देते कि वह किसी कंपनी से लेन-देन करे।

गांधी परिवार और उसके करीबी नेताओं के स्वामित्व वाली यंग इंडियन कंपनी पर एक गंभीर आरोप यह भी है कि उसने महज 50 लाख रुपये देकर एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड का अधिग्रहण कर लिया और इस तरह वे इस कंपनी की करोड़ों की संपत्ति के स्वामी बन गए। यह संपत्ति दिल्ली, मुंबई, लखनऊ आदि शहरों में है। चूंकि अखबारों का प्रकाशन बंद होने के उपरांत इस संपत्ति का व्यावसायिक उपयोग किया जाने लगा, इसलिए गांधी परिवार पर यह आरोप भी लगा कि वह गलत तरीके से हथियाई गई कंपनी का व्यावसायिक उपयोग कर अवैध कमाई कर रहा है।